बुधवार, अक्टूबर 31, 2007

इलाहाबाद में संगम और ज्ञानगंगा में डुबकी

बनारस से हम सुबह ९ बजे के आस-पास इलाहाबाद आ गये थे । अंकुर के मामाजी के घर सामान रखने के पश्चात चाय नाश्ता किया गया । इसके तुरन्त बाद ज्ञानदत्त पाण्डेयजी से सम्पर्क स्थापित कर शाम को पाँच बजे मिलने का समय निश्चित कर लिया गया । तत्पश्चात मैने ह्यूस्टन में अपने रूम-मेट अंकुर श्रीवास्तव के पिताजी से सम्पर्क साधा और उन्होनें हमें संगम स्नान करने की सलाह दी । बनारस में एक दिन रूकने के बाद भी हम काशी विश्वनाथ मंदिर (बडा वाला) नहीं देख पाये थे और केवल बी.एच.यू. कैम्पस वाले काशी विश्वनाथ मंदिर को देखकर ही संतोष कर लिया था । इसीलिये इलाहाबाद आकर मैं कम से कम संगम स्नान तो करना चाहता ही था । इस बार हमारे मित्र अंकुर ने कहा कि वो संगम नहीं जायेगा क्योंकि उसे वहाँ के पण्डों से बडा भय है । हमने यही बात जब अंकल को बतायी तो उन्होने कहा कि वो रोज सुबह शाम संगम नहाने जाते हैं और वो हमें अपने साथ ले जाकर संगम स्नान करायेंगे । आधे ही घंटे में वो हमको लेने आ गये और हम उनके साथ अपने जीवन के पहले संगम स्नान करने के लिये चल पडे ।

संगम तट पर नाव वालों से उन्होने जब उन्हीं की भाषा में बोलना प्रारम्भ किया और श्राप देकर भस्म कर देने का डर दिखाया तो नाव वाला सही दाम पर हमें नाव पर ले जाने को तैयार हो गया । गंगा और यमुना के संगम पर हमने जी भरकर स्नान किया और उन्होने हमें कई पौराणिक कथायें एवं "अष्टावक्र गीता" के बारे में भी बताया । हम लोगों ने गंगा के जल प्रदूषण एवं सरकारी इन्तजामों पर भी चर्चा की । इसके बाद अंकल ने अपने थैले में से शुद्ध चंदन घिसकर हमारा तिलक किया । जरा फ़ोटो में गौर फ़रमाईये :-)

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इसके बाद हमने एक दक्षिण भारतीय भोजनालय में जमकर भोजन कियाIMG_2083 और ह्यूस्टन से लेकर बी.एच.यू और एन.आई.टी. इलाहाबाद तक की चर्चा की । तय योजना के तहत हमने अपने रूम-मेट अंकुर की बीच बीच में जमकर तारीफ़ की :-) इसके बाद अंकल ने अपने घर ले जाकर अपने स्कूटर की चाभी हमारे सुपुर्द कर दी जिससे शहर में घूमने और आवारागर्दी करने में हमे तनिक भी समस्या न हो । हमने ध्यान दिया कि अंकल के स्कूटर की टंकी भी लगभग पूरी भरी हुयी थी जिससे मन और अधिक प्रसन्न और चिंतामुक्त हो गया :-) यहाँ पर एक बात बताते चले जिससे कि सनद रहे । मथुरा, कानपुर और बनारस की सडकों के बुरे हाल को देखते हुये हमें इलाहाबाद की सडकें एकदम हेमाजी के गालों की तरह लगीं । इतनी सपाट और गड्ढे मुक्त सडकें देखकर मन प्रसन्न हो गया और हमारे मुँह से बरबस ही निकल उठा "साधुवाद स्वीकार करें ।"

इसके बाद हमने कुछ समय अंकुर के मामाजी के घर पर बिताया और अंकुर की बहनजी ने हमें इलाहाबाद सिविल लाइन्स का चक्कर लगवाया । इस बीच समय द्रुत गति से चलता रहा और शाम होने को आ गयी । हमें ज्ञानदत्तजी के साथ मिलने के अपने वायदे का ध्यान आया और मैं अंकुर के साथ ज्ञानदत्तजी के घर पर चाय-नाश्ता करने के लिये निकल पडे । हमने ज्ञानदत्तजी के घर जाने के रास्ते का नक्शा साथ में ले रखा था इसीलिये कोई खास परेशानी न हुय़ी और हमने ज्ञानदत्तजी के घर पर दस्तक दे दी ।

ज्ञानजी से मिलकर हिन्दी ब्लागिंग के रूप पर चर्चा हुयी । ज्ञानजी ने महसूस किया कि अगर प्रौद्योगिकी के विषय पर हिन्दी में लिखना है तो फ़िर हिट्स और टिप्पणी की चिन्ता छोडकर लिखना होगा । इसके अलावा हिन्दी ब्लागिंग में अंग्रेजी के शब्दों को ठेलने को लेकर भी हम एक मत थे । मैने उनसे अपने मन की बात कही कि अधिकांश लोग हिन्दी ब्लागिंग में अपने शौक की वजह से हैं और इस पर हिन्दी की सेवा करने का दम्भ भरना बेईमानी है ।

बातों बातों में ये भी पता चला कि ज्ञानदत्तजी ने बिट्स पिलानी (BITS PilaniIMG_2089) से अभियांत्रिकी की शिक्षा प्राप्त की थी और ये भी कि उन्होनें अपनी कक्षा १२ की परीक्षा राजस्थान से वहाँ की मेरिट लिस्ट में आकर उत्तीर्ण की थी । लेकिन हमें ये बताने का मौका न मिला कि हम भी १२ की परीक्षा में उत्तर प्रदेश की मेरिट लिस्ट में ११ वें पायदान पर थे और फ़ार्म भरने में हमारी खुद की जरा सी गलती के चलते बिट्स पिलानी में दाखिला न मिल पाया था :-)

हमने ज्ञानजी से रेलवे के लाभ में लालूजी की भूमिका के बारे में बताया तो उन्होनें स्पष्ट कहा कि इसमें लालूजी का इतना ही हाथ है कि उन्होनें रेलवे अधिकारियों को उनकी योजनाओं का क्रियान्वन करने में खुला हाथ दिया और हस्तक्षेप नहीं किया । इसके अलावा रेलवे की कुछ स्थानीय समस्याये जो पूर्वी उत्तर प्रदेश से सम्बन्धित थी पर भी चर्चा हुयी ।

ज्ञानजी से भविष्य के ऊर्जा स्रोतों के विषय पर लम्बी बातचीत हुयी और मैने उन्हे "गैस हाइड्रेट्स" के बारे में बताया । गैस हाइड्रेट्स पर ज्ञानजी एक पोस्ट लिखने का वायदा पहले ही कर चुके हैं । जैविक ईधनों के विकास पर मैने अपने नकारात्मक विचार भी व्यक्त किये कि किस तरह कुछ देशों में खाद्य पदार्थों का जैविक ईधन में प्रयोग करने से खाद्य पदार्थों के दाम बढ रहे हैं जिससे गरीब जनता काफ़ी बुरी तरह प्रभावित हो रही है । इसके अलावा दक्षिणी अमेरिकी देशों में जंगलों को काटकर जैविक ईधन के लिये खेती किये जाने से पर्यावरण सम्बन्धी समस्यायें सामने आ रही हैं ।

इस सब के बीच में चाय-नाश्ता का दौर निर्बाध रूप से चलता रहा और श्रीमती पाण्डेयजी से भी बात-चीत करने का अवसर मिला । हम सभी ने जेनरेशन गैप पर अपने अपने अनुभव सुनाये । ज्ञानजी को हमने अपने दौडने के किस्से सुनाये और उन्होनें जल्दी से विषय बदल डाला जिससे हम उन्हें दौडा न पाये । इस पूरे घटनाक्रम के लिये फ़ुरसतियाजी शक के घेरे में हैं और ऐसी सम्भावना है कि ज्ञानजी को इस विषय के बारे में पूर्व सूचना मिल चुकी थी :-)

बातें करते करते काफ़ी समय बीत चुका था और ज्ञानदत्तजी से आज्ञा लेकर भविष्य में पुन: मिलने की आशा के साथ हम अपने घर के लिये निकल पडे । रास्ते में एक जगह रामलीला का मंचन हो रहा था जहाँ मैने ये चित्र भी लिया । 

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8 टिप्‍पणियां:

  1. जब भी कोई ज्ञान जी से मिलता है मुझे लगता है कि मैं बहुत पिछड़ता जा रहा हूँ..क्या शक्सियत पाई है उन्होंने. ऐसा एहसास मुझे कम ही होता है.

    अच्छा लगा पूरा विवरण...फोटो डार्क है. हमने तो ब्राईट करके देख लिया मगर चढ़ाते समय ही अगर यह देख लिया जाये तो बेहतर वरना तो हम दिखे ही न!!

    जारी रहो....इस यात्रा संस्मरण की श्रृंख्ला में.

    मजा आ रहा है.

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  2. सम्पूर्ण विवरण पढ़ कर अच्‍छा लगा, प्रयाग का गौरव बढ़ने के लिये धन्‍यवाद

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  3. बहुत बढ़िया। अपने शहर इलाहाबाद के लिए अच्छी-अच्छी बातें सुनना। हिंदी ब्लॉगिंग के उज्ज्वल भविष्य की चर्चा और ज्ञानदत्तजी की सुंदर फोटो। बढ़िया है। वैसे, इलाहाबाद की सड़कें हेमा के गाल सी हैं सुनकर सबसे ज्यादा अच्छा लगा।

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  4. बड़ा रोचक विवरण है। पाण्डेयजी हमेशा टाप पर रहे हैं। ऐसा इस पोस्ट से लगा। हम पर शक मत करो बालक। हमने पाण्डेयजी को कुच्छ नहीं बताया। वे अन्तर्यामी हैं।जान गये होंगे। :)

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  5. मेरी पत्नी का विचार है कि आपने बड़ी कृपा की शिवकुटी जैसी छोटी जगह को अंतर-राष्ट्रीय पहचान दे कर। पर उन्हे बनारस की बुराई तनिक न भाई - मायका हर स्त्री को प्रिय होता है!
    ट्रेवलॉग लेखन में विविधता से आप सुकुल जी को सीरियस टक्कर दे रहे हैं!

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  6. अरे नीरज कहां ग़ायब हैं आप । उस दिन के बाद आपकी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है ।
    उस दिन हम ज़रा रेडियो प्रसारण में जुटे थे दोस्‍त ।
    वैसे आपकी भारत यात्रा के संस्‍मरण दिलचस्‍प बन रहे हैं । पर ज़रा जल्‍दी जल्‍दी लिखो ना भाई । कई दिनों की छुट्टी कर लेते हो ।

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  7. आपके चिट्ठे को पहली बार विस्तार से देखने का मौका मिला और सच कहूं तो बस मजा आ गया.. :)
    ज्ञान जी और समीर जी से मिलने की इच्छा संजोये तो हम भी बैठे हैं, देखिये कब मुलाकात होती है इन लोगों से..

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