रविवार, अप्रैल 13, 2008

जीतूजी की फ़रमाईश पर, कोई दीवार से लग के बैठा रहा !!!

हमारे प्यारे जीतूजी कोई फ़रमाईश करें और हम उसे पूरा न कर सकें तो शर्म आनी चाहिये इतने साल संगीत सुनने में बिताने में :-)

प्यारे भडासी भाई: आप भी इसे सुने और पुराना दौर याद करें ।
उनकी खास फ़रमाईश पर पेश है,

कोई दीवार से लग के बैठा रहा
और भरता रहा सिसकियां रात भर
आज की रात भी चाँद आया नही
राह तकती रही खिड़कियां रात भर

गम जलाता किसे कोई बस्ती ना थी
मेरे चारो तरफ़ मेरे दिल के सिवा
मेरे ही दिल पे आ आ के गिरती रही
मेरे एहसास की बिजलियां रात भर

दायरे शोख रंगो के बनते रहे
याद आती रही वो कलाई हमें
दिल के सुनसान आंगन मे बजती रही
रेशमी शरबती चूड़ियां रात भर

कोई दीवार से लग के बैठा रहा
और भरता रहा सिसकियां रात भर
आज की रात भी चाँद आया नही
राह तकती रही खिड़कियां रात भर
-अनाम शायर



पेश है, शायर का नाम अनाम है किसी को पता चले तो सूचित करे (यूनुसजी, आप सुन रहे हैं न???) । आवाज अशोक खोसला की है, ये वही अशोक खोसला हैं जिनका गाया गीत "अजनबी शहर में अजनबी रास्ते, मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे" काफ़ी प्रसिद्ध हुआ था । इस गीत को यूनुसजी ने अपनी रेडियोवानी पर भी सुनवाया था ।

लीजिये पेश-ए-खिदमत है: कोई दीवार से लग के बैठा रहा !!!

12 टिप्‍पणियां:

  1. नीरज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। मैं ही वह भडासी हूं जिसे इस गजल की दरकार थी। आज बरसों बाद दिल को वही सुकून मिला जो लखनऊ में बरसों पहले मिला था। मैं बयां नहीं कर सकता कि आपने यह गजल सुनकार कितना सुकून दिया है। धन्यवाद
    www.hamarelafz.blogspot.com

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  2. यह है ब्लॉगर्स सिनर्जी!

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  3. वाह ये गजल पसंद आई। अशोक खोसला जी की आवाज में जादू है। "मिली किसी से नजर तो समझो गजल हुई" मेरी पसंदीदा गजल है।

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  4. बेनामी10:17 pm

    नीरज जी
    गजल पढी तो बहुत सुन्दर लगी पर हम तो यह सुन नही पा रहे है adobe flash player pc मे install है फीर क्या वजह है कि हम बगैर सुने रह जाऐ.कुछ तो हल बताऔ.

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  5. जीतू जी की बदौलत हम लोगों को इतना मधुर गीत सुनवाने के लिए धन्यवाद।

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  6. नीरज भाई,
    बहुत बहुत धन्यवाद।
    इसे कहते है ब्लॉगिंग की ताकत। एक बंदे ने किसी चीज की इच्छा व्यक्त की, दूसरे ने ढूंढ कर उस प्रदान कर दिया और तीसरे व्यक्ति ने उसका आडियो भी उपलब्ध करा दिया। जबकि तीनो व्यक्ति दुनिया के अलग अलग हिस्से मे बैठे है। सचमुच इंटरनैट का दूसरा का दूसरा नाम ही मेल-मिलाप है।

    इसी तरह से सहयोग सामंजस्य चलता रहे और ये सभी लोग इससे लाभ उठाते रहे, इसी शुभकामनाओं के साथ।

    एक बार फिर से नीरज भाई आपका बहुत बहुत धन्यवाद(मैने आपका आडियो लिंक अपने ब्लॉग पोस्ट मे लगा दिया है, आशा है आप इसका बुरा नही मानेंगे।)

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  7. मित्र इस ग़ज़ल के शायर का पता आज-कल में ही अशोक खोसला को फुनिया कर लगाया जायेगा । अभी पिछले ही महीने तो विविध भारती आए थे । और हमने उनसे खूब बातें की थीं ।

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  8. जरा देर से ही सुनने आये लेकिन गजल बहुत सुंदर है। आप का धन्यवाद

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  9. aaj fir laut ker aayein hain yeh gaanaa sunane aur ek baar fir aap ka dhanywaad is aanand ke liye

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  10. अशोक खोसला का गाया ये गाना भी बेहद कर्णप्रिय है :
    सब हाथ छुडाये फिरते हैं,
    मैं चाहे जितना प्यार करूँ...
    ए दर्द की लहरों तुम ही कहो,
    किस नाव से दुनिया पार करें ?
    कृपया इसे कैसे डाउनलोड करें ये लिंक बताएं.

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  11. बढ़िया गज़ल... सुनने का तो अपने यहाँ लिंक ही नहीं आ रहा.. पढके ही संतोष कर लिया...

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