डिस्क्लेमर: ये पोस्ट मूलतः मौज लेने के लिए लिखी गयी है, कवि ह्रदय वाले लोग अन्यथा न लें | कवि अगर अन्यथा ले लें तो चिंता की कोई बात नहीं है |
कुछ दिन पहले विचारार्थ नाम के चिट्ठे पर राजकिशोरजी का "विवाह पर कुछ विचार" नामक लेख पढ | जैसे ही पढ़ना प्रारम्भ किया घोर कन्फ्यूजन ने घेर लिया कि ये लेख पद्य है या गद्य ? फिर लेख की लम्बाई और बीच बीच में पूर्ण विराम देख कर लगा कि हो न हो ये गद्य लेखन ही है | आप भी देखिए:
"जर्मनी की सबसे चमक-दमक वाली नेता गैब्रील पॉली
ने अपने चुनाव घोषणापत्र में यह प्रस्ताव शामिल कर
हड़कंप मचा दिया है कि विवाह की मीयाद सात वर्ष
होनी चाहिए। सात वर्ष के बाद भी कोई युगल अपने
वैवाहिक संबंध को बनाए रखना चाहता है, तो उसे
इस संबंध की अवधि बढ़ाने की सुविधा मिलनी
चाहिए। पॉली की उम्र पचास वर्ष है। उनका दो बार
तलाक हो चुका है। तलाक के लिए जिम्मेदार कौन
था, नहीं मालूम। इसकी खोज करने की जरूरत भी"...
लेख की लम्बाई, कविता के शिल्प पर मेरी जानकारी बहुत ही कम है इसीलिये अगर एक पंक्ति में ८-१० शब्द हों और कुल मिलाकर १६-२० पंक्तियां हों तो मैं उसे बिना वाद विवाद के कविता मान लेता हूँ । अगर ऊपर दिए हुये उदाहरण में से पूर्ण विराम और अर्ध विराम हटा दिये जायें तो क्या ये एकदम आधुनिक कविता नहीं बन जायेगी और शायद "हिन्द-युग्म" अथवा और कहीँ छपने को भेजी जाये तो प्रकाशित भी हों जाये :-) ईस्माइली लगा दी है इसलिये अन्यथा लेने की नहीं हो रही है।
ऐसा ही एक और उदाहरण देखें विचारार्थ की आज की पोस्ट से:
"भारत सरकार 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा
दिवस के रूप में मान्यता दिलाने में सफल रही, इस
पर वे ही खुश हो सकते हैं जो गांधी को ठीक से नहीं
जानते। यह सच है कि गांधी जी आखिरी सांस तक
यही कहते रहे कि सत्य और अहिंसा, यही मेरे दो
मूल मंत्र हैं। लेकिन सत्य को निकाल दीजिए, तो
अहिंसा लुंज-पुंज हो कर रह जाएगी। महात्मा और जो
कुछ भी थे, लुंज-पुंज नहीं थे। न वे लुंज-पुंज व्यक्ति
या बिरादरी को पसंद करते थे। बल्कि उनकी शिकायत
ही यही थी कि भारत के लोगों द्वारा हथियार रखने
पर पाबंदी लगा कर अंग्रेजों ने इस देश के लोगों को
नामर्द बना दिया। मर्द और नामर्द की शब्दावली आज
की नारीवादियों को पसंद नहीं आएगी। लेकिन गांधी
जी मर्द थे, मर्दवादी नहीं थे। वे तो अपनी संतानों की
मां और बाप, दोनों बनना चाहते थे। महात्मा की पौत्री
मनु गांधी की एक किताब का नाम है, बापू मेरी मां।"...
राजकिशोरजी के दोनो लेख काफी विचारोत्तेजक हैं इसीलिये उनके चिट्ठे पर जाकर इन लेखों को पढ़ना न भूलें |
रविवार, अक्टूबर 07, 2007
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वाह! वाह!!! एक एण्टर-की(enter key)हमें कवि बना सकती है। यह बताने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद! :-)
जवाब देंहटाएंकन्फ़्यूजन में हम आपके साथ है! :)
जवाब देंहटाएंराजकिशोर जी बडे पुराने समाजवादी कन्फ्यूज्ड लेखक हैं। दिक्कत की बात यह है कि वे अपनी लेखन शैली से भी कन्फ्यूज कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंहा हा!! बहुत सही लिखा आपने!!
जवाब देंहटाएंआप एकाएक कितनी सुन्दर कविता करने लगे हैं. वाह!!
जवाब देंहटाएंआपकी बहुमुखी प्रतिभा देख मन प्रसन्न हुआ जाता है.