मंगलवार, जुलाई 29, 2008

वारिस शाह की हीर: एक सुनहरा अंदाज !

पिछली बार जब वारिस शाह को वडाली बंधुओं की आवाज में सुनवाया था तो काफ़ी लोगों ने "हीर" सुनने में भी दिलचस्पी दिखाई थी | वारिस शाह की हीर को लगभग हर पंजाबी गायक ने गाया है लेकिन कुछ ख़ास गायकी ही हीर की आत्मा और उसके दर्द को जिंदा कर पाती है |

आबिदा परवीन ने बड़े अच्छे अंदाज़ में हीर गाया है लेकिन पाकिस्तानी गायक "इनायत हुसैन भट्टी" साहब की आवाज में हीर सुनकर लगता है कि हीर की कहानी सिर्फ़ एक किस्सा ही नहीं हकीकत में सामने घट रही है |



लेकिन आज हम आपको एक नए अंदाज़ में हीर सुनवायेंगे | इन साहब के बारे में सिर्फ़ इतना पता है कि ये वारिस शाह के दरबार में बैठकर अपनी मौज में हीर गाते हैं | न नाम का पता है और न कोई और ठिकाना | लेकिन हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में ऐसे कलाकार हर शहर/कस्बे/गाँव में बिखरे पड़े हैं जो प्रसिद्धि नहीं पा पाते | आज हम सलाम करते हैं ऐसे ही कलाकारों को और उनकी याद में समर्पित है आज की ये पोस्ट !!!

जो यूट्यूब पर इन्टरनेट की धीमी रफ़्तार के कारण वीडियो न देख सकें उनके लिए आडियो और गायक की तस्वीर भी पेश है |

इस फ़कीर की गायिकी और हीर की आत्मा को महसूस करने के लिए पंजाबी भाषा का आना कोई जरूरी नहीं है | इस आडियो की क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं है लेकिन अगर आप हैड फोन लगाकर सुनेंगे अथवा वाल्यूम को बीच बीच में माडरेट करते रहेंगे तो बहुत आनंद आयेगा | सुनते समय आंख बंद कर सकें तो कहने ही क्या :-)










इस दूसरे वीडियो को भी देखने का कष्ट करें, मेरा दावा है कि आप निराश नहीं होंगे |

रविवार, जुलाई 27, 2008

एक दिन की मजदूरी का मजा !!!

आज हमारे स्कूल के १४ विद्यार्थियों ने मिलकर "हैबिटेट फ़ॉर ह्यूमैनिटी" नामक एक संस्था के लिये एक दिन मजदूरी करने का बीडा उठाया । "हैबिटेट फ़ॉर ह्यूमैनिटी" अमेरिका के अनेक स्थानों पर कम भाग्यशाली और अपेक्षाकृत कम पैसे वाले परिवारों के लिये मकानों का निर्माण करती है । मकानों को बनाने का कच्चा सामान और औजार "हैबिटेट फ़ॉर ह्यूमैनिटी" खरीदती है और मकानों का निर्माण/रंगायी पुतायी आदि का काम स्वयंसेवक (Volunteers) करते हैं । हम सब लोग सुबह ७ बजे निश्चित स्थान पर पंहुच गये और वहाँ अपने समूह का पंजीकरण करवाने के बाद हमको १० मिनट की सुरक्षा सम्बन्धी सलाह दी गयी और उसके बाद काम चालू हो गया । हमारी टीम जिस मकान पर काम कर रही थी वो अपने निर्माण के पहले चरण में था । यहाँ पर मकानों के निर्माण में ईट/गारे/सीमेंट के स्थान पर लकडी का अधिकाधिक प्रयोग होता है । हमारा पहला काम था कि मकान की दीवारों के लिये लकडी के ढांचे खडे करना ।





इसके लिये जमीन पर पूरा ब्लू प्रिंट सरीखा बना हुआ था और लकडी के हर ढांचे पर उसका नंबर अंकित था । बस E1 को E1 के स्थान पर रखकर E2 और E3 से जोड मिलाते हुये कीलें ठोंककर अपने स्थान पर जमा दो । कील ठोंकने के तीन इन्तजाम थे । बडी कीलों (तकरीबन २.५ इंच लम्बी) के लिये Nail Gun थी । इस Nail Gun को आप एक स्टेपलर की तरह समझ लें जो लकडी में लम्बी लम्बी कीलों को एक झटके में लगा देती थी । दूसरी Nail Gun इससे भी खतरनाक थी, इसका काम लम्बी (तकरीबन ३.५ इंच लम्बी) कील को लकडी से होते हुये कंक्रीट के चबूतरे में फ़िक्स करना था । इसके क्रियाविधी एकदम बन्दूक के जैसी थी, इसमें बन्दूक की मैगजीन की तरह बारूद की एक मैगजीन लगती है । ट्रिगर दबाने से बारूद में विस्फ़ोट होता है और इससे उत्पन्न हुआ दवाब कील को लकडी से होती हुये कंक्रीट में पैबस्त कर देता है । इसके बाद वाला काम सबसे मेहनत का था जिसमें छोटी छोटी कीलों (१.५ इंच) को हाथ के हथौडे से नियत स्थान पर बैठाना था । जैसा कि आप ऊपर वाले चित्र में देख सकते हैं । आज मैने कम से कम १२०-१५० कीलों को अपने मजबूत हाथों से उनके स्थान पर लगाया :-)

आज ह्यूस्टन की गर्मी अपने चरम पर थी और तापमान लगभग ४० डिग्री और आद्रता (Humidity) ६० प्रतिशत थी । हम लोगों के लिये ठंडे पानी का बंदोबस्त था । आज ४ अलग अलग मकानों पर काम चल रहा था और विभिन्न समूहों के लगभग ८० लोग काम पर लगे हुये थे । कुछ लोग सपरिवार आये हुये थे जिनसे मिलकर बडा अच्छा लगा । ह्यूस्टन की एक बडी दुकान (Mattress Firm) के लगभग २५ लोग साथ में आये हुये थे जिसमें काफ़ी लडकियाँ भी थी जो कन्धे से कन्धे मिलाकर लकडी उठा रही थीं और कील पर बेरहमी से हथौडा पटक रही थीं :-)

हम लोगों ने खुली धूप में सुबह ७ बजे से दोपहर १२ बजे तक काम किया और फ़िर "हैबिटेट फ़ॉर ह्यूमैनिटी" वालों ने गर्मी के चलते काम बन्द करवा दिया । इसके बाद हम सब लोगों ने साथ बैठकर अपने सैंडविच खाये और फ़िर घर वापिस लौट गये । हमारे स्कूल के साथियों ने अगस्त में फ़िर से एक बार यहाँ आकर काम करने का फ़ैसला लिया और सभी ने इसे ध्वनिमत से स्वीकार किया । बाकी आप फ़ोटो देखकर खुद ही समझ जायेंगे ।






                     जब ये मकान बनकर पूरी तरह तैयार हो जायेगा तो कुछ ऐसा दिखेगा ।

गुरुवार, जुलाई 17, 2008

दिल के लिये मुफ़ीद है दौडना !!!

किसी भी तरह का हल्का व्यायाम सेहत के लिये लाभदायक होता है । आज मैं अपने पसंदीदा व्यायाम अर्थात दौडने की बात करूंगा । दौडना का भिन्न भिन्न लोगों के लिये अर्थ भिन्न हो सकता है । लेकिन आज के लेख में दौडने से मेरा तात्पर्य किसी दौड का जीतने के उद्देश्य से दौडना नहीं बल्कि हल्के फ़ुल्के व्यायाम के रूप में दौडने से है । मान लीजिये आपने पिछले १० वर्षों में कभी दौड नहीं लगायी है (पत्नी के बेलन से बचने और ट्रेन को पकडने को छोडकर) तो भी आप इसको आसानी से नियमित रूप से अपना सकते हैं ।

दौडना दिल के लिये बडा मुफ़ीद होता है । दौडने से हृदय की मांसपेशियाँ विकसित होती हैं, हृदय के चैम्बर का आकार बडा होता है और हर स्ट्रोक में हृदय की रक्त भेजने की क्षमता बढती है । चूँकि आप हर स्ट्रोक में पहले से अधिक रक्त भेज सकते हैं इसलिये नियमित दौडने से सामान्य परिस्थितियों (जब आप दौड नहीं रहे हों) में आपके हृदय की प्रति मिनट धडकन कम हो जाती हैं । प्रति मिनट धडकन कम होने से आपके हृदय को आराम मिलता है और वो आपको दुआयें देता है । इससे आपके रक्तचाप में भी गिरावट आती है । पिछले १.५ वर्षों से नियमित दौडने के कारण सामान्य स्थिति में मेरा रक्तचाप ८०/१२० के स्थान पर ७०/११० तक आ गया है ।

दौडते समय शरीर की मांसपेशियों में आक्सीजन की नियमित खुराक पंहुचती रहे, इसके लिये आपका शरीर अपने आप ही ऊतकों में नयी शिराओं का निर्माण प्रारम्भ कर देता है । इससे हॄदय के अलावा अन्य मांसपेशियाँ भी स्वस्थ रहती हैं । तीसरा सबसे बडा फ़ायदा होता है कि आपके रक्त के हीमोग्लोबिन की आक्सीजन को ऊतकों तक पंहुचाने की क्षमता का भी क्रमश: विकास होता है ।

इसके अलावा बढा हुआ वजन पूर्व स्थान पर आ जाता है, आस पडौसी इज्जत की नजर से देखते हैं, चोर पर्स चुरा कर भागे तो आप उसे पकड सकते हैं । यदि आप युवा हैं तो अक्षय कुमार स्टाईल में किसी युवा लडकी का पर्स वापिस लाकर दे सकते हैं, और युवा नहीं हैं तो ऐसा करके पास खडे युवाओं को शर्मिन्दा कर सकते हैं :-)

ये सब तो आप सभी जानते हैं लेकिन न दौडने वालों की दो प्रमुख समस्यायें होती हैं । पहली कि जोश में आकर दो दिन दौडे और तीसरे दिन हाथ, पैर, कमर और हर जगह होने वाले दर्द के कारण फ़िर से न दौडने का निश्चय कर लेते हैं । दूसरी समस्या ज्यादा जोश के कारण होती है के वो एक हफ़्ते में ही अगली मैराथन दौड लेना चाहते हैं और इसके चलते चोटिल हो जाते हैं ।

इसलिये इसको थोडा वैज्ञानिक तरीके से समझते हैं ।




आपका आज का फ़िटनेस कुछ भी हो, अगर आप छ: सप्ताह तक किसी भी नये व्यायाम को करेंगे तो वो ही आपका नया फ़िटनेस बन जायेगा बर्शते कि आप अपने आप को बहुत ज्यादा फ़ंतासी की दुनिया में न ले जाये । मान लीजिये कि आप आज दौडना प्रारम्भ करते हैं तो आज २ किमी ही दौडिये और १० मिनट प्रति किमी की रफ़्तार से दौडिये । आपको बीस मिनट लगेंगे २ किमी दौडने में और सम्भव है कि ४ दिनों के बाद आपको लगे कि ये तो बहुत आसान है और आज में ३ किमी दौड लेता हूँ । ऐसे विचारों से बचे और कम से कम छः सप्ताह तक इस रूटीन को जारी रखें । छ: सप्ताह के बाद आप आगे प्रयोग कर सकते हैं जैसे कि रफ़्तार बढाना अथवा दूरी बढाना । नये लोगों के लिये रफ़्तार कम मायने रखती है और उन्हें दूरी बढाने का प्रयास करना चाहिये ।




इसके अलावा किसी साथी के साथ दौडना प्रारम्भ करना बहुत फ़ायदेमन्द होता है क्योंकि आप दोनों एक दूसरे को दिशानिर्देश देते हुये ट्रैक पर रखते हैं ।
इसके अलावा दो अन्य नियमों का पालन करना न भूलें ।

१) हाईड्रेट, हाईड्रेट, हाईड्रेट: अर्थात पानी पियें, पानी पियें और पानी पिंयें ।
२) जरूरत से ज्यादा अपने को कष्ट न दें, दौडने को जीवन का अंग बनायें न कि जीवन को दौडने का ।

इतनी सब जानकारी के बावजूद मैं एक सामान्य सा नियम भूल गया और एक ही महीने में अपनी मैराथन ट्रेनिंग को बहुत आगे ले जाने की चाहत में चोटिल हो बैठा । आज लगभग बीस दिनों के बाद ११ किमी दौडा हूँ और बहुत अच्छा अहसास हुआ है । ऐसा लग रहा है कि चोट से उबर चुका हूँ और अपनी आगे की ट्रेनिंग जारी रख सकता हूँ । मेरी ट्रेनिंग के बारे में जानकारी इस लिंक को क्लिक करके प्राप्त की जा सकती है । लाल रंग से लिखे हुये आंकडे मेरे चोटिल होने के बारे में जानकारी देते हैं ।




नीरज रोहिल्ला ।

सोमवार, जुलाई 14, 2008

सीटी पर मदन मोहन का गीत यूँ हसरतों के दाग

आज ही संजय पटेलजी ने अपने चिट्ठे पर मदन मोहन की बरसी पर बांसुरी पर उनके कुछ गीत प्रस्तुत किये हैं । मदन मोहन जी को याद करते हुये "अदालत" फ़िल्म के गीत "यूँ हसरतों के दाग" को राजेश कोप्पिकर के अंदाज में पेश कर रहा हूँ । राजेश जी के गीत मैने केवल यूट्यूब पर ही सुने हैं लेकिन उनकी कलाकारी काबिल ए तारीफ़ है । इस गाने के उतार चढावों को उन्होने जिस बारीकी से अपनी सीटी में संजोया है उसे सुनकर मन वाह वाह कह उठता है । लीजिये, पेश-ए-खिदमत है "यूँ हसरतों के दाग" :


इसी के साथ मेरी पसन्द का एक और गीत "पूछो न कैसे मैने रैन बिताई" भी राजेश जी की सीटी के माध्यम से सुनिये ।





इसके अलावा यू-ट्यूब पर राजेश जी के २५० अन्य गीतों को इस पेज पर देख सकते हैं ।





रविवार, जुलाई 13, 2008

एक महबूबा की याद और फ़िर उसका मर्सिया !!!

जब मैं भारत में था (जुलाई २००४ तक) तो कभी मोबाईल फ़ोन का इस्तेमाल नहीं किया था । कभी इसकी जरूरत ही महसूस नहीं हुयी और न ही जेब में इतने पैसे थे कि इसका खर्चा उठा सकते । उसके बाद अगस्त में ह्यूस्टन के राईस विश्वविद्यालय में आये तो भी घर में एक लैंड लाईन लगवाने के बाद काम चल ही रहा था लेकिन थोडी असुविधा जरूर थी । शुरू शुरू में एक दो फ़ोन कम्पनियों से कहा कि भैया एक ठो मोबाईल दे दो तो बोले तुम इस देश में नये नये आये हो और तुमने कभी यहाँ पर उधार नहीं लिया है इससे तुम्हारी नीयत का कोई भरोसा नहीं है । लिहाजा हम तुम्हे पोस्ट पेड फ़ोन तो तब ही देंगे जब ५०० डालर नकद जमा करोगे । प्रीपेड लेने से हमने इंकार कर दिया, चूँकि खुद इनकी सरकार ने हमपे भरोसा करके अपने शोध का जिम्मा हमें सौंपा और इन नालायकों को हमारी नीयत पर ही भरोसा नहीं ।

खैर दिन कटते रहे और एक दिन स्कूल में एक मोबाईल कम्पनी वालों ने अपना तम्बू लगाया और कहा कि हम १२५ डालर जमा करने पर फ़ोन दे देंगे । उन्होने ये भी कहा कि हमारी नीयत पर पूरा भरोसा है लेकिन ससुरे पेपर वर्क के चक्कर में १२५ ले रहे हैं और वो भी सूद समेत ६ महीने के बाद लौटा देंगे । हमारे दोस्त ने कहा अब सब्र भी करो और दे दो १२५ डालर । तो प्यारे साथियों जनवरी २००५ में पहली बार हमने भी मोबाईल ले लिया । इसी के साथ अमेरिका के मोबाईल के कुछ अलग ढंग भी पता चले । ध्वनि संदेश (व्याईस मेल) से पहली बार वास्ता पडा, फ़ोन मिलाओ और अगर बन्दा फ़ोन न उठाये तो उसके ध्वनि संदेश के बाद अपना संदेश रेकार्ड कर दो । हमने भी पहली बार अपनी आवाज में संदेश रेकार्ड किया (Hi, This is Neeraj. I am unable to take your call right now but if you will leave your name, number and a brief message I will get back to you as soon as possible). ये भी पता चला कि मोबाईल शिष्टाचार के मुताबिक अगर कोई आपको ध्वनि संदेश छोडे तो उसको वापिस काल करने की जिम्मेवारी आपकी होती है ।

मेरे पिताजी एक बार बडे नाराज हुये, उन्होने मेरी आवाज सुनी और सोचा फ़ोन लग गया है और मुझे डांटना शुरू कर दिया :-) बाद में पता चला तो खूब हंसे । ये भी पता चला कि यहाँ हर महीने एक नियत मिनट (मेरे वाले प्लान में ४०० मिनट) मिलते हैं । फ़ोन मिलाने और उठाने दोनो में मिनट कटते हैं लेकिन शाम को ७ बजे के बाद से सुबह ७ बजे तक और शनिवार और रविवार को मिनट नहीं कटते हैं । मेरे तो बमुश्किल १५० मिनट खर्च हो पाते थे और हर महीने २५० मिनट बेकार चले जाते थे । मेरे पास जो मोबाईल फ़ोन था वो बडा सी सादा सा था और पाषाणकालीन लगता था, उसमें फ़ोटो, इंटरनेट आदि की रंगबाजी भी नहीं थी । ये रहा उसका फ़ोटो:


अब जल्दी से तीन साल आगे बढाते हैं और अचानक से हमने एक धांसू और चांपू सा फ़ोन लेने का निश्चय कर लिया । हमने नया फ़ोन लिया मोटोरोला Q9C, इसका फ़ोटो भी हाजिर है । ये फ़ोन तो एकदम जादू का पिटारा था, फ़ोन के साथ साथ इंटरनेट का तेज रफ़्तार कनेक्शन, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS), लाईव सर्च, टाईप करने के लिये बढिया की बोर्ड । ये नहीं कि "S" टाईप करना हो तो एक ही बटन को ४ बार दबाओ । खाने खाने जाना हो, तो फ़ोन को आदेश करो कि मैक्सिकन रेस्तरां खोजो और ३ मील के अन्दर के सभी रेस्तरां हाजिर । फ़िर बोलो कि हम जहाँ खडे हैं वहाँ से इस जगह जाने का रास्ता बताओ तो GPS की मदद से टर्न बाई टर्न निर्देश मिल जाते थे । सबसे मस्त लगता था कि पार्किंग लाट से अपनी लैब तक आते आते मैं १५-२० चिट्ठे पढ डालता था । आऊटलुक से मेरी ईमेल पलक झपकते मिल जाती थी । कुल मिला कर ये फ़ोन मेरी महबूबा बन गया था ।

लेकिन हर खुशी की उम्र छोटी ही होती है । ९ जुलाई की रात को हमारे युनिवर्सिटी के स्टूडेंट पब में मित्र लोगों के साथ बैठकर बीयर की चुस्कियों के साथ शतरंज खेलते हुये अचानक फ़ोन पर बात करने के बाद मैने फ़ोन को जेब में रखने की बजाय मेज पर रख दिया और दस मिनट बाद उसकी सुध ली तो वो वहाँ से गायब था । बडा दुख हुआ, फ़ोन खोने से बडा दुख इस बात का हुआ कि स्टूडेंट पब से फ़ोन चोरी हुआ हांलाकि उसमें कभी कभी स्कूल से बाहर के लोग भी आते हैं । इससे हमने सोचा कि घोर कलयुग आ गया है । अब बताईये शराबियों का भरोसा नहीं कर सकते तो आप आम लोगों की बात तो छोड ही दीजिये ।

हमने २ दिन तक इन्तजार किया कि शायद कोई तरस खाकर फ़ोन वापिस कर दे लेकिन ऐसा नहीं हुआ । मन मसोसकर अपने कमरे के एक कोने के कबाडे में उपेक्षित से पडे पुराने नोकिया वाले फ़ोन को झाड पोंछकर चमकाया और चालू किया । जब तक नया फ़ोन खरीदने के पैसे इकट्ठे न हों जाये, पुराने फ़ोन को ही कलेजे से लगाये रखना पडेगा । 

सोमवार, जुलाई 07, 2008

सागर चन्द नाहर भाई जी को जन्मदिन की बधाइयां |




आज हम सब के मित्र और प्यारे सागर चन्द नाहर जी का जन्मदिवस है | सागर भाईजी के संगीत ज्ञान और उनके सरल स्वभाव के बारे में कुछ भी लिखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनके बारे में सब लोग जानते हैं | उनसे जो भी एक बार बात कर ले उनके सरल स्वभाव से प्रभावित हुये बिना नहीं रहता |

हम सब की ओर से सागर भाईसाहब को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें |

नीरज रोहिल्ला