आज यू-ट्यूब पर कव्वालियाँ सुनते सुनते अचानक अब्दुल रहीम फ़रीदी कव्वाल को सुनने को मौका मिला । इससे पहले कभी इनको सुना नही था लेकिन एक बार सुना तो दिन भर सुनता रहा । अब तो ऐसा जादू तारी हो गया है कि बिना आपको सुनवाये मन नहीं मानेगा ।
तो सुनिये, ख्वाजा की जोगनिया मैं बन जाऊँगी ...
बस एक ही टीस है कि ऐसे बेमिसाल कलाकार आज के बाजार की माँग के आगे कैसे चलेंगे । क्या आपको भी यही टीस उठती है कभी कभी ?
भाग एक:
इसी कव्वाली का दूसरा भाग:
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रविवार, अप्रैल 20, 2008
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इस बेहतरीन कव्वाली को सुनवाने के लिये धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंइस बात की टीस तो उठती हे कि बाजार के प्रभाव में ऐसे कलाकार गुमनाम ही रह जाते है।
भाई आपने बहुत अच्छा किया,बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकहाँ कहाँ से खोज कर नायाब चीजें लाते हो-वाह!! इसी लिये तो रोज भटकते यहाँ चले आते हैं. :)
जवाब देंहटाएंऐन मौके पर कम्प्यूटर का स्पीकर काम नहीं कर रहा। खैर हमने पोस्ट पढ़ी। सुनेंगे कभी बाद में।
जवाब देंहटाएंहां, सुन पाया, और अच्छा लगा।
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