इस पोस्ट को लिखने के लिये दिल तडप रहा था और इस वीडियो को अब तक दसियों बार देखने के बाद भी मन नहीं भरा। मिल्खा सिंह के १९५८ में हुये राष्ट्रमंडल खेलों में ४०० मीटर दौड में स्वर्ण पदक जीतने के ५२ वर्षों के बाद भारत ने एथलेटिक्स में एक और स्वर्णपदक जीता और जिस बहादुरी से जीता उसके लिये इन चारों महिलाओं की जितनी तारीफ़ की जाये कम है। तुम चारों को मेरा सैकडों बार सलाम !!! भारतीय टीम स्वर्ण पदक के लिये फ़ेवरिट नहीं थी। लेकिन जैसा के मेरे मित्र साईमन कहते हैं कि दौड का फ़ैसला उसी क्षण होता है उससे पहले या उसके बाद नहीं। तुमने भले ही मुझे पहले हराया हो लेकिन आज जीतने के लिये तुम्हे मुझे एक बार फ़िर हराना पडेगा।
भारत की तरफ़ से शुरूआत मनजीत कौर ने की । मनजीत ने बहुत शानदार तरीके से ४०० मीटर पूरे किये और दूसरे स्थान पर रहते हुये बैटन सिनी जोसेफ़ तो थमाया। दूसरे स्थान पर सिमी जोसेफ़ ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुये द्वितीय स्थान को बरकरार रखा। लेकिन नाईजीरिया की खिलाडी एक अच्छी खासी लीड बनाने में कामयाब हो गयी। सिमी ने बैटन अश्विनी अकुंजी को थमाया और यहीं अश्विनी ने दिलों की धडकनों को इतना बढा दिया कि इस दौड को बैठकर देखना नामुमकिन हो गया।
अश्विनी अकुंजी ने पहले २०० मीटर में तेजी से दौडते हुये नाईजीरिया की लीड को कम किया। २०० मीटर के कर्व के बाद जब नाईजीरिया की खिलाडी थोडा थकने लगी तो अश्विनी ने अदम्य साहस और हौसले का परिचय देते हुये आखिरी १०० मीटर में भारत को पहले स्थान पर ला दिया। जिस समय अश्विनी ने मनदीप कौर को बैटन थमाया उसके तुरन्त बाद ही नाईजिरिया की खिलाडी भी दौड पडी।
ये आखिरी ४०० मीटर जानलेवा थे। नाईजीरिया की खिलाडी १०० मीटर में ही मनदीप के बराबर आ गयी और दोनों कदम से कदम मिलाकर दौड रही थी। देखने वालों के रोंगटे खडे हो रहे थे और दौड में २५० मीटर रहते हुये मनदीप आगे निकली, नाईजीरिया की खिलाडी भी उनके साथ आगे बढीं और २०० मीटर तक आते आते भी कुछ कहना मुश्किल था। मनदीप ने अपनी लीड को बरकरार रखा तो आखिरी ५० मीटर में पूरे आत्मविश्वास से दौडते हुये लीड को और बढा दिया। जब ३:२७:७८ में मनदीप ने समाप्ति रेखा को पार किया तो एक इतिहास बन चुका था। राष्ट्रमंडल खेलों में एथलेटिक्स की ४*४०० मीटर प्रतियोगिता (जिसे मैं सबसे कठिन प्रतियोगिता मानता हूँ) में भारतीय धावकों ने स्वर्णपदक जीत कर १२० करोड लोगों को जो तोहफ़ा दिया है, वो अतुलनीय है।
इस दौड का वीडियो जब मैने अपने दोस्तों को दिखाया तो उनके विचार ये है (ये सभी मेरे धावक मित्र हैं)
Luis Armenteros(लुई, ह्यूस्टन के टाप ३ धावकों में आते हैं) I still remember when the US beat the French in the 4x100 free iin the 2008 Oly games. I was yelling at the top of my lungs when we won! Love love love the way the crowds energy increases after each handoff then ERUPTS on the final bend. THIS is why the 4x400 is THE marquee event of all of athletics! Thanks!
Chris McGrewYes, that was a phenomenal 2nd half by India. What a great race! Watching again, that 3rd leg was truly something special, as was the surge with 250m remaining. What a couragous move! No matter where you are from, that's the stuff that brings tears of joy.
Neeraj Rohilla@Chris: Yes, that surge was a ballsy move. What a finish.
Chris McGrewBallsy, indeed. With a Kenyan (He meant Nigerian) right on her shoulder, and having to carry it home for the entire 400m...wow!
Tim McGuirkFantastic. And Tendulkar got a double century according to the commentary. A good day to be an Indian.
अब इन्तजार किस बात का, इस जीत का वीडियो भी देख लीजिये, कमजोर दिल वाले न देखें और रूमाल पास में रखें क्योंकि पक्का आपकी आंखे भर आयेंगी और गला रूंध जायेगा।
आज वैसे तो कुछ खास नहीं हुआ। शाम को ९.५ मील दौडने के बाद पिछले हफ़्ते हुये अपने जन्मदिन की खुशी में दोस्तों को छककर बीयर पिलायी और देखते ही देखते रात का ग्यारह बज गया। हमारे धावक समूह के गिने चुने (कोर ग्रुप) लोग बार में रह गये और हमें एक बन्दा शतरंज खेलता मिल गया।
आमतौर पर बीयर बार में टल्ली (हम खुद भी) हुये लोगों से शतरंज खेलना होता रहता है लेकिन उसमें कोई खास मेहनत नहीं करनी पडती। शुरूआती ५-६ दांवो में दूसरे को परखो फ़िर उसका १-२ मोहरा पीट लो, उसके बाद मोहरे से मोहरा बदलो और उसको गलती करने का इन्तजार करो वरना वैसे भी १-२ मोहरा फ़ायदे में हो तो डरना क्या।
खैर आज बात दूसरी रही। आज बरसों के बाद असल में दिमाग लगाना पडा। शुरूआत कोई खास नहीं, हमने उसको सफ़ेद मोहरों से खेलने दिया। फ़िर उसने आक्रामक खेल दिखाया लेकिन हमने उसके दो पैदल मार ही लिये। इसके बाद हम उसकी गलती का इन्तजार करते रहे और वो हमारे सिर पर आ गया। हम सुरक्षात्मक खेल रहे थे लेकिन उसके बावजूद हमारे खाने की पहली दो पंक्तियों में उसका हाथी, वजीर और घोडे का जोर लेकिन वो हमारी सुरक्षा को भेद नहीं पाया।
आस पास लोग इकट्ठे हुये और हमें भी लगा कि ये कोई आम बन्दा नहीं है। चुस्त और दुरूस्त होकर खेलने लगे...
हां, उसका नाम ग्राह्म था। उसकी साथी रूबी और हमारी जान पहचान के कुछ लोग रूककर खेल देखने लगे। देखने में हमारी स्थिति कमजोर थी और उसकी भारी लेकिन हमें अपने डिफ़ेन्स पर भरोसा था और विश्वास भी कि २ पैदल से आगे हैं। खैर नाजुक स्थिति में खेल चला और आखिर वो कुछ पीट नहीं पाया। खेल सीरियस हो गया और इसके बाद हमने कुछ मोहरे बदले और स्थिति थी:
सफ़ेद: ऊंट, हाथी, बादशाह और ४ पैदल काला (हम): ऊंट, हाथी, बादशाह और ६ पैदल
अब तक खेल १.५ घंटा चल चुका था और दोनों की उतर चुकी थी। खेल की स्थिति चित्र में स्पष्ट है। कम रोशनी के चलते काले मोहरे इतने साफ़ नहीं हैं।
इसके बाद हमने एक गलती कर दी और बैठे बिठाये अपने हाथी को पिट जाने दिया। उफ़, खेल के बीच में सुन्दर लडकियों की बात करने से यही होता है :)
और, यहीं बाजी पलटी और २० मिनट बाद उसने हमें मात दे दी। उस एक गलती ने बहुत दुख दिया, खासकर इसलिये कि चलते चलते उसने कहा कि "I almost lost but just got lucky". लेकिन हम दोनों ने माना कि टल्ली हालत में इतना इंटेन्स खेल कई सालों के बाद खेला होगा।
अब वो अगर फ़िर कहीं मिला तो एक खेल उधार रहा । लेकिन बेवकूफ़ी से हारी हुयी बाजी अब भी दुख देती है।
आज पंकज की पोस्ट ने पढते पढते बहुत भावुक कर दिया। वैसे तो फ़्रेंडशिप डे जैसे त्योंहारों की कोई जरूरत नहीं लेकिन अकेलेपन में बैठे बैठे जब पुराने दिनों को याद करते करते आंखे नम हो जायें तो कोई चारा नहीं।
वैसे तो जरूरत नहीं है इन त्योंहारों की लेकिन एक मौका मिल जाता है आंख बन्द करके पुराने दिनों को जीने का और शायद कोई कसक कहीं कम सी हो जाती है।
बाकी भी बहुत यादें हैं जो जेहन के किसी बक्स में बन्द हैं, शायद किसी और रोज निकल के चौंका दें।
खैर, चिट्ठे पर बहुत पर्सनल कभी नहीं लिखता लेकिन शायद ये क्रम जल्दी ही तोडना पडे, तब तक के लिये एक ऐसा नगीना सुनिये जो हमारे दिल के बहुत करीब है।
हाय दईया, कहाँ गये वे लोग, बृज के बसईया... न कोई संगी, न कोई साथी... न कोई सुध का लेवईया...
कहाँ गये वे लोग....
स्वर लहरी फ़िर से मुंशी रजीउद्दीन और उनके बेटों फ़रीद अयाज और अबु मोहम्मद की हैं।
आज पेश-ए-खिदमत है, पाकिस्तान के मशहूर कव्वाल मुंशी रजीउद्दीन और उनके पुत्रों (फ़रीद-अयाज़ कव्वाल) की आवाज में पाकिस्तान में कराची की एक प्राईवेट महफ़िल की दुर्लभ रेकार्डिंग...
चले जइयो बेदर्दा मैं रोये मरी हूँ...
चलते चलते ये भी बताते जायें कि पिछले शनिवार को हमने उस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जिसके लिये हम कई महीनों से प्रयासरत थे। हमने इस बसन्त के लिये अपने लिये दो लक्ष्य रखे थे, पहला कि १० किमी की दौड ४० मिनट से कम समय में पूरी की जाये और दूसरा कि ५ किमी की दौड १९ मिनट से कम समय में पूरी की जाये। १० किमी वाले गोल को इस बसन्त दो बार पूरा किया गया और ५ किमी वाले गोल को सिर्फ़ एक बार ही पूरा कर सके। १७ अपैल को हम एक और ५ किमी वाली रेस दौड रहे हैं, शायद उसमें एक बार फ़िर १९ मिनट से कम समय में इसे पूरा कर सकें।
रोडियो रन (१० किमी): ३९:४९ बायू सिटी क्लासिक (१० किमी): ३९:३३ अर्थ डे रन (५ किमी): १८:५१.७ अब हम दिल पे हाथ रखकर कह सकते हैं कि ह्यूस्टन में शौकिया दौडने वालों में हमें भी लोग पहचानने लगे हैं :)
अब तक बसन्त में हुयी दौडों का व्यौरा: मेडिकल सेंटर ५किमी (मैराथन के २ हफ़्ते बाद) : १९:४५ बफ़ैलो वालो ६ किमी (क्रास कंट्री, ऊंचा नीचा रस्ता): २५:१० स्टेप्स फ़ार स्टूडेंट्स ५ किमी : १९:१२ (अपने उम्र वर्ग में प्रथम) रोडियो रन (१० किमी): ३९: ४९ (पहली बार ४० मिनट से कम समय में १० किमी) रेस अगेन्स्ट वायलेंस (५ किमी): १९:२९ (अपने उम्र वर्ग में द्वितीय) बायू सिटी क्लासिक (१० किमी): ३९:३३ (अब तक की मेरी सबसे तेज १० किमी दौड) अर्थ डे ५ किमी: १८:५१ (अब तक की मेरी सबसे तेज ५ किमी दौड)
अक्सर मैं शाम को अपनी प्रयोगशाला से निकल कर अपने स्कूल के चारों ओर की परिधि के दो चक्कर दौड़ कर पूरे करता हूँ, उसके बाद स्कूल के व्यायामशाला में स्नान करने के बाद लैब में वापिस आकर कुछ काम अथवा टाइमपास करने के बाद घर रवानगी होती है | आज इस रूटीन से जरा सा भटकने से देखो बुद्धि कैसी खराब हुयी...
दौड़ने के बाद लैब वापिस आये, झोला उठाया और व्यायामशाला की तरफ जाने लगे, उसमे बटुआ रखा और फोन ये सोचकर मेज की दराज में डाल दिया कि जिम मैं कहीं गम हो गया तो...(नया नया महंगा फोन लिया है न :) )| फिर रास्ते में चलते हुए सोचा कि आज जिम से ही सीधे घर चले जायेंगे और लैब वापिस नहीं आयेंगे, हमारे मन ने इसका पूर्ण समर्थन किया...
उसके बाद जब जिम के दरवाजे पर पंहुचे और माथा पकड़ कर सोचा कि जब नहाने के बाद घर ही जा रहे हैं तो घर जाके क्यों नहीं नहा सकते? बात तो सही है, फिजूल में इतनी दूर आये...लौटे और अपनी चम्पाकली में बैठकर घर की तरफ रवाना हुए, रास्ते में याद आया कि किसी को फोन करना है....फिर माथा पकड़ किया कि फोन तो लैब की मेज की दराज में बंद है....
खैर घर आये, झोला खाली किया तो देखा बटुए के साथ फोन भी पडा मुस्कुरा रहा था....इसे क्या कहेंगे? सब कान्शियश माइंड की उठापटक ?
या फिर, उम्र हो रही है और बुढापे की दस्तक पर बुद्धि काम करना कम कर दे रही है...;)
हमने कुछ हफ़्तों पहले लिखा था कि दीप्ति जल्दी ही वैवाहिक बन्धन (कैसा बन्धन?) नहीं नहीं वैवाहिक सम्बन्ध में बंधने वाली हैं। तो दीप्ति की शादी भी हो गयी और उनके पडौस वाली ब्यूटी पार्लर वाली आंटीजी ने उनपर जो अत्याचार किये उसकी भी किस्सा उन्होने यहाँ हिंग्लिश में लिखा है, ;-)
दीप्ति ने कुछ दिन पहले हमें टैग किया था कि हम अपने पसन्दीदा १० फ़िल्मी डायलाग लिखें, तो लीजिये हाजिर हैं बिना किसी वरीयता के क्रम में (स्मृति से):
१) मैं हूँ जुर्म से नफ़रत करने वाला, शरीफ़ों के लिये ज्योति और तुम जैसे गुंडो के लिये ज्वाला। नाम है शंकर और हूँ मैं गुंडा नम्बर वन...प्रभुजी फ़िल्म गुंडा में.
४) आज हमने पहली बार आपको इतने करीब से देखा है, आपको भरपूर पहरेदारी की जरूरत है। फ़िल्म: हासिल
५) You have to get over your first love to be free. (कसम से बडी गहरी बात है) फ़िल्म: हज़ारो ख्वाहिशें ऐसी
६) इस १० मिनट के सीन में अनेको हीरे छुपे हुये हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ में "हे...हे हे...हे" मोहनीश बहल का कहना, "हे प्रेम रिलेक्स, टेक इट ईजी, कूल इट यार"...भारत की Pop जेनरेशन का पहला बीज यहीं से पडा था। उसके बाद मोहनीश भाई एक और बम्पर मारते हैं, "भूखे तो हम भी हैं..." उसके बाद श्री श्री श्री १००८ मोहनीश बहल महाराज एक और ज्ञान देते हैं, "एक लडका और लडकी कभी दोस्त नहीं हो सकते" याद नहीं होस्टल में कितनी बार इस डायलाग को सुना होगा, ;) फ़िल्म: मैने प्यार किया
आज सुबह एक ६ किमी की क्रास कंट्री दौड़ में भाग लिया गया | इस दौड़ की ख़ास बात थी कि बजाय सड़क पर दौड़ने के, दौड़ घास और मिट्टी और कीचड (हमारे यहाँ पिछले २ दिनों में खूब बरसात हुयी) से भरी पगडंडियों पर दौड़ी गयी | दौड़ में २ किमी के एक लूप को तीन बार दौड़ना था और हर लूप में २ विकट चढ़ाई थी, मतलब पूरे ६ किमी में ६ चढ़ाइयाँ|
इस ६ किमी की दौड़ को हमने २५ मिनट और १० सेकेंड्स में पूरा किया| हमारे मित्र साइमन ने हमें चुनौती दी थी जिसे स्वीकारते हुए हमने उन्हें इस दौड़ में १५ सेकेंड्स से परास्त किया, उनका समाया २५ मिनट २५ सेकेंड्स रहा | अब साइमन से जब बुधवार को मिलेंगे तो उनकी खूब टांग खींची जायेगी और शायद वो अभी से अगली दौड़ में हमारी वाट लगाने की तैयारी शुरू कर चुके होंगे, ;-)
(With my team members before the race)
(At starting line)
(Looking up ahead for that upcoming hill)
(A nice flat stretch in the race)
(The mean hill and jumping across the nasty mud pit)
(The whole race was run on muddy trail)
(The final sprint. Poor Simon couldn't close the gap and I kept increasing the lead and beat him by 15 seconds in the end)
१७ जनवरी २०१० को ह्यूस्टन में एक मैराथन दौड़ का आयोजन हुआ| हम इस दौड़ की पिछले ६ महीनो से तैयारी कर रहे थे | २००९ में इस दौड़ को हमने ३ घंटा और ३८ मिनट में पूरा किया था और इस साल हमारी नजर ३ घंटा और २० मिनट के समय पर थी |
शुक्रवार और शनिवार को हमने जम कर आराम किया और छक कर खाया, शनिवार की रात को दस बजे सोने चले गए लेकिन उत्साह के मारे सुबह २ बजे तक नींद नहीं आयी | हमने अपने आपको समाप्ति पंक्ति पर फर्राटे मारते हुए दौड़ समाप्त करते देखने के सपने देखे और सुबह ४:५० के अलार्म ने हमारी नींद खोल दी | हमारे दोस्त/रूममेट अंकुर अपने जीवन की पहली हाफ मैराथन दौड़ने की तैयारी में थे | घर से स्नान आदि करने के बाद हमने बाहर निकलकर मौसम का जायजा लिया और कसम से इससे अच्छा मौसम मैराथन के लिए नहीं हो सकता था | ८-१० डिग्री तापमान और हल्की हल्की हवा...
खैर, अंकुर को रास्ता नहीं पता था तो वो अपनी कार में हमारी कार का पीछा कर रहे थे| हाइवे पर तो हम दोनों लगभग १०० किमी/घंटा पर गाडी चला रहे थे लेकिन जब गंतव्य नजदीक आया तो हमने अपने कार की गति धीमी की और बाकी लोगों की तरह धीमे होकर रुक कर सिग्नल के हरे होने का इन्तजार करने लगे | अचानक हमें जोर का धक्का लगा और हमारी कार का सारा सामन हवा में उछल गया, हमारी छाती स्टेयरिंग व्हील से टकराई और घुटने व्हील के नीचे जोर से भिड गए | २ सेकेंड्स के बाद होश वजा हुए तो पता चला कि अंकुर ने सोचा की गाडी रोकना स्वैच्छिक है और उन्होंने अपनी गति पर विराम नहीं लगाया और हमारी गाडी पर मेहरबानी कर दी| उनके धक्के से हमारी गाडी आगे खडी गाडी से टकराई और आगे वाली कार को भी थोड़ी खरोंच आ गयी | अंकुर की गाडी का अगला हिस्सा और हमारी का पिछला पूरी तरह ध्वस्त हो गया | लेकिन ईश्वर का शुक्र कि किसी को कोई भी चोट नहीं आयी, सिवाय हमारे घुटने में थोड़े दर्द के |
अंकुर की कार का अगला हिस्सा ये रहा:
पुलिस को बुलाकर खबर दी गयी, चूँकि हम तीनो के पास गाडी का बीमा था और अंकुर ने अच्छे इंसान की तरह गलती क़ुबूल कर ली थी, पुलिस आयी और बोली कि आप लोग जा सकते हैं| अब मैराथन शुरू होने में ३५ मिनट शेष थे, अंकुर की गाडी चलने लायक नहीं थी और हमारी रेंगकर चलने लायक थी | अंकुर की गाडी को जब खींचकर ले जाने वाला ट्रक आ गया तो अंकुर ने हमसे कहा कि तुम जाओ और अपनी दौड़ दौड़ो क्योंकि ६ महीने की कठिन ट्रेनिंग बेकार करने का कोई फायदा नहीं है| हम अपनी रेंगती गाडी से धीरे धीरे नियत स्थान पर गए और दौड़ से पहले ही दौड़ते हुए शुरूआती पंक्ति तक दौड़ शुरू होने के ५ मिनट पहले पंहुच पाए |
दौड़ के शुरू होने पर भी हमारा दिमाग ठिकाने पर नहीं था लेकिन हमने सोचा कि अब जो भी होगा दौड़ के बाद ही देखा जाएगा, घुटने का जायजा लिया तो यदा कदा किसी कदम के साथ थोडा सा दर्द था लेकिन कुछ ख़ास नहीं| बार बार अलग अलग ख्याल आ रहे थे और दौड़ पर ध्यान नहीं था| लेकिन शुरुआती ६ मील पलक झपकते ही कट गये | हर साल की तरह इस साल भी ह्यूस्टन निवासी धावकों का हौसला बढ़ने के लिए सड़क के दोनों ओर खड़े थे| मील ५ पर मार्क (Mark) और सेरा (Sarah) ने हमारा नाम लेकर पुकारा और उसके बाद मील ९ पर हमारे दोस्त रामदास हमारा इन्तजार कर रहे थे| अब तक हम भी अपना ध्यान मैराथन पर फोकस करने की कोशिश कर रहे थे, भले ही मानसिक तौर पर हम थका हुआ महसूस कर रहे थे, रफ़्तार के ख्याल से हम अपने गोल पर थे| आधा रास्ता = १३.१ मील = २१.१ किमी = १ घंटा ३९ मिनट ४० सेकेंड्स = मतलब अपने गोल से २० सेकेंड्स तेज
लेकिन चौदहवाँ मील पूरा होते ही हमारे बांये पैर ने एक झटका दिया, पिछले साल ऐसा ही झटका हमें १८ वें मील पर हमारे बांये पैर ने दिया था लेकिन इस बार चौदहवें पर ही | १६ वें मील तक आते आते तय हो चुका था कि ३:२० हाथ से निकल चुका है और अब दौड़ को समाप्त करना भी मुश्किल दिख रहा था | मील १ से १४ तक प्रति मील समय: ७:३० +/- १० सेकेंड्स 15 वां मील: ७:५३ १६ वां मील: ७:५२ इस समय तीन धावक जिन्हें मैंने पिछली कई दौड़ों में पीछे छोड़ा था, मुझसे आगे बढ़ जाते हैं| १७ वां मील: ७:५५ १८ वां मील: ८:०४ १९ वां मील: ८:४८ अब स्थिति बहुत कठिन हो रही है, हमारे मन में २० वें मील पर दौड़ को छोड़कर मेडिकल टेंट में जाकर रुकने का मन कर रहा है| थकावट नहीं है लेकिन पैरों की मासपेशियों में बहुत तनाव है और Cramps हैं, २० वां मील: ९:०९ (सबसे धीमा मील) अब हमने अपने आप से कहा कि ३२.२ किमी पूरे हो चुके हैं और केवल आख़िरी दस किमी बचे हैं| थिंक पाजिटिव...When going gets tough, tough gets going. इस समय हमने सड़क पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश सीनियर को धावकों का उत्साह बढ़ाते देखा, जार्ज बुश सीनियर हर साल यहाँ मौजूद रहते हैं| अब लोग नाम ले ले कर धावकों को उत्साहित कर रहे हैं, एक व्यक्ति हमें देखता है और कहता है: Man! you are not dead yet. Keep going. Keep going... अब हमने अगले २-३ मील में दौड़ छोड़ने का निश्चय कर लिया है लेकिन अगले २-३ मील दर्द के बावजूद दौड़ने का मन है... २१ वां मील: ८:४२ २२ वां मील: ७:५२ अब दर्द अपने चरम पर है और हमने इस आख़िरी मील में जी जान लगाने का निश्चय किया है, २३ वां मील: ७:०५ (दौड़ का सबसे दर्दीला और सबसे तेज मील): इस २३ वें मील में कुछ ऐसा हुआ कि जिसका मुझे एहसास नहीं था |
Almost every senior runner talks about that hidden source of energy which is there but inaccessible. They say you have to really dig deep to tap into it. I can say that I felt that hidden source during my 23rd mile. 23rd mile in Houston Marathon is the hardest mile. First, because it is 23rd mile and you are tired; second because it has 3 little hills (overpasses) which slow you down. I ran 23rd mile really well and I was taking down runners ahead of me one by one. At one point, I was running so fast that people on both sides of road simply started shouting and clapping. I will never forget that feeling. 23rd mile was the high point of my marathon and I refused to acknowledge any pain during that mile. And, now I knew that I will definitely finish this race even if I have to crawl on my knees to the finish line.
अब बाकी लोग धीमा हो रहे हैं और मैं एक एक करके धावकों से आगे निकल रहा हूँ| वो तीन धावक जिन्होंने मुझे पीछे छोड़ा था अब केवल २५ मीटर आगे हैं और हर कदम पर में उनके करीब होता जा रहा हूँ... २४ वां मील: ७:५९ २४.५ मील के आस पास मैं उन तीनो को पीछे छोड़ देता हूँ और अब दौड़ का अंत नजदीक है| २५ वां मील: ८:२० अब केवल १.२ मील बाकी है, लोगों की भीड़ चिल्ला रही है और मैं एक एक करके और भी धावकों को पीछे छोड़ रहा हूँ... २६ वां मील: ८:२० ०.२ मील: १ मिनट २५ सेकेंड्स : अब समाप्ति पंक्ति सामने है, लोग चिल्ला रहे हैं....इस समय मैं अपनी मुट्ठियाँ भींचता हूँ और सब कुछ भूलकर सिर्फ अपने लिए दौड़ता हूँ....इस ३२० मीटर में मैं ५ लोगों को पीछे छोड़ता हूँ और समाप्ति पंक्ति मेरे सामने है....
२६.२ मील: ३:२६:२३....पिछले समय (२००९) से १२ मिनट का सुधार
मैराथन वेबसाईट के हवाले से: आख़िरी ७.५ मील में मैंने ७४ धावकों को पीछे छोड़ा और २५ धावक मुझसे आगे निकले...
मैराथन की कहानी चित्रों की ज़ुबानी:
(जी हाँ, मर्द को भी दर्द होता है और बहुत होता है. Really bad cramps in both legs)
( जब तक है जान, जाने जहां मैं दौडूंगा... ;-))
(अब किसमे दम है जो हमसे आगे निकले)
लगे हाथों वीडियो भी देख लो, देखें इसमें हमें कितने लोग खोज पाते हैं....(बाईं तरफ हाफ मैराथन वाले है, हम दांयी तरफ बड़ी तेजी से आते हुए दिखेंगे :-) )
पिछले कई महीनों में लगभग १००० किमी दौड़ने के बाद इम्तिहान की घड़ी आ गयी है | कल ह्यूस्टन मैराथन है और उम्मीद है की हम अपने पिछले समय ३ घंटा ३८ मिनट को सुधार कर इस बार ३ घंटा और २० मिनट में इस दौड़ को पूरा करेंगे...
I am a graduate student in Chemical Engg. at Rice University. I was recruited into BCRR over two free beers one fine Wednesday evening. I have been running with BCRR since then. I am also serving on BCRR board as "Member at Large".
I come from India so catch me at Valhalla for some interesting stories about Indian culture and people.