शनिवार, मई 24, 2008

तेल और भविष्य के ऊर्जा स्रोत: भाग २

मेरी आज की पोस्ट आलोक पुराणिकजी की पोस्ट से प्रेरित है । उन्होनें अपनी पोस्ट में भारत के परिपेक्ष्य में तेल के बढते दामों की विवेचना की है (और ये व्यंग नहीं है ) ।

ये रहा उनकी पोस्ट का लिंक:

कुछ समय पहले मैने ऊर्जा के सन्दर्भ में एक पोस्ट ("तेल और भविष्य के उर्जा स्रोत: भाग १") लेखी थी । आज उस कडी का दूसरा भाग प्रस्तुत है ।

ये रही उस लेख की पहली कडी:

ये लेख थोडा लम्बा अवश्य है लेकिन प्रयास करके इसे पूरा पढें और अपनी राय से अवगत करायें कि इसे आगे चालू रखा जाये कि नहीं


जब मैने पहली कडी लिखी थी तब कच्चे तेल का दाम ~१२० डालर प्रति बैरल था और इस समय पोस्ट लिखते समय कच्चे तेल का दाम लगभग ~१३२ डालर प्रति बैरल है । इस सीधा मतलब है कि २२ दिनों में कच्चे तेल में १० प्रतिशत की वृद्धि हो गयी है । आज इसकी कोई गारंटी नहीं ले सकता कि अगले २ महीने में इसका दाम १५० डालर प्रति बैरल नहीं पंहुच जायेगा । भारत में अगर मीडिया की बात मानी जाये तो पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि सम्भावित है । अमेरिका में इसका प्रभाव दिख ही रहा है । चुनाव समीप है और दोनो राजनैतिक पार्टियाँ तेल कम्पनियों को गरियाने पर तुली हैं । उनके कुछ तर्क ठीक हैं और कुछ तर्क कुछ उस प्रकार के कि अगर पानी में से बिजली निकाल ली तो किसानों के लिये क्या बचेगा...:)

एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि कच्चे तेल के दामों को कौन नियन्त्रित करता है ? क्या तेल कम्पनियाँ सीधे रूप से तेल के दामों को नियन्त्रित करती हैं? अगर तेल कम्पनियाँ नहीं तो फ़िर क्या बिचौलिये और दलाल तेल के दामों निर्धारित करते हैं । तेल की पिछले दो महीने की तेजी देखी जाये तो ये मूल रूप से आपूर्ति-खपत और बिचौलियों/ट्रेडर्स के व्यवहार से सम्बन्धित है । आपूर्ति की बात बाद में करेंगे, पहले बिचौलियों/ट्रेडर्स के व्यवहार पर ध्यान देते हैं ।

जिस प्रकार आप सोना, डालर, रूपया, शेयर बाजार आदि में पैसे का निवेश करते हैं, उसी प्रकार बहुत से ट्रेडर्स कच्चे तेल में पैसा निवेश करते हैं । कच्चे तेल में निवेश आम तौर पर शार्ट-टर्म (कम अवधि वाला) होता है । जब जब आपूर्ति में थोडी सी भी कमी महसूस की जाती है, ट्रेडर्स जानते हैं कि कच्चे तेल के दाम बढेंगे और वो फ़टाफ़ट तेल में निवेश आरम्भ कर देते हैं । ऐसा करने से बाजार में एक असुरक्षा का माहौल बनता है और तेल के दाम तेजी से चढते हैं । ऐसी स्थिति में अगर तेल कम्पनियाँ (ओपेक OPEC और अन्य प्राईवेट कम्पनियाँ Shell, Exxon Mobil, BP, Chevron, Connocco Phillips, PetroBras, PEMEX आदि) तेल की आपूर्ति बनाये रखती हैं तो बाजार संभला रहता है । परन्तु आपूर्ति में जरा सी भी कमी अथवा नाईजीरिया की तेल पाईप में विस्फ़ोट, OPEC वालों का ऊँचे लहजे में कोई संवाद आदि कोई भी घटक बाजार को गिरा सकते हैं ।

इस हफ़्ते हमने देखा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने सऊदी अरब से उत्पादन बढाने की गुजारिश की जिसे सऊदी अरब ने तुरन्त ठुकरा दिया । इससे अमेरिका का खासी फ़जीहत भी हुयी और तेल के दाम भी नहीं गिरे । एक और नयी बात ये हुयी कि अमेरिका की संसद ने अमेरिकी न्यायिक विभाग (American Justice Department) को OPEC पर मुकदमा चलाने की ताकत प्रदान की है । महत्वपूर्ण बात है कि अभी साफ़ नहीं है कि ये मुकदमा किन स्थितियों में चलाया जा सकता है । इसके बारे में अन्य जानकारी का इन्तजार है, लेकिन फ़िलहाल ऐसा कोई मुकदमा दूर दूर तक नहीं देख रहा है लिहाजा ये मात्र एक कूटनीतिक कदम है । तेल की मंहगी कीमतों के बावजूद तेल कम्पनियों की रेकार्ड कमाई सभी की आंखो में किरकिरी बनी हुयी है । पिछले हफ़्ते वाशिंगटन में एक संसद समिति ने अमेरिका की छ: प्रमुख तेल कम्पनियों के अधिकारियों की खिंचाई की थी । Shell के प्रमुख ने कहा कि उनकी कम्पनी तेल के ६०-८० डालर के दाम पर भी मुनाफ़ा कमा सकती है । उन्होने ये भी कहा कि वो हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं कि तेल का दाम न बढे परन्तु जब तक स्वयं अमेरिका में तेल का उत्पादन नहीं बढाया जाता, तेल के दामों को नियन्त्रित करना बहुत कठिन है ।

अब आपूर्ति की बात करते हैं । पिछले लेख में हमने पढा था कि वैज्ञानिक अनुमानों से तेल की कमी नहीं है । परन्तु तेल के उपस्थित होने (In principle) और उसकी आपूर्ति दो अलग अलग बाते हैं । तेल कम्पनियाँ बहुत आक्रामक रूप से नये वैज्ञानिकों और इन्जीनियरों को भर्ती करने की फ़िराक में हैं लेकिन फ़िर भी हर कम्पनी अच्छे लोगों की कमी का रोना रो रही है । पुरानी तकनीक अब पुरानी पड रही है और नयी तकनीक विकसित होने में समय लेती है । अमेरिका के परिपेक्ष्य में बात की जाये तो अलास्का और कैलीफ़ोर्निया के तट पर तेल के उत्पादन पर रोक लगी हुयी है । पर्यावरणविद कहते हैं कि दोनों ही स्थानों पर तेल निकालने से पर्यावरण को भारी क्षति हो सकती है । लगभग ३०-३५ वर्ष पहले कैलीफ़ोर्निया के तट पर तेल उत्पादन का प्रयास हुआ था, लेकिन कुछ पर्यावरण समबन्धी समस्याओं के चलते वहाँ तेल उत्पादन पर ३० साल की पाबन्दी (Moratorium) लगा दी गयी थी । आज तेल कम्पनियों का दावा है कि वो बिना पर्यावरण को क्षति पँहुचाये वहाँ से तेल का उत्पादन कर सकते हैं लेकिन अमेरिका में नवन्बर में चुनाव आने वाले हैं और तब तक इस सम्बन्ध में कुछ भी तय हो पाना मुश्किल लगता है ।

अमेरिका में तेल का उत्पादन प्रारम्भ होने से भारत/चीन को अप्रत्यक्ष रूप से बहुत फ़ायदा होगा । तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिये अमेरिका में तेल का उत्पादन बढने अथवा गैर पारम्परिक स्रोतों पर अधिक ध्यान देने से तेल के दामों में काफ़ी कमी आ सकती है । ऐसा होने से भारत और चीन को इसका सीधा फ़ायदा मिलेगा ।


दूसरा पहलू: मुझे नहीं लगता कि तेल का दाम लान्ग-टर्म (Long-Term) में गिरने वाला है । मान लीजिये आपके घर में मिठाई बनाने का कारखाना है और आपके शहर में मिठाई की लत बढती जा रही है । ऐसे में रोज आपके घर के बाहर भीड लगती है और मिठाई दलालों के माध्यम से बाँटी जाती है । जैसे जैसे भीड बढती है आप मिठाई का दाम बढाते हैं । अगर आप एक साथ मिठाई का उत्पादन दो गुना कर दें तो लोग दो दिन की मिठाई एक साथ खरीद सकते हैं और अगले दिन भीड कम हो सकती है । लेकिन भीड कम होने से दलालों को मिठाई का दाम कम करना पड सकता है ।

ऐसे में दलाल आपसे कहते हैं कि तुम मिठाई का उत्पादन इस अनुपात में बढाओ कि झींगा-मुश्ती के बाद सबको मिठाई मिल जाये लेकिन आराम से न मिले । इससे लोग मिठाई भी खा लेंगे, तुमको भी खूब मुनाफ़ा होगा और हम भी ऐश करेंगे । लोग दाम बढने पर झल्लायेंगे, लेकिन फ़िर अपनी आदत से मजबूर होकर वापिस खरीदने आयेंगे।  मुझे लगता है कि तेल के साथ भी ऐसा हो रहा है ।

आपकी क्या राय है???








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चित्रों द्वारा कांटिनेन्टल ड्रिफ़्ट की कहानी!!!

Geology अथवा भूविज्ञान विज्ञान की चमक्कृत कर देने वाली शाखा है । इस शाखा से सम्बन्धित आज की कडी में हम "कान्टिनेंटल ड्रिफ़्ट" के बारे में जानेंगे ।

पहले मैं इस विषय पर केवल लेख लिखने के बारे में सोच रहा था लेकिन बाद में सोचा कि इस कहानी को चित्रों के माध्यम से सुनाया जाये तो अधिक रोचक रहेगी । Abraham Ortelius (1596), Francis Bacon (1620), Benjamin Franklin, Antonio Snider-Pellegrini (1858) नाम के विभिन्न विचारकों ने काफ़ी पहले सोचा था कि विभिन्न प्रायद्वीपों के एक साथ रखा जाये तो एक चित्र पहेली सी बनती है और ऐसी सम्भावना हो सकती है कि लाखों वर्ष पहले ये सभी प्रायद्वीप आपस में जुडे हुये हों ।

Alfred Wegener ने १९१२ में इस विषय पर गहन शोध किया और केवल द्वीपों की आकृति ही नहीं बल्कि विभिन्न चट्टानों और जीवाष्मों का अध्ययन करके Continental Drift का सिद्धान्त प्रस्तुत किया । वेगनर के अनुसार लगभग ३००० लाख वर्ष पहले सभी द्वीप आपस में जुडे हुये थे और धीरे धीरे ये द्वीप एक दूसरे से खिसकते चले गये । भारतीय द्वीप कुछ समय के लिये एक अलग द्वीप बना लेकिन कालान्तर में यूरेशिया द्वीप से टकरा गया और इस प्रकार महान हिमालय की पहाडों की रचना हुयी ।

वेगनर के सिद्धान्त को शुरूआत में वैज्ञानिकों ने अधिक महत्व नहीं दिया लेकिन इसके बावजूद वेगनर १९१०-१९३० तक अपने सिद्धान्त के पक्ष में तर्क एकत्र करते रहे । वेगनर अपने समकालीन वैज्ञानिकों को ये न समझा सके कि इतने विशालकाय द्वीप किस बल के कारण एक दूसरे से इतने दूर चले गये । वेगनर ने द्वीपों की गति के लिये दो विचार प्रस्तुत किये थे लेकिन ये दोनो ही विचार लगत थे । इसके कारण वेगनर के सिद्धान्त को लगभग १९५०-६० के आस पास ही वैज्ञानिकों की स्वीकृति मिल सकी ।

इसके बाद की कहानी आप चित्रों को देखें और खुद ही समझें :-)



चित्र १: अफ़्रीका और दक्षिणी अमेरिका एक दूसरे के साथ ऐसे फ़िट होते हैं
जैसे किसी चित्र पहेली का भाग हों । इसके अलावा गुलाबी रंग से दर्शायी हुयी
एक प्रकार की चट्टानों एवं भूसंरचना का अफ़्रीका और दक्षिणी अमेरिका में पाया
जाना इस थ्योरी को अधिक बल प्रदान करती है ।



चित्र २: विभिन्न प्रायद्वीपों की लाखों वर्ष पहले की स्थिति


चित्र ३: एक एनिमेशन जिसके द्वारा आप देख सकते हैं कि समय के साथ
विभिन्न प्रायद्वीप किस प्रकार अलग अलग हुये ।


इस चित्र में आप देख सकते हैं कि केवल चट्टाने ही नहीं बल्कि विभिन्न जीवों के जीवाश्म भी इस थ्योरी को बल प्रदान करते हैं ।




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बुधवार, मई 07, 2008

बिना मेहनत पी.एच.डी. करें, कोई क्लास एक्जाम भी नहीं!!!

आज तो हद ही हो गयी, रोज लगभग ५०-१०० ईमेल आती रहती थीं तरह तरह के आफ़रों के साथ, ऐसे आफ़र जो सडक पर चादर बिछाकर रंग बिरंगी शीशी में जादुई दवाई बेचने वालों को भी मात कर दें । लेकिन हमने कुछ नहीं कहा । आज तो सब्र का इम्तिहान हो गया । लीजिये पढिये इसको...

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गया आज का दिन तो पानी में, इस मेल को भी सुबह सुबह ही आना था :-)
बू हू हू.....

कोई दर्द को और न बढा दे, इसीलिये अपनी टिप्पणियों में इन बातों का ख्याल रखें :-)

गुरुवार, मई 01, 2008

तेल और भविष्य के ऊर्जा स्रोत : भाग १

चिट्ठाजगत कभी कभी मुझे अचंभित कर देता है । आज ही मैने "Peak Oil Panel Discussion" में भागीदारी की और आज ही अपने ज्ञानदत्त पाण्डेयजी ने तेल पर एक लेख लिख डाला । मैं इस पैनल डिस्कशन के बाद ऊर्जा और तेल पर लेखों की एक सीरीज लिखने के बारे में सोच रहा था लेकिन पाण्डेय जी ने अपने लेख से उस सोच को मूर्त रूप दिया है । इसलिये पेश है इस सीरीज का पहला लेख:

पिछले कुछ महीनो में शायद कोई ही हो जिसने कच्चे तेल की बढती कीमतों पर विचार न किया हो । कल कच्चे तेल का दाम ~ १२० डालर प्रति बैरल था; लेकिन आज से लगभग ४ वर्ष पहले ५० डालर प्रति बैरल का दाम असम्भावित सा लगता था । मैं अपनी रोजी रोटी तेल से सम्बन्धित शोध कार्य से कमाता हूँ इसलिये इस क्षेत्र की अधिक से अधिक जानकारी रखना मेरी मजबूरी है । इस विषय से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने के लिये मैं इस सीरीज को आरम्भ कर रहा हूँ और मुझे खुशी होगी अगर आपके प्रश्नों को इस सीरीज में शामिल किया जा सके ।


तेल से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न हैं।

१) क्या अगले १०-२०-३० वर्षों में तेल समाप्त हो जायेगा ?
२) अगर नहीं तो तेल का दाम अगले वर्षों में क्या होगा ?
३) तेल के बाद का भविष्य क्या है ? क्या तेल के समाप्त होने के बाद हम आर्थिक स्पाईरल (Downwards) देखेंगे ?
४) तेल के आगे और जहाँ कौन कौन से हैं?

आज हमारे पास कितना तेल बचा है इसका अलग लोगों के पास अलग जवाब है । लेकिन उससे पहले कुछ तथ्य इस प्रकार हैं । आज तक कुल मिला कर हम सब ने लगभग १ ट्रिलियन बैरल तेल का उपयोग किया है ।

१ ट्रिलियन बैरल = १००० बिलियन बैरल = १०००,००० मिलियन बैरल = १०‍^(१२) बैरल

तेल के मामले में हबर्ट का सिद्धान्त बेहद प्रसिद्ध है । हबर्ट के अनुसार जब कच्चे तेल का उत्पादन अपने चरम पर होगा उस समय तक हमने अपने तेल का ५० प्रतिशत भाग प्रयोग कर लिया होगा । उसके बाद चाहकर भी हम तेल का उत्पादन एक निश्चित दर पर नहीं रख पायेंगे और तेल का उत्पादन गिरता रहेगा जब तक कि हम पूरा तेल प्रयोग नहीं कर लेते । हबर्ट ने अमेरिका के सन्दर्भ में कहा था कि तेल का उत्पादन १९६८ में अपने चरम पर होगा और १९७० में अमेरिका में तेल का उत्पादन अपने चरम पर था । १९७० के बाद अमेरिका में तेल का उत्पादन लगातार गिरता जा रहा है । इस लिहाज से देखा जाये तो हबर्ट का सिद्धान्त अमेरिका के सन्दर्भ में लगभग सही सिद्ध सा होता दिखता है ।

अगला महत्वपूर्ण प्रश्न है, कि क्या ग्लोबल तेल उत्पादन में भी हबर्ट का सिद्धान्त लागू होता है । क्या ग्लोबल तेल उत्पादन भी अपने चरम पर आकर गिरना शुरू होगा ? अगर हाँ तो ये कब होगा, या फ़िर ग्लोबल तेल उत्पादन अपने चरम पर आ चुका है ? यदि ऐसा है तो क्या हमारे पास केवल अगले १०-२०-३० साल का तेल बाकी है ? अगले कुछ सालों में तेल के दाम बढने/घटने की क्या सम्भावना है ? भारत और चीन जैसे विकासशील देश ग्लोबल तेल की आपूर्ति और दामों पर क्या असर कर रहे हैं ?

इस सीरीज में हम ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे । इस सीरीज की पहली कडी को पूर्ण करने के लिये हम एक प्रश्न की तह में जाने का प्रयास करेंगे । बाकी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर क्रमश: अगली कडियों में मिलेंगे ।

प्रश्न १: आखिर कुल कितना तेल बाकी है इस धरती पर ???

उत्तर:
कच्चे तेल को दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है । पहला Conventional Oil  और दूसरा Un-Conventional Oil । Conventional Oil का मतलब है कि ऐसा तेल स्रोत जिससे अभी तक तेल निकाला जाता रहा  है । उदाहरण के तौर पर सऊदी अरब, मेक्सिको, लिबिया, नाईजिरिया और अन्य सभी सुने हुये स्रोत । Conventional Oil निकालने के लिये तरीका आसान है । पहले तेल का कुँआ खोदकर Pressure Depletion से जितना तेल निकले निकाल लो । उसके बाद पानी Inject करके और तेल निकालो । Conventional Oil लगभग ६ से ९ ट्रिलियन बैरल की मात्रा में उपलब्ध है ।

Un-conventional Oil के कई प्रकार हैं, कनाडा में उपलब्ध Tar sand, अमेरिका और अन्य स्थानों पर उपलब्ध Oil Shale और अन्य भारी तेल के स्रोत  । इसके बारे में इतना समझ लें कि ये टेढी खीर है । इस प्रकार के तेल की श्यानता (Viscosity) इतनी अधिक होती है कि ये आसानी से बहता (Flow) नहीं करता है और इसके बारे में आजकल काफ़ी शोध चल रहा है । Un-Conventional Oil लगभग २ से ७ ट्रिलियन बैरल की मात्रा में उपलब्ध है ।

इसके अलावा महत्वपूर्ण है कि इसमें से Recovery Efficiency क्या है ? मान लीजिये १०० बैरल तेल मौजूद है तो इसमें से अगर आप ४० बैरल निकाल पायें तो आपकी Recovery Efficiency 40 % हुयी । आजकल ग्लोबली Recovery Efficiency लगभग ३०-३५ % है । Un-Conventional Oil के सन्दर्भ में Recovery Efficiency लगभग १०-२० % है ।

इस लिहाज से देखा जाये तो अभी भी लगभग ४-६ ट्रिलियन बैरल तेल अभी और निकाला जा सकता है । दूसरे शब्दों में अभी केवल एक चौथाई से भी कम तेल निकाला गया है । इस अंदाजे से अभी ग्लोबल हबर्ट पीक दूर की कौडी है । तेल मौजूद है बस निकालने वाले चाहिये । इसमें भी एक समस्या है, अगर तेल की माँग बढती गयी और इसी दर से तेल की आपूर्ति नहीं बढी तो निश्चित तौर पर तेल के दाम बढेंगे । जैसे जैसे तेल के दाम बढेंगे, तेल कम्पनियों का फ़ायदा बढेगा और तेल कम्पनियाँ Un-Conventional Oil/Alternate Energy में निवेश करके भविष्य के तेल/ऊर्जा की माँग के सन्दर्भ में आपूर्ति सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगी ।


बाटम लाईन: अभी चिंतित होने की जरूरत नहीं है । तेल है और अगले ३०-५०-६०-८०-१०० वर्षों तक रहेगा । लेकिन केवल तेल के रहने से समस्यायें हल नहीं होंगी, इसीलिये इस लेख की अगली कडी में हम अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करेंगे ।


यदि इस सन्दर्भ में आपके कोई प्रश्न हैं तो आप टिप्पणी के माध्यम से पूछ सकते हैं । हम उनके उत्तर देने का भरसक प्रयास करेंगे ।