मंगलवार, अक्टूबर 30, 2007

मथुरा से कानपुर की यात्रा और एक ब्लागर मीट का विवरण

अपनी पिछली पोस्ट में मैने हवाई अड्डे से मथुरा तक आने के बारे में लिखा था । मथुरा में घरवालों के सानिध्य में दो दिन गुजारने के पश्चात मैने उन्हे अपने कानपुर, बनारस और इलाहाबाद की प्रस्तावित यात्रा के बारे में बताया । मेरी उम्मीद के विपरीत घरवाले आराम से तैयार हो गये, शायद सोचा हो कि थोडा धरम-करम करके लडका बुरी संगत से निकल जाये और कानपुर में रहने वाले मेरे मित्र अंकुर वर्मा की घर में बडी ही उत्तम छवि भी थी, सम्भवत: इसके चलते ही इजाजत मिल पायी ।

मैने अपने जीवन में पहली बार अपने पैसे खर्च कर भारतीय रेल की वातानुकूलित सेवा का लाभ उठाया :-)

मथुरा से कानपुर जाने वाली गाडी अपने निर्धारित समय से २० मिनट पहले प्लेटफ़ार्म पर खडी थी लेकिन उसके दरवाजे बन्द थे । नियत समय पर दरवाजे खुल गये और हमने अपनी सीट पर कब्जा जमा लिया और आज पास के माहौल का जायजा लेने लगे । सामने एक विदुषी सी दिखने वाली महिला ने कहा कि उनकी ऊपर वाली सीट है और अगर मुझे कोई विशेष परेशानी न हो तो मैं अपनी नीचे वाली सीट उनसे बदल लूँ । मैने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और इस प्रकार उनसे बातचीत भी प्रारम्भ हो गयी । उन्होने ये भी कहा कि रेलवे को ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये जिससे कि महिलाओं और वृद्ध नागरिकों को निचली सीटों पर वरीयता दी जाये । मैने उनकी बात पर अपना सिर हिलाया जिसे उन्होने मेरी सहमति समझकर कहा कि इतने कामन सेंस की बात रेलवे को समझ में क्यों नहीं आती है । बाद में पता चला कि वे मथुरा में चलने वाले दिल्ली पब्लिक स्कूल में इतिहास की अध्यापिका हैं ।

इसी बीच अन्य यात्री गणों ने भी अपना अपना स्थान ले लिया और एक बार फ़िर से बातचीत का दौर प्रारम्भ हो गया । वातानुकूलित डिब्बों में जिस प्रकार लोग अपनी ही टशन में रहते हैं वैसा यहाँ कुछ भी नहीं था । सामने कक्षा ११ का एक विद्यार्थी बैठा था जिसने मुझसे कुछ विज्ञान सम्बन्धी प्रश्न पूछे और मैने भी उसके ज्ञान को टटोला । कुल मिलाकर बाते करते हुये १ घंटा हो गया और अभी तक रेलगाडी मथुरा से तनिक भी नहीं खिसकी थी । मैं इस बात से बडा प्रसन्न हुआ क्योंकि गाडी के कानपुर आने का समय सुबह चार बजे का था और लेट होने की स्थिति में गाडी पाँच बजे के बाद ही कानपुर पँहुचेगी । चूँकि रात के ग्यारह बज चुके थे हम सभी लोगों ने सोने का उपक्रम किया और शीघ्र ही मैं नींद के आगोश में मधुर सपनों में खोया हुआ था । जब नींद खुली तो पता चला कि कानपुर स्टेशन आने ही वाला है और अगले दस मिनट में मैं कानपुर स्टेशन पर था । वहाँ से आई. आई. टी. कानपुर के लिये आटो रिक्शा लेकर अगले एक घंटे में मैंने अपने मित्र के रूम पर दस्तक दे दी ।

उसके बाद मैने रासायनिक अभियांत्रिकी के कई प्रोफ़ेसरों और छात्रों के साथ अपने और उनके शोधकार्य के सन्दर्भ में बातचीत की एवं वहाँ की प्रयोगशालाओं का जायजा लिया । इस सब कार्यक्रम के बीच में मुझे याद आया कि अनूपजी को फ़ोन भी करना है, अनूपजी को फ़ोन करके उनसे शाम को मिलने का कार्यक्रम पक्का किया गया । पहले सोचा था कि हम खुद ही अनूपजी के घर पर जा धमकेंगे लेकिन फ़िर हमने अनूपजी कि सरल हृदयता का फ़ायदा उठाकर उनसे होस्टल में आकर हमें ले जाने का निवेदन किया जो उन्होनें सहर्ष ही स्वीकार कर लिया । अनूपजी के घर के रास्ते में कई बार ट्रैफ़िक ने हमारा दिल दहलाया लेकिन अनूपजी इससे बिना प्रभावित हुये कुशलता से कार चलाते हुये अपने घर ले आये ।

अनूपजी के घर मे घुसते ही हमें वह बगीचा दिखा जहाँ अभय तिवारी जी ने अपने क्रिकेट के जलवे दिखाये थे, अफ़सोस हमें ऐसा कोई मौका नहीं मिला :( बातचीत का दौर शुरू हुआ, अनूपजी ने हमारे साथी अंकुर वर्मा में भावी ब्लागर बनने की संभावनायें टटोली । इस बीच चाय का दौर शुरू हुआ और अनूपजी ने अंकुर को फ़ुरसतिया टाइम्स के कुछ अंक दिखाये जिन्हे उन्होने शाहजहाँपुर में लिखा था । अंकुर ने फ़ुरसतिया टाइम्स के गुप्त रोगों सम्बन्धी विज्ञापन को देख कर धीरे से टिप्पणी की "अनूपजी की ओब्जर्वेशन बडी चाँपू है, ऐसा केवल वो ही लिख सकता है जो आस पास के माहौल को बडे ध्यान से देIMG_1981खता हो ।" हमने अंकुर से चाँपू शब्द की व्याख्या बाद में पूछ्ने का सोचा और फ़िर भूल गये :-)

 

इस बीच अनूपजी ने हमारे शोध के सन्दर्भ में कुछ सवाल पूछे जिसे मैं और अंकुर आसानी से टाल गये । अंकुर और अनूपजी के बीच में आई. आई. टी. के आईटी ठेला के बीच में भी कुछ बातचीत हुयी जिसमें हमें कुछ खास समझ नहीं आया । फ़िर कार्यक्षेत्र में होने वाले कुछ भ्रष्टाचार की भी बात हुयी जिस पर अनूपजी ने एक पोस्ट (फ़ुरसतिया)  लिखने का वादा किया । इस बीच उनकी कई दिनों से कोई फ़ुरसतिया पोस्ट न आने पर हमने अपनी शिकायत दर्ज की, जिस पर वो थोडे से संजीदा हो गये ।

हमने अनूपजी को दौडने की सलाह दी जिसको वो पूरी कुशलता से डक कर गये । हमने श्रीमती शुक्ला (शुक्लाइनजी) को भी ब्लाग शुरू करने की सलाह दी जिस पर उन्होने कहा कि ये तो कुछ कामIMG_1983 करते नहीं अब हमने भी लिखना शुरू कर दिया तो घर कैसे चलेगा :-)। फ़िर ये भी पता चला कि अनूपजी के सुपुत्र ह्रितिक रोशन के बडे वाले पंखे और कूलर हैं । उन्ही के सुपुत्र के शब्दों में "ह्रितिक रोशन से मिलने के लिये उनके घर के बर्तन माँजने को भी तैयार हूँ ।"

इस बीच हमने अनूपजी को पाडकास्टिंग के बारे में थोडा समझाया और उन्हे उनके लेपटाप में  Ram  बढवाने की सलाह दी । इसके पश्चात मुंबई से अभय तिवारी जी का फ़ोन आ गया और उनसे फ़ोन पर बातचीत हुयी । साथ ही अभयजी ने हमें मुम्बई आने का न्योता भी दिया ।

इसी प्रकार बात चीत करते करते काफ़ी समय बीत गया और विदा करते समय अनूपजी ने अंकुर को "राग दरबारी" और मुझे "गालिब छुटी शराब" की एक प्रति अपने हस्ताक्षर सहित भेंट दी जिससे हम उसे किसी अन्य को भेंट न कर सकें । तत्पश्चात अनूपजी ने मुझे और अंकुर को वापिस आई. आई. टी. के हास्टल छोडा और भविष्य में फ़िर मिलने की उम्मीद के साथ हमने अनूपजी को विदा दी ।

उसी दिन रात में ट्रेन के द्वारा हम बनारस/इलाहाबाद के लिये रवाना हो गये जहाँ हमें ज्ञानदत्त पाण्डेयजी से मिलने का मौका मिला जिसका विवरण अगली पोस्ट में अर्थात कल देंगे ।

 

चलते चलते आई. आई. टी. कानपुर के एक अत्यन्त बुद्धिमान शोधार्थी के हास्टल रूम की कुछ तस्वीरें । ये महाशय बडे सरल हृदय हैं और इलेक्टानिक्स में थ्योरिटिकल रिसर्च कर रहे हैं । थ्योरी में काम करने के कारण होस्टल का रूम ही इनका कर्म/धर्म क्षेत्र है । उस शोधार्थी की प्राइवेसी के लिये उनका नाम अथवा चित्र नहीं दिया जा रहा है ।

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7 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो खुद फुर्सतीय ऑब्जर्वेशन वाली पोस्ट है। भैया, मुझे तो भय है कि आपकी ऐसी चांपू (जो भी मतलब हो उसका) दृष्टि से तो हमारा सारा शो-पानी धुल गया होगा। खैर कल पता चलेगा।

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  2. बढ़िया रहा विवरण. लेकिन बालक के कमरे की हालत देखकर दिल दहल गया-कितनी सिगरेट!!

    चलिये कल इन्तजार रहेगा ज्ञान जी के अलंकरण का. :)

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  3. अच्छा लगा आपका विवरण.

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  4. धांसू पोस्ट है। हमरी बहुत पोल-पट्टी खोल डाली। हमें दौड़ाने का प्रयास सफ़ल न हुआ लेकिन बड़ी बात नहीं कि हम खुद ही दौड़ने लगें। सिगरेट बहुत हैं भाई। कम पिया करे बालक ।

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  5. विवरण तो बढ़िया है भैय्या पन तस्वीरे देख के भेजा हिल गया!! धन्य है वे बंधु जिनके कमरे की यह तस्वीर है!!

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  6. सिगरेट में तो भाई ने मुझे भी पिच्छे छोड़ दिया हैं

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  7. तसवीर देख के लगा जैसे की किसी ने मेरे कमरे की तस्वीर खींच ली हो

    :D lmao (पेट पकड के हंसना)

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