मंगलवार, मार्च 27, 2007

ग़ज़ल


खिड़कियाँ, सिर्फ़, न कमरों के दरमियां रखना
अपने ज़ेहनों में भी, थोड़ी सी खिड़कियाँ रखना

पुराने वक़्तों की मीठी कहानियों के लिए
कुछ, बुजुर्गों की भी, घर पे निशानियाँ रखना

ज़ियादा ख़ुशियाँ भी मगरूर बना सकती हैं
साथ ख़ुशियों के ज़रा सी उदासियाँ रखना.

बहुत मिठाई में कीड़ों का डर भी रहता है
फ़ासला थोड़ा सा रिश्तों के दरमियां रखना

अजीब शौक़ है जो क़त्ल से भी बदतर है
तुम किताबों में दबाकर न तितलियाँ रखना

बादलो, पानी ही प्यासों के लिए रखना तुम
तुम न लोगों को डराने को बिजलियाँ रखना

बोलो मीठा ही मगर, वक़्त ज़रूरत के लिए
अपने इस लहजे में थोड़ी सी तल्ख़ियाँ रखना

मशविरा है, ये, शहीदों का नौजवानों को
देश के वास्ते अपनी जवानियाँ रखना

ये सियासत की ज़रूरत है कुर्सियों के लिए
हरेक शहर में कुछ गंदी बस्तियाँ रखना

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन:

    बादलो, पानी ही प्यासों के लिए रखना तुम
    तुम न लोगों को डराने को बिजलियाँ रखना

    बोलो मीठा ही मगर, वक़्त ज़रूरत के लिए
    अपने इस लहजे में थोड़ी सी तल्ख़ियाँ रखना


    --वाह जनाब वाह, क्या पेशकश है!! मजा आ गया.

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  2. वाह पहली बार कोई गजल मैंने पूरी पढ़ी और मुझे समझ भी आई और मुझे अच्छी भी लगी।

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