बुधवार, दिसंबर 31, 2008

जिया मोहिनुद्दीन की आवाज में सुनिये "लाहौर"

जिया मोहिनुद्दीन की आवाज में पिछली कुछ प्रविष्टियों को आपकी सराहना मिली, इसी के चलते एक और नगीना पेश कर रहा हूँ । इस बार उनकी आवाज में लाहौर के बारे में सुनिये ।



इसी के साथ आप सभी को नये साल की हार्दिक शुभकामनायें ।

मंगलवार, दिसंबर 30, 2008

जावेद अख्तर की आवाज में कुछ अशार और एक नज्म !!!



अब इसी नज्म को खुद जावेद अख्तर की आवाज में सुनिये।


ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब,


सोमवार, दिसंबर 29, 2008

शेयर बाजार में निवेश: आपबीती और सीखे हुये सबक

आज ज्ञानदत्त पाण्डेयजी के चिट्ठे पर "हैप्योनेर निवेशक बनें" पढा । पहले तो हैप्योनेर का अर्थ ही समझ में नहीं आया, फ़िर लगा कि ज्ञानदत्तजी हमारे जैसे हिन्दी माध्यम में पढाई करने वालों की टांग तो नहीं खींच रहे हैं । अगर स्पेलिंग ही लिख देते तो कुछ समझने की कोशिश करते । फ़िर आगे पढा तो पता चला कि हैप्योनेर (Happionaire) बोले तो "आनन्द से तृप्त" ।

आब्जेक्शन माई लार्ड: शेयर बाजार और आनन्द से तृप्त, कैसी लीला है विरोधाभास की ।

कुछ महीनों पहले जब अमेरिका के शेयर बाजार की वाट लगी हुयी थी तो एक पार्टी में इस बात पर चर्चा होने लगी । एक बुजुर्ग (जिनका पोर्टफ़ोलियो काफ़ी सिकुड चुका था) ने हमसे कहा कि तुम तो जवान हो, ये बडा माकूल समय है शेयर बाजार में पैसा लगाने का । सब कुछ गाजर मूली के दाम पर बिक रहा है, कोई कम्पनी देखो जिसकी नींव (Fundamentals) मजबूत हो, पैसा निवेश करो और फ़िर इसे भूल जाओ । कुछ सालों के बाद हमको दुआयें दोगे । हमने उस समय तो हंसी में टाल दिया कि गरीब विद्यार्थियों के पास कैसा पैसा लेकिन जिस प्रकार कलयुग राजा परीक्षित के सोने के मुकुट में समा चुका था, कुछ कुछ वैसा ही हमारे साथ हुआ ।

पहली बार finance.google.com खोल कर देखा, पता चला दुनिया में बहुत कुछ चल रहा है । फ़िर देखा कि माउस के क्लिक से ही शेयर खरीदे/बेचे जा सकते हैं । मन को समझाया कि केवल देख लो, बाकी पैसा वैसा कहाँ है डालने के लिये । फ़िर कहा कि चला खाता खुलवा लो, कोई जबरदस्ती तो है नहीं कि खरीदना ही पडेगा । वैसे भी खाता तो मुफ़्त खुल रहा है, नो सर्विस चार्ज :-)

२ हफ़्ते निवेश से सम्बन्धित खबरे पढने में गुजारे । मन तो तसल्ली दी कि ये ठीक कर रहे हो, कुछ भी करने से पहले ज्ञान जुटाना बहुत जरूरी है । तुम उन लोगों में से नहीं हो कि किसी ने कुछ कहा और कूद पडे । भले ही लोग न माने लेकिन तुम खुद तो काफ़ी समझदार और औसत बुद्दि तो समझते ही हो । फ़िर कहा कि चलो अपने बैंक से ट्रेडिंग अकाउंट में पैसा तो भिजवा ही दो, मान लो कल कोई अच्छा मौका आया खरीदने का और तुम मुंह देखते रह जाओगे । चलो ये भी करवा लिया, अपनी कठिन मेहनत से बचाये हुये कुछ पैसे (पिताजी न पढ लें, इसलिये बतायेंगे नहीं :-) ) डालकर पहला निवेश किया । Wachovia Coroporation डूब चुकी थी और उसका शेयर अर्श से फ़र्श पर आ चुका था । Wells Fargo ने जब Wachovia को खरीदने की बात की तो उसका मरे हुये शेयर ने फ़र्श से जरा सा लडखडाकर ऊपर की ओर देखा, ठीक इसी समय हमने उसे थाम लिया । अगले हफ़्ते में Wells Fargo से डील पक्की हुयी और हमारा पोर्टफ़ोलियो ३३% के लाभ में हरा-हरा दिख रहा था ।

हमने खुद को शाबाशी दी और कुछ अन्य निवेश किये जो औंधे मुंह गिर पडे । ध्यान रहे कि हमारे हिसाब से ये सारे निवेश So Called दिमाग और Analysis के बाद किये गये थे । लेकिन अब चलते है कुछ महत्वपूर्ण सबक पर जो इन ५-६ महीने में हमने सीखे :

१) कहना आसान है कि पैसा लगाओ कि और Long Term भूल जाओ । जब आप अपनी गाढी कमाई को लाल होते देखते हैं तो बडा दुख होता है ।

२) कहा जाता है कि Buy Low, Sell High । लेकिन अक्सर होता उलटा है ।

३) शेयर खरीदते ही दाम गिरने पर पहला रिऐक्शन होता है "Cost Averaging" | अर्थात अगर आपने १०० शेयर २० के दाम खरीदे और अब दाम १५ है तो अगर आप १०० शेयर और खरीदें तो आपके निवेश की औसत खरीद १७.५ होगी । ये एक खतरनाक Slippery Slope है, इसमें मैने अच्छे अच्छों को फ़िसलते देखा है । हम भी एक बार इसके चक्कर में फ़ंसे लेकिन समय चलते बच निकले ।

४) जब बाजार बूम पर होता है तो पनवाडी की सलाह भी ५०% से ज्यादा सही होती है । लेकिन Recession के समय बाजार सारे सूत्र (Logic, Fundamental, Expectation) भूल जाता है । इस समय यहाँ अमेरिका में तो कम से कम Panic-Driven बाजार है । किसी भी कम्पनी के Fundamentals कितने भी मजबूत हों सब उठापटक में फ़ंसे हुये हैं ।

५) हमने कुछ निवेश Solar Companies में भी किया था । सोचा था कि बराक ओबामा Non-Conventional Energy के बहुत पक्ष में हैं और उनके जीतने की संभावना के चलते ये एक अच्छा निवेश होगा । अफ़सोस गलत जवाब....इस समय अमेरिका में पेट्रोल ६५ रूपये ($१.३५) में ३.७८ लीटर (१ गैलन) मिल रहा है, ऐसे में सोलर का क्या हश्र होगा आप खुद ही सोच लीजिये । लेकिन इस Panic-driven/Manupulative बाजार का कोई भरोसा नहीं । आज जब सब कुछ डाउन है, एक सोलर कम्पनी के शेयर लगभग १२% ऊपर हैं बिना किसी ठोस/सकारात्मक खबर के (इसे आप चित्र में देख सकते हैं) ।

६) इस समय निवेश करने के लिये Nerves और Balls दोनों स्टील की चाहियें, अगर दम हो तो निवेश करो वरना अभी और इन्तजार करो । क्योंकि अगर विशेषज्ञों की माने तो यहाँ अमेरिका के बाजार के होश बजा होने में कम से कम दो साल या और अधिक समय लगेगा । तब तक यूँ ही खटपट चलती रहेगी ।

७) Temptation के मामले में शेयर बाजार बहुत खतरनाक है । हम खुद ही कई बार Tempt हुये लेकिन निवेश के लिये खुद के लिये बनाये गये नियमों को पालन करने की बाध्यता के चलते कई बार इस Temptation से बचे तो अन्त में सही साबित हुआ ।


इसीलिये, चाहे बूम (Boom) हो या Recession अगर निवेश आपका Profession नहीं है तो आप नौसिखिये (Ameteur) ही हैं । निवेश से पहले कुछ नियम बनाईये और इनका पालन कीजिये । कभी भी उधार लेकर पैसा मत लगाईये, और जिस पैसे की आपको निकट भविष्य (१-२ साल) में जरूरत पडने की सम्भावना हो उसे बाजार में निवेश मत कीजिये ।

गुरुवार, दिसंबर 25, 2008

चेस्ट बीटिंग नेशनलिज्म और देशभक्ति का भद्दा प्रदर्शन !!!

आज ही इस वीडियो पर नजर गयी और इसके बाद अन्नु कपूर की जितनी इज्जत मेरे जेहन में थी वो एक झटके में काफ़ी कम हो गयी है । वैसे भी झटके लगने का सिलसिला कल आमिर खान की "बी ग्रेड" फ़िल्म "गजनी" देखकर शुरू हुआ है, देखते हैं कब तक चलता है । 

कल ही दिनेशजी ने अपने चिट्ठे पर लिखा था कि एक टिप्पणी जिसमें गुनाहगार के वकील के वकील को भी सजा देने की बात की गयी थी पर उन्हे दुख हुआ था । उस टिप्पणी से दुख मुझे भी हुआ था, दुख मुझे हर उस समय होता है जब हम देशभक्ति, नेशनलिज्म और कभी कबीलाई इंसाफ़ के नाम पर भावनाओं के अंबार में बहकर तर्क का साथ छोड देते हैं । 

फ़िलहाल तो आप इस वीडियो का आनन्द उठायें । हाँ, इस वीडियो में तो देशभक्ति के नाम पर एक भद्दा मजाक किया गया है जिसे देखकर क्या पता हंसी आ जाये तो भी पैसे वसूल ।




मेरे रूममेट अंकुर की टिप्पणी: अंकुर कहते हैं कि भारत का रियेलटी टी.वी. जल्द ही अमेरिका के रियलटी टी.वी. को मात देगा । उनकी भविष्यवाणी है कि अब केवल रियेलटी शो के जजों में जूतम-पैजार होने की कसर बाकी है ।

मंगलवार, दिसंबर 23, 2008

पुस्तकालय की महिमा: छुट्टी का जुगाड !!!

हमारे विश्वविद्यालय का फ़ाण्ड्रन पुस्तकालय अमेरिका के चुने हुये विशाल पुस्तकालयों में से एक है । अपने शोधकार्य के अलावा अन्य विषयों पर जानकारी लेने के लिये इंटरनेट की अपेक्षा कभी कभी पुस्तकालय में जाना बहुत सुखद होता है । भारत के पुरातन इतिहास (Ancient History of India) में मेरी विशेष रूचि है | इसके परिपेक्ष्य में पिछले कई वर्षों में Indo-Aryan Controversy पर काफ़ी कुछ पढा लेकिन नोट्स बनाकर लिखने का हमेशा आलस रहा ।

अभी कुछ दिन पहले पुस्तकालय में भारतीय इतिहास वाले सेक्शन में भटकते हुये एक पुस्तक पर नजर पडी । The Indo-Aryan Controversy: Evidence and inference in Indian History | सबसे पहले प्रकाशक पर नजर डाली, "Routledge, Taylor & Francis Group" | हम्म, प्रकाशक तो बढिया है सोचकर शेल्फ़ से उठा ली । मेरे मित्र अंकुर वर्मा ने लगभग आठ साल पहले सलाह दी थी कि किसी भी पुस्तक के प्रस्तावना अथवा Preface से मजमून के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है और Preface कोशिश करके एक बार में पूरा पढना चाहिये । तुरन्त उनकी सलाह पर अमल किया और ये पढने को मिला ।
(चित्र को क्लिक करके पढने में आसानी होगी )
(चित्र को क्लिक करके पढने में आसानी होगी )

Preface पढते ही दिल बाग बाग हो गया और लगा कि चलो कोई राईट/लेफ़्ट विंग प्रोपागेंडा तो नहीं है । ठोस इतिहास की बात हो रही है । अब इसके बाद आगे पन्ने पलटे तो पता चला कि इस पुस्तक में माइकेल विट्जल, बी. बी. लाल, सत्य स्वरूप मिश्रा, सुभाष काक, श्रीकांत तलगेरी, माधव देशपांडे, कोइनार्ड एस्ट जैसे दिग्गजों के लेख हैं । तुरन्त इस पुस्तक को उठाया गया और निश्चित किया कि क्रिसमस की छुट्टियों में इसे दबाकर पढेंगे और यदि संभव हुआ तो कुछ नोट्स भी तैयार किये जायेंगे ।

हिन्दी ब्लागजगत में भी निश्चित ही बहुत से लोगों के इस Indo-Aryan Controversy के बारे में कुछ विचार होंगे । मसलन क्या आर्य (Race) और द्रविण भिन्न हैं? सिन्धु घाटी सभ्यता में रहने वाले कौन थे ? वैदिक सभ्यता और सिन्धु घाटी सभ्यता का आपस में क्या सम्बन्ध है ? क्या ये दोनों एक ही हैं ? इत्यादि इत्यादि ।

देर किस बात की है, लिख भेजिये इस विषय पर अपनी राय ।


P.S.: मैक्स मूलर और मैकाले को गरियाने/जुतियाने में अपना समय व्यर्थ न करें , :-)

सोमवार, दिसंबर 22, 2008

ज़िया मोहिनुद्दीन की आवाज में सुनिये "चचा छक्कन"

हमने पिछली बार आपको जिया मोहिनुद्दीन की आवाज में एक कहानी "धोबी" सुनवायी थी, जिसके बाद पारूलजी ने जिया मोहिनुद्दीन की आवाज में और अफ़साने भी सुनने की इच्छा जताई थी । लीजिये इसी कडी में पेश है, चचा छक्कन ।



इस पूरे मजमून को सुनने के बाद बतायें कि अगर कहानी के किरदार अपने ज्ञानदत्त पाण्डेय जी, उनकी पत्नी श्रीमती रीता पाण्डेय और उनके भृत्य भरतलाल होते तो कहानी कैसी बनती । इसे हमारा ज्ञानदत्तजी की मौज लेने का प्रयास बिल्कुल न समझा जाये, :-)

रविवार, दिसंबर 21, 2008

दीवार से टकराना और टकरा के आगे बढने की कला !!!

सावधान: ये एक लम्बी और बडे कष्ट (३६ किमी दौडने) के बाद लिखी गयी पोस्ट है ।

लम्बी दौडों, साईकलिंग और लम्बी तैराकी में एक प्रक्रिया होती है जिसे "दीवार से टकराना कहते हैं" (Hitting the Wall) | दीवार से टकराने का वैज्ञानिक कारण है । आपका शरीर ग्लूकोज को ग्लाईकोजन के रूप में सहेज कर रखता है, इसके अलावा आपके शरीर में वसा भी एकत्रित रहती है जो भी ऊर्जा का एक स्रोत है । जब आप कोई शारीरिक श्रम करते हैं तो उस श्रम को करने के लिये ऊर्जा ग्लाईकोजन अथवा वसा से प्राप्त होती है । वसा को ऊर्जा में बदलने की क्रिया बहुत धीमी और क्लिष्ट (Complex) होती है । इसके विपरीत ग्लाईकोजन बडी आसानी से ग्लूकोज में परिवर्तित होता है और तुरन्त ऊर्जा में बदला जा सकता है । इसका सीधा अर्थ हुआ की दौडने की अवस्था में जब शरीर के ऊतकों को तेजी से ऊर्जा की आवश्यकता होती है, आप ग्लाईकोजन पर निर्भर रहते हैं ।

ये सब तो ठीक हुआ लेकिन इसका दीवार से टकराने का क्या सम्बन्ध ? समस्या है कि हमारा शरीर केवल २००० किलो कैलोरी ही ग्लाईकोजन के रूप में संचित कर पाता है । दौडते समय इस २००० किलो कैलोरी को आप (वजन के हिसाब से) १७ मील से २० मील की दूरी में खर्च कर देते हैं । उसके बाद आपके शरीर में अचानक बदलाव आता है । जहाँ आप १८ मील तक बडे आराम से दौड रहे होते हैं, ग्लाईकोजन का टैंक खत्म होते ही शरीर को वसा पर निर्भर होना पडता है और उस समय ऐसा महसूस होता है कि जैसे अचानक चलती कार पर किसी ने ब्रेक लगा दिये हों । कुछ स्थितियों में केवल २०-५० मीटर की दूरी में ही आप दौडने से रूककर पैदल चलने पर मजबूर हो जाते हैं । इस स्थिति को Hitting The Wall कहते हैं ।

अब चूँकि मैराथन २६.२ मील की होती है, आखिरी ६-९ मील सबसे दूरूह होते हैं । कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि मैराथन में २० मील वार्म अप करने के लिये होते हैं और असली दौड आखिरी ६.२ मील की होती है । पिछले तीन हफ़्तों में मैने इस दीवार को स्वयं अनुभव किया । हमने २५ किमी (१५.६ मील) की एक दौड दौडी और हंसते हंसते इसे पूरा किया और लगा कि हम अब मैराथन के लिये पूरी तरह तैयार हैं । लेकिन उसके बाद २५ से ३६ किमी की दौडों में इस दीवार ने खूब छकाया । आज इस पोस्ट को लिखने से पहले सुबह ३६ किमी दौडकर आये हैं और ३० किमी के बाद ऐसा लगा कि अचानक पैरों पर कोई डंडे से जोर जोर से पिटाई करने लगा हो ।

चलिये ये सब तो ठीक है लेकिन इस दुष्ट दीवार से बचा कैसे जाये ? इसका इलाज है कार्बो लोडिंग (Carb Loading) | आप ३० किमी से लम्बी दौड वाले हफ़्ते में वसा को कम करके Carbohydrate ज्यादा खायें और जमकर खायें । दौड शुरु होने से पहले Liquid Carbohydrate Drinks का सेवन करें क्योंकि दौड से तुरन्त पहले ठोस पदार्थ खाने का मतलब है दौड के दौरान पेट में हिमेश रेशमिया का संगीत :-)

इसके अलावा हर ५ वें मील के दौरान Gu Gel का सेवन करें जिससे पूरी दौड में आपको अतिरिक्त ५००-६०० किलो कैलोरी ग्लाईकोजन की आपूर्ति हो सके । और फ़िर आखिरी ३-४ मील अल्लाह/राम/जीजस जिसको भी आप मानते हों कि भरोसे छोड दें ।

सागर भाईजी ने पूछा था कि मैं इस दौड को जीतूँगा तो मुझे क्या ईनाम मिलेगा, तो इसके चलते मैराथन से सम्बन्धित कुछ मजेदार बाते बतायी जायें ।

१) मैं अपनी जिन्दगी में कभी भी मैराथन नहीं जीत सकता । जो धावक मैराथन जीतते हैं उनमें कुछ जन्मजात गुण होते हैं और वो इसकी ट्रेनिंग एक Profession समझ कर करते हैं । इसके विपरीत मैराथन दौडना मेरी रूचि है ।

२) हर मैराथन दौडने वाले के मन में तीन समय होते हैं । पहला समय जो वो सबको बताता है, मेरे लिये ये ३ घंटा ४० मिनट होगा । ये समय वो होता है कि अगर दौड के दौरान थोडी गडबड भी हो जाये तो भी निकल पाये । दूसरा समय होता है जिससे वो सन्तुष्ट होगा लेकिन खुश नहीं, मसलन अगर सब कुछ गडबड हो जाये फ़िर भी कम से कम इस समय में दौड पूरी हो जाये । मेरे लिये ये ४ घंटे का समय होगा । तीसरा समय उसके खुद के लिये होता है, ये वो समय होता है कि अगर सारे सितारे साथ में हो और कोई चोट, खिंचाव, दर्द न उठे तो इस समय में दौड पूरी हो । आमतौर पर ये सीक्रेट होता है क्योंकि जरा सी भी गडबड होने पर ये तुरन्त हाथ से रेत की तरह फ़िसलता जाता है । मेरे लिये ये समय ३ घंटा २८ मिनट से ३ घंटा ३० मिनट के बीच होगा ।

३) अब आपके समय के हिसाब से मैराथन में आपकी श्रेणी इस प्रकार की होती है । अब आप खुद ही देख लें हम कहाँ खडे हैं ।

2:30 or under = Elite runner
2:30-3:00 = Still very fast, would win most smaller marathon
3:00-3:30 = Strong time, top 10-15% of most marathons
3:30-4:00 = Top २0-40% of field
4:00-4:30 = Middle of the pack
4:30-5:00 = Bottom third
5:00 + = Back of the pack

जो भी मैराथन दौडने का संकल्प लेते हैं उनको मैं बहुत इज्जत की नजर से देखता हूँ । जो भी इसको समाप्त करते हैं भले ही इसमें कितना भी समय लगे, उनको मेरा सलाम । कारण है कि अगर आप ३:३० से कम समय में इसको पूरा करते हैं तो आपमें क्षमता है और दौड आपको मुबारक । लेकिन अगर आप इसको ५-६ घंटे में पूरा कर रहे हैं, इसका अर्थ है कि आप केवल अपनी ट्रेनिंग और इच्छाशक्ति के बल पर इस पूरा कर रहे हैं जो बहुत मुश्किल है । क्योंकि किसी भी मैराथन को सिर्फ़ पूरा करने के लिये कम से कम ५ महीने की सम्पूर्ण निष्ठावान ट्रेनिंग चाहिये । जिसमें आप हर हफ़्ते २५-४० मील दौडें और जब आप धीमा दौड रहे हों तो इसको जारी रखना बहुत मुश्किल है जब लोग आसानी से आपसे आगे निकले जा रहे हों ।

लेकिन लोग कहते हैं किसी भी लम्बी दौड को पूरा करने के बाद की स्थिति जिसे Runners High कहते हैं, वो किसी भी नशे से हासिल नहीं की जा सकती है । इसके लिये तो कष्ट करना ही पडेगा, :-)

अन्त में कुछ रोचक तथ्य:

१) मैराथन की उत्पत्ति ग्रीक सभ्यता से जुडी हुयी है जब एक धावक मैराथन के युद्ध में विजय की सूचना लेकर बिना रूके दौडते हुये गया था और सूचना देते ही गिरकर मृत्यु को प्राप्त हुआ था ।
२) माडर्न मैराथन १८९६ से प्रारम्भ हुयी हैं जिसमे काफ़ी समय तक दूरी निश्चित नहीं थी ।
३) १९०८ लंदन ओलम्पिक में २६.२ मील की दूरी तय हुयी थी । इस अजीब सी २६.२ मील का दूरी इसलिये जिससे दौड शाही महल के सामने खत्म हो सके ।
४) १९१२ के बाद से हम मैराथन २६.२ मील अथवा ४२.१९५ किमी की होती है । लेकिन भीड और दांये/बांये चलने के कारण आप एक सीधी रेखा में नहीं दौड पाते और लगभग २६.४ मील तक दौडते हैं ।
५) एक मैराथन में आप लगभग 65,000-70,000 कदम दौडते हैं ।
६) Elite Marathoners को छोडकर लगभग बाकी लोग अपनी ट्रेनिंग में अधिकतम २२-२४ मील ही दौडते हैं और २६.२ लगातार पूरी ट्रेनिंग में एक ही बार यानि दौड वाले दिन दौडते हैं । इस लिहाज से दौड आपकी ट्रेनिंग का कठिनतम दिन होता है ।
७) मैराथन में अगर आप ठीक ढंग से पानी न पियें अथवा बहुत अधिक पानी पियें तो Under-hydration/Over-hydration से किसी किसी स्थिति में मृत्यु तक हो सकती है । इसके अलावा अगर आपका हृदय कमजोर है तो भी ये आपके लिये खतरनाक हो सकती है, लेकिन मैराथन में मृत्यु होने की प्रायिकता घर के बाहर बिजली गिरने से होनी वाली प्रायिकता अथवा सडक दुर्घटना में मृत्यु होने की प्रायिकता से भी कम है अगर आप ठीक प्रकार से दौडें ।

अन्त में पिछले हफ़्ते ३० किमी वाली दौड के कुछ फ़ोटो, और उसके बाद आराम से पैर की मसाज करवाते समय के फ़ोटो :-)

गुरुवार, दिसंबर 18, 2008

अमर सिंह का अमरीका को दिया चंदा और भांग एट गंगा तट . काम

बराक ओबामा की हिलेरी क्लिंटन को सेकेट्री आफ़ स्टेट (Secretary of State) बनाने की शर्त थी कि बिल क्लिंटन अपनी फ़ाउंडेशन को चंदा देने वालों के नाम सार्वजनिक करेंगे । आज न्य़ूयार्क टाईम्स की खबर ने इन चंदा देने वालों के नाम बताये हैं, मेरी नजर खबर के इन खास हिस्सों पर गयी ।

The potential for foreign donors to the Clinton foundation to create the appearance of conflicts of interest for Mrs. Clinton as she handles foreign policy matters was illustrated by Amar Singh, listed as giving between $1 million and $5 million. Mr. Singh is apparently a prominent Indian politician of that same name.

In September, Mr. Singh visited Washington to lobby Congress to support a deal allowing India to obtain civilian nuclear fuel and technology from the United States. The deal was controversial because India has developed nuclear weapons but is not a party to the Nuclear Non-Proliferation Treaty.

Mr. Singh met and posed for photographs with Mrs. Clinton, afterwards telling Indian reporters that Mrs. Clinton had assured him that Democrats would not block the deal. Congress approved the nuclear cooperation deal with India a few days later.

अब तो अमरसिंह जी को लोग गाली देना बन्द करें । वे तो महान ग्लोबल जनसेवक हैं जो पूरी दुनिया में धर्म के काम में लगे हुये हैं ।

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दूसरी खबर:

अंकुर श्रीवास्तव मेरे मित्र हैं और मेरे अपार्टमेंट में ही रहते हैं । अंकुर इलाहाबाद के मूल निवासी हैं । भविष्य में अंकुर और हम मिल कर एक प्रोजेक्ट शुरु करने का भी सोच रहे हैं । प्रोजेक्ट का नाम है भांग एट गंगा तट . काम । ये प्रोजेक्ट व्यस्त प्रोफ़ेशनल्स के लिये डी-स्ट्रेसिंग रिट्रीट (De-Stressing retreat) जैसा होगा । जिसमें वो इलाहाबाद के गंगा तट पर हमारी कम्पनी के गेस्ट हाऊस में आराम से बैठकर भांग का मजा ले सकते हैं (मैने कभी भांग का सेवन नहीं किया लेकिन अंकुर की बात पर भरोसा करके इस बार भारत यात्रा पर इसका पूरा लुत्फ़ उठाने का इरादा है ) । भांग के साथ, आध्यात्मिक सेमिनार, काशी के अस्सी का पाठ आदि भी आयोजित कराया जायेगा । आप केवल $२,००० डालर देकर हमारी संस्था के जीवन पर्यन्त सदस्य बन सकते हैं । सदस्यता के लिये हमसे सम्पर्क करें ।

शनिवार, दिसंबर 13, 2008

शिवोहम शिवोहम...आदि शंकराचार्य द्वारा रचित पद पं जसराज की आवाज में

इस पोस्ट को लिखने में बडी अडचन है । जहाँ १५-२० सेकेंड्स में पढने में पोस्ट निपट जाती है वहाँ किसी से २८ मिनट मांगना कहाँ उचित है । लेकिन क्या करें, भारतीय शास्त्रीय संगीत के समुन्दर में डूब कर आनन्द लेने के लिये इतना समय तो देना ही होगा । वरना लोग तो वो भी हैं जो ७ मिनट की द्रुत बंदिश में भी आलाप को फ़ास्ट फ़ारवर्ड कर देते हैं :-)

लेकिन जो सुन न सकें वो पढकर ही आनन्द ले लें । इस "पद" को आदि शंकराचार्य ने अपने "अद्वैत/Non-duality" के दर्शन के अनुरूप रचा था । इसको पंडित जसराज की आवाज में सुने और अनुभव करें । इस "पद" को पंडित जसराज ने रागों के राजा राग दरबारी में गाया है ।

जिनके पास समय इफ़रात में है वो यहाँ क्लिक करें और डायमंड पैकेज का आनन्द लें,



अच्छा चलिये, जिनके पास समय की कमी है वो यहाँ क्लिक करें सिल्वर पैकेज,



जो बहुत ही व्यस्त हैं, वो केवल पढकर काम चला लें लेकिन हमसे नरक में मुलाकात हो तो हमें दोष न दीजियेगा :-)

Mano budhya ahankara chithaa ninaham,
Na cha srothra jihwe na cha graana nethrer,
Na cha vyoma bhoomir na thejo na vayu,
Chidananada Roopa Shivoham, Shivoham.

Neither am I mind, nor intelligence,
Nor ego, nor thought,
Nor am I ears or the tongue or the nose or the eyes,
Nor am I earth or sky or air or the light,
But I am Shiva the all pervading happiness,
Yes, I am definitely Shiva.

Na cha praana samgno na vai pancha vaayur,
Na vaa saptha dhathur na va pancha kosa,
Na vak pani padam na chopa stha payu,
Chidananada Roopa Shivoham, Shivoham.

Neither am I the movement due to life,
Nor am I the five airs, nor am I the seven elements,
Nor am I the five internal organs,
Nor am I voice or hands or feet or other organs,
But I am Shiva the all pervading happiness,
Yes, I am definitely Shiva

Na me dwesha raghou na me lobha mohou,
Madho naiva me naiva matsarya bhava,
Na dharmo na cha artha na kamo na moksha,
Chidananada Roopa Shivoham, Shivoham.

I never do have enmity or friendship,
Neither do I have vigor nor feeling of competition,
Neither do I have assets, or money or passion or salvation,
But I am Shiva the all pervading happiness,
Yes, I am definitely Shiva

Na punyam na paapam na soukhyam na dukham,
Na manthro na theertham na veda na yagna,
Aham bhojanam naiva bhojyam na bhoktha,
Chidananada Roopa Shivoham, Shivoham.

Never do I have good deeds or sins or pleasure or sorrow,
Neither do I have holy chants or holy water or holy books or fire sacrifice,
I am neither food nor the consumer who consumes food,
As I am Shiva the all pervading happiness,
Yes, I am definitely Shiva

Na mruthyur na sankha na me jathi bhedha,
Pitha naiva me naiva matha na janma,
Na bhandhur na mithram gurur naiva sishya,
Chidananada Roopa Shivoham, Shivoham.

I do not have death or doubts or distinction of caste,
I do not have either father or mother or even birth,
And I do not have relations or friends or teacher or students,
As I am Shiva the all pervading happiness,
Yes, I am definitely Shiva

Aham nirvi kalpi nirakara roopi,
Vibhuthwascha sarvathra sarvendriyanaam,
Na cha sangatham naiva mukthir na meya
Chidananada Roopa Shivoham, Shivoham.

I am one without doubts, I am without form,
Due to knowledge I do not have any relation with my organs,
And I am always redeemed,
And I am Shiva the all pervading happiness,
Yes, I am definitely Shiva

पं रविशंकरजी का बजाया हुआ एक टुकडा

आज पूरा दिन संगीत सुनने में बिताया कितने ही गीत और बंदिश जो महीनों से नहीं सुने थे अपनी हार्ड डिस्क पर खोज खोज कर सुने और मन भरकर आनन्द लिया । आपको आनन्दमय करने के लिये पेश-ए-खिदमत है पं रविशंकर जी का बजाया हुया द्रुत गत पर राग अडारिनि (ये बहुत कुछ राग खमज जैसा है), बाकी जिनके कान की तैयारी हो चुकी है वो फ़र्क बता पायेंगे । हम तो वही कह रहे हैं जो सीडी के कवर पर लिखा है ।




कान की तैयारी: कहा जाता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने में बहुत से घरानों में पहले आपको संगीत सुनाया जाता है जिसमें आप उसकी बारीकियों को पकडते हैं, इसके बाद जब आपका कान तैयार हो जाता है उसके बाद गाना/बजाना सिखाया जाता है । मैं अभी कुछ रागों को ही सुनकर पकड पाता हूँ बाकी के लिये सीडी का कवर देखना पडता है :-)

गुरुवार, दिसंबर 11, 2008

ह्यूस्टन के जलील मौसम का हसीन तोहफ़ा !

ह्यूस्टन के मौसम को जलील कहने के कई कारण हैं । पहला कि यहाँ गर्मी और आद्रता दोनो बहुत रहती है जो हमारे जैसे दौडने वालों की पहली नाराजगी है । दूसरा ये कि यहाँ मौसम ३ दिनों में पूरी पलटी खा लेता है । मसलन सोमवार को टी-शर्ट पहनने वाला दिन था, मंगलवार को हल्की सी ठंड हुयी और बुधवार की सुबह का तापमान शून्य डिग्री । बुधवार को हल्की हल्की बारिश और जबरदस्त हवा चल रही है इसके चलते शून्य डिग्री तापमान -४ जैसा महसूस हो रहा था । मैं नहीं कह रहा ऐसा weather.com वाले कह रहे थे ।

शाम को लैब से निकले और पार्किंग लाट जाने के लिये बस के इन्तजार में थे । अचानक सडक पर कुछ सफ़ेद सा गिरता दिखा । पहले लगा कि मन का भ्रम है लेकिन नजदीक जाकर देखा तो रूई के फ़ोहे सा था जो हाथ लगते ही पिघल गया । ह्यूस्टन में हर ३-४ साल में एक दिन के लिये २५ दिसम्बर के आस पास बर्फ़ गिरती है लेकिन बहुत ही मामूली सी जिसका पता अगले दिन अखबार में चलता है । लिहाजा हमने अपने छाता खोलकर उल्टा किया और बर्फ़ सहेजने लगे, दस मिनट के इन्तजार के बाद जो चित्र बना वो आपके सामने है, :-)
हमने सोचा बस अभी अगले ही मिनट ये बन्द हो जायेगी और ऐसा सोचकर हम व्यायामशाला में Treadmill पर दौडने चले गये । १ घंटा दौडने के बाद, स्नान करके जब बाहर निकले तो देखा कि अभी भी बर्फ़ गिर रही है और अधिक तेजी से गिर रही है । तुरन्त सिर झुका कर ईश्वर को नमस्कार किया । मेरे जीवन में बर्फ़बारी देखने का ये पहला मौका था, इसलिये मेरी हालत एक ७-८ साल के बच्चे जैसी हो गयी थी । मैं बेतहाशा गिरती बर्फ़ में दौडने लगा । छाते को सिर पर रखने की बजाय राज कपूर जी के "प्यार हुआ इकरार हुआ" जैसे स्टाईल में घुमाने लगा और गाना भी गाने लगा । आस पास वाले लोग देखकर हंसने लगे और ताली भी बजाने लगे :-)

इसके बाद दौडते हुये अपनी कार तक पंहुचे तो वो बर्फ़ की चादर में ढक चुकी थी और किसी अनजाने ने उस पर X-Mas 2008, Houston भी अपनी उंगली से उकेर दिया था जिसे आप इस चित्र में देखें । इसके तुरन्त बाद धावक क्लब के अपने मित्रों से मिलने "वलहाला" पंहुचे तो वहाँ भी मस्ती का आलम था । हम लोगों ने थोडी बर्फ़ इकट्ठी करके बर्फ़ का गोल बनाया और "गोला-गोला" खेलने लगे । जिसे आप अगले कुछ चित्रों में देख सकते हैं ।


























अभी तक के सारे फ़ोटो सेलफ़ोन से लिये गये थे और अचानक मुझे ख्याल आया कि मेरा कैमरा लैब में रखा हुआ है । तुरन्त आधे मील की दौड लगाकर लैब से कैमरा उठाकर वापिस "वलहाला" आया गया और फ़िर अपने कैमरे से कुछ फ़ोटो और वीडियो बनाये गये जो आप नीचे देख सकते हैं ।









मंगलवार, दिसंबर 09, 2008

जिया मोइनुद्दीन की आवाज में सुनिये "धोबी"

पिछली पोस्ट पर आप सभी की टिप्पणियों का धन्यवाद । मेरा मन्तव्य किसी का भी सिगरेट/शराब पीने की तरफ़दारी करना नहीं लेकिन इसके पीछे की एक मानसिकता के पहलू को दिखाना था । बहरहाल अपने ज्ञानजी ने कहा है कि फ़िलहाल नारी वर्ग पर पोस्टों को विराम दिया जाये इसलिये पेश है एक हल्की फ़ुल्की पोस्ट :-)

इस पोस्ट में आप जिया मोइनुद्दीन की आवाज में सुनिये "धोबी", आशा है आपको पसन्द आयेगी ।

सोमवार, दिसंबर 08, 2008

अरे महिला/लडकी होकर सिगरेट पीती हो !!!

आज आदर्श की एक ईमानदार पोस्ट देखी मन खुश हो गया । इससे पहले कुछ दिन पहले आदर्श के ब्लाग पर जैसे ही क्लिक किया पूरा कमरा हिल गया था, "प्याला प्याला मय का प्याला" उनका ब्लाग खोलते ही अपने आप ही बजने लगता है । आदर्श की पोस्ट बडी सामयिक होती हैं और उनकी साफ़गोई का मैं कायल हूँ । ये पोस्ट मैं आदर्श की पोस्ट के जवाब में नहीं लिख रहा हूँ बल्कि इसको लिखने की तैयारी बहुत दिनों से थी ।

अक्सर बहुत से लोगों को किसी महिला को सिगरेट पीते देखते ही उनके स्वास्थय की चिन्ता होने लगती है । इसका तर्क/कुतर्क भी होता है कि सिगरेट बहुत हानिकारक होती है । माना सिगरेट हानिकारक होती है लेकिन ये हानि महिला और पुरूष में भेद नहीं करती । सिगरेट पीना एक व्यक्तिगत निर्णय है जिसकी कीमत हर सिगरेट पीने वाला समझता है, ठीक उसी तरह जिस तरह हर शराब पीने वाला, Rash Driving करने वाला या फ़िर किसी अन्य जोखिम वाले जीवन पद्यति को जीने वाले उनके जोखिम को समझते हैं । फ़िर किसी महिला को सिगरेट पीते देखकर ही हमारा ज्ञान क्यों जागृत हो जाता है ? यहाँ अमेरिका में भी बहुत से लोग किसी लडकी का बीयर पीना तो पसन्द कर लेंगे लेकिन सिगरेट पर कभी कभी उनकी भी भावनायें जाग जाती हैं । हम तो कहते हैं असली बराबरी है कि कैंसर हो तो लडकी को भी हो, इसकी चिंता करने की आपको कोई आवश्यकता नहीं है । क्या आप चिन्ता करते हैं जब मजदूरी करती किसी महिला को पुरूषों के साथ बैठकर बीडी फ़ूँकते देखते हैं । आपका दर्शन/चिन्तन उस समय जगता है क्या ?

यहाँ कालेज की एक मैगजीन में एक लडकी ने लिखा था कि एक बार वो सिगरेट पी रही थी और एक अन्य व्यक्ति बाजू से गुजरा और उसने कहा "You know, this is harmful for your lungs" | इस पर लडकी ने कहा, "Thank you Sherlock Homes, I didn't know that"

कुछ लोग इस मुद्दे पर अन्य प्रकार से भी चुटकी लेते हैं और कहते हैं कि केवल आधुनिक कपडे पहनने से, सिगरेट और शराब पीने से कोई लडकी/महिला आधुनिक और स्वतंत्र नहीं हो जाती । वो कहते हैं कि उन्होने बहुत सी So called आधुनिक लडकियों को आधुनिक कपडों में असहज होते देखा है । लेकिन उन्होने कभी जून की गर्मी की शादी में Double Breasted Suit और टाई लगाये दूल्हों और रिश्तेदारों को असहज होते नहीं देखा होगा । इसका अर्थ है कि स्वतंत्रता भी वही है जिसे उनकी स्वीकृति हो, क्या किसी और को कोई विरोधाभास नहीं दिख रहा ?

स्वतंत्रता वो है कि महिला अपने फ़ैसले खुद करे और सारे फ़ैसले खुद कर सके । उसे कैसी नौकरी करनी है, कहाँ पढाई करनी है, किसके साथ विवाह करना है, किसी रिश्तेदार को नमस्ते करनी है कि नहीं और जो भी आपके मन में आये । अगर उसे लगे कि सिगरेट पीना है तो पिये, शराब पीनी है तो पिये, शादी से पहले ब्याय फ़्रेंड बनाना है तो बनाये उसके साथ संबन्ध बनाने हैं तो बनाये । हम कौन होते हैं इसके बीच में बोलने वाले ?

ये ठीक उस प्रकार वाली बात है जो मेरे एक पुराने रूममेट ने कही थी कि लोग चाहते हैं कि शादी के लिये लडकी सुन्दर भी हो, सुशील भी हो, घर वालों की इज्जत भी करे, इंटलेक्चुअल हो कि मेरी फ़िलासिफ़कल बातों में बोर न हो लेकिन इतनी भी नहीं कि मुझे पलट कर जवाब दे, कमा कर भी लाये लेकिन काम में इतना मन न लगाये कि पति और घर पर ध्यान न दे पाये, खान बनाना और घर के काम तो उसे संभालने चाहिये ही ।

You Know What? There are no free lunches in this world. Everything has consequences. एक जान पहचान के व्यक्ति हैं, उनकी पत्नी से सम्बन्ध विच्छेद होने पर उन्होने कहा कि आजकल भारत में ९०% तलाक के मामलों में लडकी दोषी है । और उनकी नजर में लडकी इसलिये दोषी है कि वो ससुराल की जायज और नाजायज बातों को नहीं मानती, पति ने अगर हाथ उठाने कि कोशिश की तो बोल देती है "Don't even think about that". चिन्ता मत कीजिये, नारी जागृत हो रही है और इसका सामाजिक बदलाव खूब देखने में आ रहा है । हो सकता है कि इसके पूरे परिणाम मैं अपनी जिन्दगी में भी न देख पाऊँ तो क्या, कम से कम आज तो जी भरकर चिल्लाकर कहने को मन कर रहा है कि:

नारी तुम सबला हो, अपनी शक्ति पर भरोसा रखो और जिस बात पर तुम्हारा मन राजी हो वो करो । सही और गलत के फ़ेर में तो इन्सान हजारों सालों से पडा है उससे पार पाना मुश्किल है । लेकिन सुनो सबकी और करो अपने मन की ।

शुक्रवार, दिसंबर 05, 2008

समवन हैड ए टफ़ डे, टैल मी अबाउट इट !!!



पिछले हफ़्ते स्कूल से घर आते समय सोचा कि चलो कुछ खरीददारी (दूध, कार्नफ़्लेक्स, केले आदि) की जाये । सामान चूँकि कम था तो पैसे भरने के लिये Express Lane (१५ सामान या कम) में खडे हो गये । एक मिनट के बाद नजर घुमायी तो देखा कि एक बेहद क्यूट सी बाला हमारे पीछे खडी थी । नजर मिली तो "Hi" कह दिया और देखा कि वो कन्या सिर्फ़ एक चाकलेट का पैक लेकर खडी है ।
मैने चाकलेट की तरफ़ इशारा किया और पूछा,

Thats it?

कन्या ने कन्धे उचका दिये और कहा कि "Yea, I guess"

हम: You can go ahead and pay before me.

कन्या: Thanks. Are you sure?

हम: Yea, its okay.

अब कन्या हमारे आगे खडी हो गयी तब हमने ध्यान दिया कि कन्या के कन्धे पर एक छोटा सा पर्स लटक रहा था । कन्या ने एक हाथ से चाकलेट (असल में डार्क चाकलेट) और दूसरे हाथ से स्टारबक्स की काफ़ी थाम रखी थी । पैसे निकालने के लिये उसने पर्स में हाथ डाला तो काफ़ी का गिलास छलकने लगा । मैं मुस्कुराया और कहा कि


Let me hold this for you.

कन्या: Thanks.

इसके बाद पैसे चुकाने के बाद जब कन्या को उसकी काफ़ी का गिलास थमाया तो मैने धीरे से मुस्कुराकर कहा ।

Hot coffee and dark chocolate. Looks like someone had a tough day.

कन्या: फ़िर मुस्कुरायी और बोली । टफ़ डे (Sigh...), टैल मी अबाउट इट !!!

और इसके बाद बाय बाय करके वो अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते ।


डिस्क्लेमर: इस कन्या का चित्र इंटरनेट से उठाया है लेकिन उस कन्या ने भी कुछ कुछ ऐसा ही कोट (असल में Pea coat) पहना हुआ था | रचना जी ने चिट्ठा चर्चा पर कन्या के चित्र पर आपत्ति जताई थी । जब मैने चित्र खोजा था तो इस चित्र को इसलिये लिया था कि ये एक विज्ञापन का चित्र था । लेकिन इतना काफ़ी नहीं है, रचना जी की बात से सहमति है और इसके लिये चित्र के स्थान पर उस चित्र का कार्टून प्रयोग कर रहा हूँ ।

अजीज मियाँ की आवाज में खूबसूरत गजल !!!

पाकिस्तानी कव्वाली गायिकी में एक नाम अज़ीज मियाँ का भी आता है । अज़ीज मियाँ की कव्वालियाँ बहुत देर से सुनना शुरू किया लेकिन एक बार सुना तो बस डूबकर रह गये । जैसे उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान अपनी कव्वालियों में शास्त्रीय संगीत के उस्ताद के तौर पर जाने जाते हैं, अज़ीज मियाँ की आवाज में एक अजीब सी मस्ती और खाँटीपन है । अन्दाजे बयाँ की बात करें तो बस समझिये कि दिल निकाल के रख दिया है ।

लीजिये पेश-ए-खिदमत है अज़ीज मियाँ की आवाज में एक गजल (गजल थोडी लम्बी जरूर है लेकिन सुनने वालों के पैसे वसूल होने की गारंटी) । अगर ये पेशकश आपको पसन्द आयी तो आगे भी अज़ीज मियाँ की कव्वालियाँ सुनवायी जायेंगी :-)

फ़ुटकर शेर:

मजा बरसात का चाहो मेरी आंखो में आ बैठो ।
सुफ़ेदी है सियाही है शफ़क है अब्र-ए-बारम है ।

मजा बरसात का चाहो मेरी आंखो में आ बैठो ।
वो बरसों में कहीं बरसे ये बरसों से बरसती हैं ।

गजल:

उनकी आंखों से मस्ती बरसती रहे,
होश उडता रहे दौर चलता रहे ।

रक्से तौबा करे जामे बिल्लौर में,
रिंद पीते रहें शैख जलता रहे ।

वो उधर अपनी जुल्फ़ें संवारा करें,
और इधर दम हमारा निकलता रहे ।

तुम मेरे सामने आओ तो इस तरह,
तेरा पर्दा रहे मुझको दीदार हो ।

आप बन के चिलमन में बैठा करें
हुस्न छन छन के बाहर निकलता रहे ।

मयकदा तेरा साकी सलामत रहे,
आज तो जाम पर जाम चलता रहे ।

बुधवार, दिसंबर 03, 2008

एक और हल्की फ़ुल्की पोस्ट !!!

बचपन में हमारे खेल आंगन और मोहल्ले/कालोनी की गलियों पर ही खेले जाते थे । और घरवालों की न-न के बावजूद इसे सबकी रजामंदी प्राप्त थी । शाम होते ही सब बच्चे अपने अपने घर से निकलकर और आस पडौस से बुलाकर टीम तैयार कर लेते थे । कुछ बच्चों के पापा खडूस थे तो किसी किसी बच्चे की मम्मी, ऐसे में पढने लिखने वाले सीधे शरीफ़ (अर्थात मैं) बच्चों को दूसरों के घर भेजा जाता था ।

हमारे प्रिय खेल थे, खो-खो, चोर सिपाही और अंधेरा हो जाने के बाद "आईस-पाईस" । सब इसे आईस-पाईस भी कहते थे तो हमने भी आईस-पाईस कहना शुरू कर दिया । इसमें एक बन्दे को बाकी छुपे अन्य बच्चों को खोजना होता था ।

पिछले महीने एक मीटिंग में गया तो वहाँ "आईस ब्रेकर अथवा परिचय" के दौरान एक चिट पर अपना नाम और अपना पसंदीदा टी.वी. शो लिखना था । लोगों से दुआ सलाम होते होते एक बुजुर्ग से सामना हुआ तो उनका पसंदीदा शो था "I Spy". मुझे थोडी हैरत हुयी तो उनसे बातचीत होने लगी । उन्होने बताया कि वो अब टी.वी. नहीं देखते लेकिन उनके बचपन (1970's) में टी.वी. पर बच्चों के लिये "I Spy" नाम का कार्यक्रम आता था । कार्यक्रम के बारे में पूछने पर पता चला कि ये तो हमारा खेल "आईस पाईस" ही था :-)

अभी मुम्बई हमलों के दौरान टी.वी. पर देखा कि "Black Clad" कमांडोज आपरेशन में लगे हुये हैं । तुरन्त दिमाग की घंटी बजी कि बचपन में इन्हे हम "Black Cat" कमांडोज कहते थे ।

क्या आपके साथ भी ऐसी कुछ यादें जुडी हुयी हैं ? अगर हाँ तो जरूर बतायें ।