आज की इस पोस्ट को मैं अपने "माता-पिता" को समर्पित करता हूँ ।
इस पोस्ट में आपके लिये हाजिर है फ़िल्म "आप की परछाइयाँ" फ़िल्म का एक गीत । फ़िल्म सन १९६४ में आयी थी, संगीत मेरे पसंदीदा संगीतकार मदन मोहन जी ने दिया था और फ़िल्म के गीत लिखे थे "राजा मेंहदी अली खान" ने । ये वही गीतकार हैं जिन्होनें मदन मोहन जी के साथ अनेकों फ़िल्मों में यादगार नग्में लिखे ।
मदन मोहन जी के साथ "राजेन्द्र क्रष्ण " ने भी बहुत सुंदर गीत लिखे हैं परन्तु उन गीतों का जिक्र किसी और पोस्ट में करूँगा ।
फ़िलहाल उदाहरण के लिये पेश हैं "राजा मेंहदी अली खान" के कुछ नग्मों की फ़ेहरिस्त:
१) आपके पहलू में आकर रो दिये: मेरा साया (१९६६)
२) आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे: अनपढ (१९६२)
३) आपको प्यार छुपाने की बडी आदत है: नीला आकाश (१९६५)
४) एक हसीं शाम को दिल मेरा खो गया: दुल्हन एक रात की (१९६६)
५) है इसी में प्यार की आबरू: अनपढ (१९६२)
६) लग जा गले फ़िर ये हसीं रात हो ना हो: वो कौन थी (१९६४)
अब फ़ुरसतियाजी के अन्दाज में मेरी पसन्द:
ये गीत फ़िल्म "आप की परछाइयाँ" से है जिसके बोल इस तरह से हैं:
जब तक के हैं आकाश पे चाँद और सितारे,
भगवान सलामत रहें माँ बाप हमारे ।
माँ बाप का दिल है किसी तीरथ से भी प्यारा,
हँस हँस के उठाते हैं वो दुख दर्द हमारा,
फ़िर क्यों न हर एक साँस दुआ बन के पुकारे,
भगवान सलामत रहें माँ बाप हमारे ।
कहते हैं के माँ बाप का दिल जिसने दुखाया,
आकाश पे भगवान को भी उसने रुलाया,
दुनिया की हर एक चीज से माँ बाप हैं प्यारे,
भगवान सलामत रहें माँ बाप हमारे ।
जब तक के हैं आकाश पे चाँद और सितारे,
भगवान सलामत रहें माँ बाप हमारे ।
मंगलवार, मार्च 27, 2007
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अच्छी जानकारी दी गीतों के बारे में आपने।
जवाब देंहटाएंनीरज जी आपने चिट्ठे का नाम रोमन में क्यों रखा है। हिन्दी चिट्ठे का नाम देवनागरी में ही जंचता है। इस विषय में मेरे विचार यहाँ पढ़िए:
अपने चिट्ठे का नाम हिन्दी में क्यों नहीं रखते
बहुत खुबसूरत समर्पण है, नीरज!!
जवाब देंहटाएंसमस्त माताओं-पिताओं को नमन.
वाह नीरज बाबू,
जवाब देंहटाएंमदन मोहन की बात आपने सही कही । वो मेरे भी पसन्दीदा संगीतकार थे । उनके गीतों मे मुझे सबसे अच्छा गीत लगता है फ़िल्म हँसते ज़ख़्म का "तुम जो मिल गये हो"...
ऐसे ये जो गीत आपने लिखा यहाँ मुझे इसका पता नही था । धन्यवाद ।