गुरुवार, मार्च 29, 2007

ऊर्जा संकट: तेल का दाम




ये रही इस लेख के प्रथम भाग की कडी:

इस लेख में मै तेल के दाम से सम्बन्धित कुछ पहलुओं पर अपना चर्चा करूँगा ।


भविष्य में कच्चे तेल की कीमतों का अनुमान लगाना एक दुष्कर कार्य है । इसका कारण है कि तेल का दाम किसी एक कारक अथवा किसी सरल नियम का पालन नहीं करता है । अभी आज से १०-१५ वर्ष पहले कहा जाता था कि कच्चे तेल का दाम कभी भी ५० डालर प्रति बैरल नहीं छू पायेगा । लेकिन आज कच्चे तेल का दाम लगभग ६६ डालर प्रति बैरल है और दीर्घकाल में इसमें किसी कमी की सम्भावना नहीं है । तेल के दाम को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले दो मुख्य कारक तेल का उत्पादन करने वाले राष्ट्रों में राजनैतिक सन्तुलन (पालिटिकल स्टेबिलिटी) और डालर की अन्य मुद्राओं के सापेक्ष में मजबूती है ।

कुछ लोग कहते हैं कि ये तेल के उत्पादन पर भी निर्भर करता है परन्तु मैं इससे असहमत हूँ, इसके दो कारण हैं । पहला तो ये कि तकनीक के आधुनिकरण के चलते आज उत्पादन को स्थिर रखा जा सकता है बशर्ते कि बाकी सभी कारक काबू में रहें । दूसरा ये कि ओपेक (आयल प्रोडूस्यिंग एंड एक्सपोर्टिंग कंट्ररीज) के कारण सभी देशों ने अपने उत्पादन की सीमा बना रखी है, तेल का दाम एक निश्चित सीमा से नीचे जाते ही ओपेक तेल के उत्पादन में आंशिक कटौती की सिफ़ारिश करना शुरू कर देता है । अत: उत्पादन लगभग स्थिर है, उल्टा तेल का दाम उत्पादन को प्रभावित करता है । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि तेल का दाम कम होते ही बाजार में तेल की झूठी कमी देखा कर फ़िर से दाम बढाने का प्रयास किया जाता है ।

(चित्र का स्रोत: http://www.wtrg.com/oil_graphs/oilprice1947.gif)


आप सभी ने सन १९७९ के ईरान के कट्टरपंथियों के आन्दोलन के बारे में अवश्य पढा होगा । उस समय ईरान ने कट्टरपंथियों ने अमरीकी दूतावास पर कब्जा करके कई सौ कर्मचारियों का अपहरण कर लिया था । उस समय ईरान और अमेरिका लगभग सैनिक टकराव की कगार पर पँहुच गये थे । उस समय और आज भी ईरान तेल का दूसरा सबसे बडा उत्पादक/निर्यातक था/है । १९७९ में ईरान के राजनैतिक हालात को देखते हुये बाजार का ईरान पर विश्वास डगमगा गया था । कुछ समय के लिये ईरान का तेल उत्पादन ठप हो गया था । उस समय अमेरिका के दबाव में सऊदी अरब ने विश्व को भरोसा दिलाया था कि वे तेल का उत्पादन बढाकर बाजार में तेल की कमी नहीं होने देंगे । लेकिन इसके तुरन्त बाद ईरान और ईराक में लडाई(१९८०-१९८८) छिड गयी थी जिसके कारण तेल के बाजार में अनिश्चितता का वातावरण बन गया था । इस सब के बीच में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि इस पूरे प्रकरण में तेल के उत्पादन में मात्र ४ प्रतिशत की कमी आयी थी । मात्र इस ४ प्रतिशत की कमी ने तेल की कीमतों को गगनचुम्बी स्तर पर ला दिया था । बाकी तेल उत्पादक देशों ने अपने उत्पादन तो बढा देये थे लेकिन उन्होनें बाजार में फ़ैली अनिश्चितता को दूर करने का प्रयास नहीं किया था क्योंकि सभी अपना तेल बढे हुये दाम पर बेचना चाहते थे ।

ध्यान दीजिये कि जब से ईरान ने इंगलैण्ड के कुछ नौसैनिको को पकडा है, मात्र ७ दिनो में तेल का दाम ५८ डालर प्रति बैरल से ६६ डालर प्रति बैरल पँहुच चुका है । यदि इस समस्या का शीघ्र समाधान न हुआ तो तेल के दाम इसी स्तर पर रूके रह सकते हैं या और बढ सकते हैं ।

पिछ्ले साल अमेरिका में रेकार्ड तोड चक्रवात (हरीकेन) आये थे । इन चक्रवातों (कट्रीना और रीटा) ने दक्षिणी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में खूब कहर बरपाया था । मेक्सिको की खाडी में तमाम तेल उत्पादन इकाईयां प्रभावित हुयी थी और ह्य़ूस्टन के आस पास कई तेल शोधक कारखानों का उत्पादन बन्द हो गया था । इसके कारण रातों रात तेल के दाम में भारी बढोत्तरी हुयी थी जिसको नीचे आते आते महीनों लग गये थे ।

लेख बहुत लम्बा हो गया है अत: इसका समापन मैं तीसरे भाग में करूँगा जिसमें मैं एशिया की बढती तेल की माँग के कारण तेलक्षेत्र खरीदने की गलाकाट प्रतियोगिता के बारे में लिखूँगा ।

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