बस, आंख बन्द करें और गुम हो जायें...
सखी बाली उमरिया थी मोरी,
मोरे चिश्ती बलम चोरी चोरी,
लूटी रे मोरे मन की नगरिया....
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मन के अंतर में हर क्षण अनेकों भाव उमडते रहतें हैं । इन्ही भावों को हिन्दी भाषा के माध्यम से अंतर्जाल पर लिखने का प्रयास किया है ।
सुन लिया.. आपको धन्यवाद इस गाने को डाउनलोड करने के साथ दिए जा रहे हैं मगर अभी तक आपके स्कूल के 3mbps का चमत्कार देखने को तरस रहे हैं.. :)
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया...बहुत बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंएक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
एक सकून मिला सुनकर .
जवाब देंहटाएंलोक रंग की सुन्दर प्रस्तुति..बधाई.
जवाब देंहटाएंअहा, सुन्दर । क्या खींचा है ।
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंअरे अभिषेक जी, वाह ताज बोलिये ;)
जवाब देंहटाएंसुन लिये भाई जी..
बढ़िया! सुना, आंख बन्द कर ही आनन्द लिया!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन..धन्यवाद.
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