शुक्रवार, मई 29, 2009

धावक क्लब का वार्षिक सम्मेलन, राजनीति, चुनाव और हमारा ईनाम !!!

कल शाम को हमारे रनिंग क्लब का वार्षिक सम्मेलन था। इसमें पूरे साल में होने वाली विभिन्न दौडों के आधार पर ईनाम दिये जाते हैं, पूरे साल के लिये हुये कुछ चुनिंदा फ़ोटो का स्लाईडशो चलाया जाता है और सबसे महत्वपूर्ण कि नये कमेटी का चयन किया जाता है।

हमारे रनिंग क्लब में लगभग ४०० लोग हैं और ये ह्यूस्टन का काफ़ी सम्मानित रनिंग क्लब है। हम पिछले साल की कमेटी में Member At Large थे। हमारी जिम्मेदारी थी कि इस बूढे होते क्लब में फ़िर से जवान लोगों की भर्ती की जाये और एक नये खून का संचार किया जाये। मेरे ख्याल से इस काम में मुझे सफ़लता मिली लेकिन मंजिल अभी दूर है। इस बार फ़िर से चुनाव के समय लोगो ने हमें Member At Large के लिये उम्मीदवार नामित किया जिसे हमने नम्रता से स्वीकार कर लिया। इस साल तीन मेम्बर एट लार्ज के पद के लिये चार उम्मीदवार थे तो हमें थोडी इलेक्शन कैम्पेनिंग भी करनी पडी :-)

प्रेसीडेंट के लिये इस बार का चुनाव महत्वपूर्ण था। पिछले दो वर्षों से प्रेसीडेंट रहे एडी (Eddie) के मुकाबले हमारे चहेती कैथी (Kathi) मैदान में थी। आप कैथी की इलेक्शन कैम्पेन का ये वीडियो देखिये,


प्रेसीडेंट के लिये मतों का अन्तर इतना कम था कि गिनने वालों को अलग शान्त कमरे में जाकर ३ बार गिनती करनी पडी। मतों की गिनती के बाद कैथी विजयी घोषित हुयी और हम भी मेंबर एट लार्ज फिर से चुन लिए गए :-)

कुल दिए जाने वाले ईनाम इस प्रकार थे,

1) Best Runner of the Year (Male, 10 prizes total)
2) Best Runner of the Year (Female, 10 prizes total)
3) Most Improved Runner of the year (2 prizes)
4) Best Newcomer of the year (1 prize)
5) Top Gun (Fastest runner 2 each for male and female)

इस बार के इनामों में एक इनाम हमें भी मिला, और ये रहा हमारा कच्चा चिट्ठा जिसके चलते हमें ईनाम मिला :-)

दौड़                        समय (२००८)    समय (२००९)     % Improvement
Half-Marathon (21.1 km)   1:53:54        1:34:41           16.8 %
10 Kilometers              0:48:12        0:41:09           16 %








(चुनाव जीतने के बाद हम और एना खुशी मनाते हुए, :-) )

सोमवार, मई 25, 2009

फ़िल्म तुम्हारा कल्लू की एक सुन्दर कव्वाली ...

अभी कुछ महीनो पहले एक मंदिर की वीडियो लाईब्रेरी में कुछ डीवीडी देखते देखते बासु भट्टाचार्य की १९७५ की फ़िल्म "तुम्हारा कल्लू" पर नजर पडी। ऐसे ही बिना सोचे खरीद ली और देखी तो अच्छी फ़िल्म लगी। सबसे खास लगी इस फ़िल्म की एक कव्वाली जिसे आज आपकी खिदमत में पेश कर रहे हैं।
कव्वाल शंकर शंभू हैं जो पहले दिल्ली में रहते थे, अब भी शायद दिल्ली में ही हों। फ़िलहाल आप इस कव्वाली का आनन्द लें:

आप ही ने बनायी ये हालत मेरी,
आप ही पूछते हैं ये क्या हो गया।

आप से तुम हुये तुम से फ़िर तू हुये,
देखते देखते क्या से क्या हो गया।

कुछ परेंशा परेंशा सा है कारवां,
क्या कोई राहजन रहनुमा हो गया।

उड रही हैं फ़जाओं में चिन्गारियाँ,
क्या चमन में कोई हादसा हो गया।

एक सजदे की मोहलत अजल से मिली,
मुंह दिखाने का कुछ सिलसिला हो गया।

दिल पे ऐ दिल नजर उनकी ऐसी पडी,
एक ही वार में फ़ैसला हो गया।




रविवार, मई 24, 2009

संगीता पुरी जी के वैज्ञानिक प्रयोग पर मेरी राय !!!

संगीता पुरीजी अपने चिट्ठे पर गत्यात्मक ज्योतिष से सम्बन्धित लेख लिखती हैं। वो अक्सर प्रयास भी करती हैं कि कैसे गत्यात्मक ज्योतिष को विज्ञान सम्मत सिद्ध किया जा सके। मुझे उनके विचारों से सहमति नहीं है लेकिन उनके प्रयासों के प्रति निश्चित रूप से सम्मान का भाव है। अगर वास्तव में इस विज्ञान साबित किया जा सके तो यकीन मानिये मुझसे ज्यादा खुशी किसी को नहीं होगी। इसके विपरीत अगर आधे अधूरे तर्कों के माध्यम से इसे विज्ञान सम्मत बनाया गया तो इसमें गत्यात्मक ज्योतिष और स्वयं संगीताजी की हानि है।

इसी के चलते मैं उनकी मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणी वाली पोस्ट और ब्लाग जगत से सम्बन्धित १०००० लोगों का डेटा इकट्ठा करने वाली पोस्ट के सम्बन्ध में अपनी राय रख रहा हूँ।

१) मौसम सम्बन्धी पोस्ट पर उनसे टिप्पणी के रूप में बातचीत के बाद लगा कि उन्होने ग्रहों की स्थिति से समूचे भारत के मौसम के बारे में पूर्वानुमान किया कि... उन्ही के शब्दों में (मेरे प्रश्न पर उनकी जवाबी टिप्पणी में):

"१ मई से ४ मई के बीच में अधिकांश जगह बारिश का योग है और लगभग पूरे भारतवर्ष में मौसम गडबड रहेगा"

इस भविष्यवाणी को जाँचने का सही तरीका है कि आप आंकडे देखें कि भारत वर्ष के लगभग ६०० जिलों में से कितनों में बरसात हुयी अथवा मौसम गडबड रहा। अगर आप ४-६-१० स्थानों पर बारिश देखकर अपनी भविष्यवाणी को सच मानती हैं तो ये वही बात हुयी जो मेरी बडी बहन कहा करती थी जब वो कक्षा ७ में थी। मेरी बहन कहती थी कि उसकी क्लास में उसकी तीन सहेलियों के मामा दिल्ली में रहते हैं इसका मतलब कि अधिकांश बच्चों के मामा दिल्ली में रहते हैं।

असल में अगर ६०० में से ५०० में भी बरसात हुयी हो तो भी ये फ़ूल-प्रूफ़ विज्ञान नहीं बन जाता लेकिन मुझे लगता नहीं कि इससे आगे जाने की नौबत आयेगी।

२) इसके अलावा आपने अपनी दूसरी पोस्ट में लिखा कि:

"इसके बावजूद 'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' का दावा है कि 25 अगस्‍त से 5 सितंबर 1967 तक या उसके आसपास जन्‍म लेनेवाले सभी स्‍त्री पुरूष 2003 के बाद से ही बहुत परेशान खुद को समस्‍याओं से घिरा हुआ पा रहे होंगे .. उसी समय से परिस्थितियों पर अपना नियंत्रण खोते जा रहे होंगे .. और खासकर इस वर्ष जनवरी से उनकी स्थिति बहुत ही बिगडी हुई हैं .. परेशानी किसी भी संदर्भ की हो सकती है .. जिसके कारण अभी भी वे लोग काफी तनाव में जी रहे हैं .. वैसे ये किसी भी बडे या छोटे पद पर .. किसी भी बडे या छोटे व्‍यवसाय से जुडे हो सकते हैं और कितनी भी बडी या छोटी संपत्ति के मालिक हो सकते हैं .. पर परेशानी वाली कोई बात सबमें मौजूद होगी"

आप चालीस वर्ष के आस-पास के लोगों की बात कर रही हैं। जो:
A) समस्याओं से घिरा पा रहे हैं
B) परिस्थितियों से नियन्त्रण खोते जा रहे हैं
C) इस वर्ष जनवरी से स्थिति बहुत ही बिगडी हुयी है
D) वो तनाव में हैं
E) परेशानी वाली कोई बात सबमें मौजूद रहेगी

मैं कहता हूँ कि किसी भी उम्र वर्ग के लोगों से बात करके देख लीजिये, सबका जवाब हाँ में ही होगा। कौन परेशान नहीं है।
अगर आप इस प्रयोग को लेकर आगे बढती भी हैं तो आपको कई अन्य प्रयोग भी करने चाहिये। मसलन अगर अन्य उम्र वर्ग के लोग भी इसका जवाब हाँ में दें तो आप अपने डेटा की व्याख्या कैसे करेंगी?

किसी भी वैज्ञानिक प्रयोग को biased नहीं होना चाहिये। मसलन आप सर्वे करा कर देखिये:

क्या देश के युवा संस्कृतिविहीन होते जा रहे हैं। आपको मनमाफ़िक जवाब मिलेगा इसे Rhetoric के क्षेत्र में Appealing to Character कहते हैं। आप ऐसा प्रश्न बुनें जिसका जवाब वही हो जो आप सुनना चाहें।

हमने आपके सवाल को १५ लोगों से पूछा।

१) चालीस वर्ष के आसपास के लोग ६ थे। २ खुश हैं, ३ ने कहा कि पाँचो (A से E तक) में से कुछ न कुछ तो हमेशा गडबड रहेगा, और १ ने जवाब देने से इंकार कर दिया।
२) ९ लोग २५-३२ वर्ष की उम्र के थे। सभी दुखी हैं, तनाव में हैं, मन्दी चल रही है :-)

अन्त में संगीताजी से अनुरोध है कि अगर वो सच में वैज्ञानिक रुप से अपनी थ्योरी को जाँचना चाहती हैं तो इसके लिये शार्टकट से काम नहीं चलेगा। किसी भी अच्छी यूनिवर्सिटी के Statistics विभाग से सम्पर्क करें अथवा Statistics से सम्बन्धित शोधपत्रों को देखकर अपने Un-biased प्रयोग बनायें जिससे की वास्तव में आपके सिद्धान्तों की पुष्टि हो सके।

इस विषय में अधिक बातचीत के लिये कोई भी अपनी टिप्पणी (मर्यादित) दे सकते हैं अथवा मुझसे ईमेल पर सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं।

आभार,
नीरज रोहिल्ला





सोमवार, मई 18, 2009

अंकुर वर्मा की ह्यूस्टन यात्रा का विवरण: कोई ब्लागर मीट नहीं !!!

नोट: देर आये दुरूस्त आये की तर्ज पर इस पोस्ट को छाप रहे हैं।

अंकुर और हमने चार साल झांसी में इंजीनियरिंग की (पढाई ?) करते हुये बिताये। लगभग २ महीने पहले अंकुर ने खुशखबरी दी कि वो नैनोटेक्नोलोजी की एक स्तरीय कान्फ़्रेन्स में अपने शोधकार्य पर एक पोस्टर दिखाने आ रहे हैं। फ़िर धीरे धीरे इन्तजार के दिन खत्म हुये और हम अंकुर को लेने ह्यूस्टन के हवाई अड्डे पंहुचे। वहाँ देखा कि अंकुर एक सार्वजनिक फ़ोन में सिक्के डालकर किसी को फ़ोन करने का प्रयास कर रहे हैं। हमने पीछे से आवाज दी कि क्यों पैसे बर्बाद कर रहे हो, हम आ चुके हैं। बाद में पता चला कि उनके पास हमारा सही नम्बर भी नहीं था :-)

खैर उसके बाद १०-११ दिन मौज मस्ती में बीते। अब हर बात तो लिखी नहीं जा सकती तो फ़ोटो और वीडियो के बहाने बयां कर रहे हैं:
अब कुछ वीडियो भी देखिये, हमने अंकुर को ह्यूस्टन में दौडा भी दिया, ;-)




अंकुर का Hiking के बाद का इंटरव्यू

अंकुर और नीरज साथ साथ दौडते हुये

अंकुर और मनीष की दौड

मनीष और नीरज की दौड, नीरज फ़िसल पडे, मनीष बने हीरो...:-)