सोमवार, अगस्त 13, 2007

अब अक्सर चुप चुप से रहे हैं !!!

इयत्ताजी की साहिर लुधियानवीजी के बारे में आज की पोस्ट पढी तो सोचा क्यों न साहिरजी की ये गजल आपको सुनवायी जाये । लीजिये साहेबान, पेश-ए-खिदमत है जगजीत सिंह की नाजुक आवाज में ये गजल...

Ab_Aksar_Chup_Chup...



इसी के साथ अपनी जल्दी ही आने वाली कुछ पोस्टों (इसकी हिन्दी कौन सुझायेगा :-) ) की जानकारी,

१) सरदार अली जाफ़री के टी. वी. धारावाहिक कहकंशा के संगीत पक्ष पर कुछ जानकारी और कुछ अच्छी गजलें/नज्में

२) सूफ़ी कव्वाली के बारे में कुछ रोचक जानकारियाँ ।

अब चलते चलते, साहिरजी की एक और गजल सुनवाये बिना मन नहीं मानेगा । ये गजल है:
"किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फ़िर भी" । इस गजल के एक अशार को इयत्ता जी ने अपने चिट्ठे पर लिखा था, पेश-ए-खिदमत है जगजीत सिंह की आवाज में ये गजल...

Kisii_Kaa_Yun_To_H...



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6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, नीरज. बहुत बेहतरीन पेशकश. दोनो ही पसंद आये.

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  2. चलो, यूनुस की टक्कर का ब्लॉग तो आया. धन्यवाद.

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  3. बेहतरीन मज़ा आ गया । हमने अपने ब्‍लॉग पर साहिर पर खूब सारा लिखा है उनकी आवाज़ में दो तीन नज्‍में भी डाली हैं । कभी फुरसत पाकर देखें ।

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  4. बहुत बढ़िया नीरज भाई
    सुबह सुबह बहुत ही सुन्दर गज़लें सुनवाई आपने। आने वाली पोस्टों (पोस्टों को लेख, या प्रविष्टियाँ कहा जा सकता है?) का बेसब्री से इंतजार है।

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  5. साथ साथ में इन गज़लों के बोल (Lyric) भी लिख दिये जाते तो मजा दुगुना हो जाता।

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  6. पहली ग़ज़ल ज्यादा पसंद आई। सुनाने का शुक्रिया !
    कहकशां वास्तव में एक संग्रह करने योग्य एलबम है । उसी एलबम से ली हुई मज़ाज की नज़्म .. ऍ गमें दिल क्या करूँ मेरी बेहद प्रिय है और उसके बारे में यहाँ विस्तार से लिखा था।
    http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2006/12/blog-post_06.html

    http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2006/12/blog-post_09.html

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