आज पूरा दिन संगीत सुनने में बिताया कितने ही गीत और बंदिश जो महीनों से नहीं सुने थे अपनी हार्ड डिस्क पर खोज खोज कर सुने और मन भरकर आनन्द लिया । आपको आनन्दमय करने के लिये पेश-ए-खिदमत है पं रविशंकर जी का बजाया हुया द्रुत गत पर राग अडारिनि (ये बहुत कुछ राग खमज जैसा है), बाकी जिनके कान की तैयारी हो चुकी है वो फ़र्क बता पायेंगे । हम तो वही कह रहे हैं जो सीडी के कवर पर लिखा है ।
कान की तैयारी: कहा जाता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने में बहुत से घरानों में पहले आपको संगीत सुनाया जाता है जिसमें आप उसकी बारीकियों को पकडते हैं, इसके बाद जब आपका कान तैयार हो जाता है उसके बाद गाना/बजाना सिखाया जाता है । मैं अभी कुछ रागों को ही सुनकर पकड पाता हूँ बाकी के लिये सीडी का कवर देखना पडता है :-)
शनिवार, दिसंबर 13, 2008
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वादन मधुर है, पर कान बहुत तैयार नहीं हैं।
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