शनिवार, अगस्त 18, 2007

एक चमेली के मँडवे तले, दो बदन प्यार की आग में जल गये ।

नसीरूद्दीनजी ने अपने "दो आखर" पर जब "एक चमेली के मंडवे तले" का जिक्र किया तो फ़िर अहसास हुआ कि ब्लाग जगत पर अच्छी शायरी की आरजू करने वालों की कमी नहीं है । इसी बात पर मैं उसी नज्म को दो अलग अलग अंदाजों में पेश कर रहा हूँ ।

इस नज्म को बडी खूबसूरती से आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी जी ने फ़िलम "चा चा चा (१९६४)" में गाया था । संगीत निर्देशक इकबाल कुरैशी जी थे । इस गीत सबसे बडी खूबी है कि गीत के बहुत बडे हिस्से में आशा और रफ़ी की आवाजें साथ साथ चलती हैं और एक सच्चे युगल गीत का अहसास पैदा होता है । तो लीजिये जनाब सुनिये और खुद ही फ़ैसला कीजिये ।

सभी लोगों से माफ़ी चाहता हूँ, पता नहीं इस नज्म को अपलोड करने पर ये अपने आप "फ़ास्ट फ़ारवर्ड" Mode में चलने लगी है । इसको सुधारने का प्रयास कर रहा हूँ, तब तक कॄपया थोडा सब्र करें ।

समस्या तो हल हो गयी है लेकिन अब आप नीचे दिये लिंक पर चटखा लगायेंगे तो ये आपको दूसरे पेज पर ले जायेगा जहाँ आप इस नज्म को ठीक से सुन सकते हैं । इस कष्ट के लिये माफ़ी चाहता हूँ ।

DoBadanPyarKiAagMe...

इसी नज्म को जगजीत सिंह ने अपने ही अंदाज में गाया है । मेरी समझ में जगजीत सिंह के गाये हुये मधुरतम गीतों में से ये एक है । अब आप इसका भी लुत्फ़ उठायें ।

Ik Chamelii Ke Man...


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साभार,

9 टिप्‍पणियां:

  1. नीरज जी,
    आपने तो कमाल कर दिया। आपने अद्भुत काम किया, वो भी इतने कम वक्त में। मुझे नज्म पोस्ट किये ज्यादा से ज्यादा घंटा भर हो रहा होगा कि आपने दोनों गीतों को सजीव पेश कर दिया। वाकई मज़ा आ गया। मैं पहला वाला तलाश रहा था, लेकिन मिला नहीं। पहले वाले के आडियो की स्पीड में मुझे थोड़ी दिक्कत लग रही है। यह डाउनलोड कैसे होगा।

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  2. नीरज जी,

    इस बार तो गीत का पूरा आनन्द मिला। शुक्रिया। आपको एक दो दिन में मख़दूम की कुछ और नज्में ढाई आखर पर पढ़ने को मिलेंगी।

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  3. अरे वाह!! पहला वाला तो सुना हुआ था. यह दूसरा जगजीत सिंग वाला पहली बार सुना. आनन्द आ गया. बहुत आभार.

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  4. नीरज जी ,
    आपका शुक्रगुजार हूं कि एक भूली-बिसरी चीज़ जो हमारे उस्ताद जी ने गाई है, आपने याद दिला दी और सुनवा दी। बड़ा एहसान किया । ये नज्म अर्सा हुआ जे़हन से गायब थी। आपकी तारीफ में जितना कहूं अभी तो कम है।

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  5. मखदूम मोहीउद्दीन ने इश्किया शायरी और वतनपरस्तीक दोनों के नग्में लिखे । एक चमेली के मंडवे तले मेरी भी पसंदीदा रचना है । इक़बाल कुरैशी ने इसकी धुन बनाई थी । इक़बाल कुरैशी असल में सेना में थे और फिर आ गये थे फिल्मर संगीत की दुनिया में । विविध भारती में मुझे उनसे मिलने का मौक़ा भी मिला था । और उन्होथने इस गाने की पृष्ठहभूमि और रचना प्रक्रिया के बारे में बताया था । एक अरसे से हम इस गाने से प्याार करते रहे हैं । अच्छीक शायरी और अच्छीा गायकी के लिए । बहुत बहुत शुक्रिया नीरज । आनंद आ गया

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  6. आशा और रफी वाला तो हम नही सुन पाए कुछ प्रॉब्लम आ रही थी पर जगजीत सिंह वाला सुना । बहुत पसंद आया।

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  7. नीरज जी
    हम उन किस्मत वालों में है जो रफी- आशा और जगजीत सिंह दोनो के स्वरों में इस सुन्दर नज़्म को आसानी से सुन पाये, और पहले कई बार सुनी हुई भी है पर जब भी सुनते हैं अच्छी लगती है।

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  8. शुक्रिया मैंने जगजीत वाला वर्सन पहले नहीं सुना था ! पर नीरज थोड़ी मेहनत और किया करें। अगर गीत सुनाते वक़्त बोल भी लिख देंगे तो पढ़ने वाले का आनंद बढ़ जाएगा।

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