शुक्रवार, अक्तूबर 12, 2007

ये हफ्ता कटता क्यों नहीं ??? + दौड़ो भागो खुश रहो !!! :-) :-) :-)

आज शुक्रवार हो गया है। बस तीन दिन, और उसके बाद (१५ अक्टूबर को) मैं देश के लिए रवाना हो जाऊँगा। लेकिन देश जाने के कारण दो महत्वपूर्ण गतिविधियों में भाग नहीं ले पाऊँगा। भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री ए पी जे अब्दुल कलाम १८ अक्टूबर को मेरे विश्वविद्यालय में एक भाषण देने आ रहे हैं। इस बात की काफी संभावना थी कि अगर यहाँ होता तो उनसे एक व्यक्तिगत मुलाक़ात भी हो जाती लेकिन अफ़सोस...

दूसरा ये कि अमेरिकी सरकार के वाणिज्य विभाग ने भारतीय विद्यार्थियों को अमेरिका में उच्च-शिक्षा के लिए बढावा देने हेतु एक वीडियो बनाने का निश्चय किया है। इसके लिए उन्होने कई प्रमुख विश्वविद्यालयों से सम्पर्क स्थापित किया है जिसमें से राईस विश्वविद्यालय भी एक है। इस वीडियो में हर कालेज में से चुने हुये भारतीय विद्यार्थियों के साक्षात्कार होंगे जिसे एक डीवीडी के रुप में प्रयोग किया जाएगा। राईस ने इस कार्य के लिये मेरा चयन किया था मगर अफ़सोस कि वाणिज्य विभाग की कैमरा टीम २२ अक्टूबर को आ रही है और मैं इसमे भाग नहीं ले सकूंगा और मेरे स्थान पर एक अन्य भारतीय विद्यार्थी का साक्षात्कार लिया जायेगा :-(

चलिये कोई बात नहीं, अब मुद्दे की बात पर आते हैं जिसके लिये हमने ये पोस्ट लिखी है। कुछ महीने पहले मैंने अपने दौड़ने भागने के किस्सों पर एक पोस्ट लिखी थी। पिछले महीने मैंने एक रिले दौड़ में भाग लिया था। इस दौड़ की विशेषता थी कि रास्ता बहुत ही ऊंचा नीचा और पहाड़ी जैसा था। हमारी टीम में चार सदस्य थे, दो लड़के और दो लडकियां और प्रत्येक सदस्य को २ मील (३.२ किमी) दौड़ना था। बिना किसी प्रैक्टिस के हमारी टीम ने नौवां स्थान प्राप्त किया जो काफी अच्छी बात थी। ये और भी महत्वपूर्ण इसलिये था कि लगभग ५ सालों के बाद मैंने किसी प्रतियोगी दौड़ में हिस्सा लिया था। २ मील दौड़ने में मुझे १५ मिनट लगे थे जो दौड़ के रास्ते को देखते हुये एक अच्छा समय था। हमारी टीम ने इस दौड़ को १ घंटा ७ मिनट और ४ सेकेंड्स में पूरा किया था।

अब आपको मिलवाते हें John Fredrickson से। जॉन ने १५ वर्ष की उम्र से सिगरेट पीना शुरू किया था, अपने चरम पर वो लगभग ३ डिब्बी सिगरेट रोज पीया करते थे (अमेरिका की एक डिब्बी में २० सिगरेट होती है) । जब जॉन ४० वर्ष के थे तब डाक्टर ने उन्हें बताया कि वो फेफडे की एक बीमारी से ग्रसित हैं जिसका कारण उनका धूम्रपान करना था। डाक्टर ने जॉन को लगभग एक साल का समय दिया था, बस यहीं पर जॉन ने अपनी जीवटता से सबको चकित कर दिया। जॉन ने जीवन में पहली बार दौड़ना शुरू किया, पहली बार केवल १०० मीटर दौड़ने में ही जॉन के हौसले पस्त हो गये थे। लेकिन उन्होने हिम्मत नहीं हारी और सिगरेट पीना छोड़ने के साथ दौड़ना जारी रखा। कुछ ही वर्षों में जॉन अपनी फेफडे की बीमारी से मुक्त हो चुके थे। और आपको ये जानकार प्रसन्नता होगी
कि पिछले हफ्ते जॉन ने अपने ८२ वीं मैराथन दौड़ पूरी की।

अभी इतना ही लेकिन आगे और भी है। इस लेख की अगली कडी में आप सब जानेंगे दौड़ने संबन्धी अन्य जानकारियां जैसे:

१) दौड़ते समय थकान, चोट और दर्द में फर्क कैसे करें।
२) दौड़ने का सबसे सुरक्षित तरीका क्या है ।
३) दौड़ने के अन्य फायदे क्या हैं ?
४) दौड़ने और बीयर पीने का क्या संबंध है :-)
आदि आदि...

8 टिप्‍पणियां:

  1. यह पढ़ कार अच्छा लगा कि आप भारत आ रहे हैं। पर कलाम जी से न मिल पाना और भारतीय विद्यार्थी के रूप में साक्षात्कार की कीमत न देनी होती तो और अच्छा लगता।
    जॉन फ्रेड्रिक्सन के बारे में जानना तो अद्भुत लग रहा है। यह बहुत प्रेरणादायक है। आज इसे अपनी पत्नी को भी बताऊंगा।

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  2. जॉन फ्रेड्रिक्सन के विषय में जानना प्रेरणास्पद है.

    कलाम से न मिल पाना और दूतावास को इन्टरव्यू न दे पाने का अफसोस तो भारत पहुँचते ही दो मिनट में बराबर हो जायेगा. :)

    भारत यात्रा के लिये शुभकामनायें. हमें भी अब तैयारी करनी है १० नवम्बर को रवानगी की. :)

    अगली पोस्ट का इन्तजार है.

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  3. रेस जीतने की बधाई। जॉन फ्रेड्रिक्सन के बारे में जानकर अच्छा लगा। भारत आओ स्वागत है।

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  4. वाकई फासले नजदीकियों की चाह बढ़ा देते हैं। अपने देश भारत में लौटने पर आपका स्वागत है। हो सकता है इस बार आपको बहुत कुछ बदला-बदला सा लगे।

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  5. भारत में आपका हार्दिक स्वागत है।
    जॉन जैसे कई लोगों के बारे में पढ़ता हूँ तो अक्सर विचार आता है कि लोग कैसे एक अति से दूसरी अति पर पहूँ जाते हैं।

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  6. आपको आपके सपनों का भारत मिले.

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  7. बहुत ही बढ़िया डायरी. अगले अंक का इंतज़ार रहेगा.

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