हमने पिछली बार आपको जिया मोहिनुद्दीन की आवाज में एक कहानी "धोबी" सुनवायी थी, जिसके बाद पारूलजी ने जिया मोहिनुद्दीन की आवाज में और अफ़साने भी सुनने की इच्छा जताई थी । लीजिये इसी कडी में पेश है, चचा छक्कन ।
इस पूरे मजमून को सुनने के बाद बतायें कि अगर कहानी के किरदार अपने ज्ञानदत्त पाण्डेय जी, उनकी पत्नी श्रीमती रीता पाण्डेय और उनके भृत्य भरतलाल होते तो कहानी कैसी बनती । इसे हमारा ज्ञानदत्तजी की मौज लेने का प्रयास बिल्कुल न समझा जाये, :-)
सोमवार, दिसंबर 22, 2008
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सर जी आफ़िस मे आडियो नही है रात घर पे सुनेंगे ! तब बता पायेंगे !
जवाब देंहटाएंरामराम !
वाह, अभी सुन नहीं सके। घर पंहुच कर सुनेंगे, तब बतायेंगे!
जवाब देंहटाएंग़ज़ब !!अभी अभी निगाह पड़ी आपकी पोस्ट पर…कहीं जो सुन ने से रह जाती तो …:)आपके पास जितना ख़ज़ाना हो इस नायाब आवाज़ मे सब का सब सुनवाइये
जवाब देंहटाएंनीरज जिया मोहिउद्दीन ब्रॉडकास्टिंग की ऊंचाई हैं ।
जवाब देंहटाएंहमें बहुत कुछ सीखना है उनसे ।
जारी रखिए ।
कहां से लाए हैं सरकार ऐसे मोती ।
रीता पाण्डेय की टिप्पणी:
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श्रीमान ज्ञानदत्त पाण्डेय इस प्रकार का ड्रामा बहुत बार कर चुके हैं। "वो लाल रंग वाली पेन, वो रॉयल ब्लू इन्क/ टर्किश ग्रीन स्याही बहुत समय से नहीं दिख रही हैं। इन बच्चों नें तो जिन्दगी नर्क कर दी है। इनके बस्ते चेक करो, जरूर मेरे पेन चुरा रखे होंगे। नीले रंग की नोट बुक कहां है, उसमें मेरे कुछ नम्बर नोट थे। यह घर है या चिड़ियाघर। कोई चीज मिलती ही नहीं। ..."
यह सब एक टिप्पणी में कैसे समायेगा!:)
---- रीता पाण्डेय।
वाह वाह! खजाने के और मोतियों का इंतजार रहेगा
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