मंगलवार, जून 30, 2009

पतरस बुखारी का मजमून "होस्टल" जिया मोहेयेद्दीन साहब की आवाज में!!!

जिया साहब की आवाज में हमने पहले भी कुछ किस्से सुनवायें हैं, इसी कडी में आज पतरस बुखारी साहब का किस्सा "होस्टल" पेश है। इस किस्से में जिया साहब पढाई के लिये घर से दूर जाने पर "होस्टल" की अहमियत बतायी गयी है :-)
उम्मीद है जो लोग घर से दूर होस्टल में रहे हैं, उन्हें उनके पुराने दिन जरूर याद आ जायेंगे।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया है नीरज भाई. Really hilarious.

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  2. बेहतरीन, मजा आ गया उदबोधन सुन कर..

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  3. क्या बात है.....गोया दुनिया के कुछ रस्ते हमेशा एक से ही रहते..है..

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  4. वाह, अफलातून और अरस्तू हॉस्टल के वातावरण में पनपे थे!
    काश हमें दर्जा एक से हॉस्टल में डाला गया होता तो भारत को एक कालजयी दार्शनिक मिल गया होता! :)

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  5. सुनकर मज़ा आ गया । भविष्य में भी लाभान्वित करते रहिये ।

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  6. वाह ! भाई मजा आ गया !

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  7. Really Interesting...Maja aa gaya.
    ___________________________
    "शब्द सृजन की ओर" के लिए के. के. यादव !!

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