मैं अक्सर घर से स्कूल के रास्ते में घरवालों को फ़ोन करता हूँ। कभी कभी जब लम्बी बात होती है मैं लैब तक आ जाता हूँ तो कभी कभी फ़ोन पर कहना होता है कि "अच्छा, अब लैब में आ गया हूँ, बाकी बातें बाद में"। इसका ये अर्थ न लगाया जाये कि हम लैब में बहुत काम करते हैं :-)
लेकिन आज उल्टा हुआ। पिताजी का इस महीने मथुरा से आगरा स्थानान्तरण (ट्रांसफ़र) हो गया है। कभी कभी घर पर फ़ोन करो तो केवल माताजी से बात हो पाती है क्योंकि पिताजी या तो दफ़्तर के लिये निकल चुके होते हैं अथवा घर में नहीं पंहुचे होते हैं।
आज सुबह (पिताजी की शाम का ७ बजे) हमने पिताजी के मोबाईल पर फ़ोन किया। काफ़ी देर के बाद फ़ोन उठा और ये संवाद रहा (बोल्ड वाले अंश पिताजी के हैं):
हां, बोलो
कुछ नहीं पापा, बस ऐसे ही हाल चाल के लिये फ़ोन किया था। सब बढिया,
हाँ, सब बढिया। अभी थोडा व्यस्त हूँ कोई जरूरी काम?
क्या अभी आफ़िस में हैं?
नहीं, आफ़िस से बाहर लेकिन आफ़िस के काम से ही। कोई खास बात?
नहीं, बस राजी-खुशी।
अच्छा बेटा ठीक है, बाद में बात करेंगे।
डिस्कनेक्ट!!!
इसके तुरन्त बाद ही कुछ और पुरानी यादें ताजा हो गयीं। कई बार पिताजी को किसी काम के लिये बोलो तो कम से कम २-३ दिन का डिले मानकर चलो क्योंकि आफ़िस जाते ही पिताजी हम सबसे अनजान हो जाते हैं। एक-दो बार जब स्थिति बिगडती तो बोलते कि अच्छा आफ़िस आ जाना, लंच में ५ मिनट का समय निकालकर तुम्हारा काम करवा देंगे। हमें पता होता था ये केवल बहाना है इसलिये हर बार अगले १-२ दिन की बाट देखते :-)
एक बार हम और मेरी बडी बहन उनके आफ़िस जा पंहुचे, दफ़्तर में घुसे तो देखा पिताजी व्यस्त हैं हमेशा की तरह।
अच्छा आ गये तुम लोग, बैठो अभी ५ मिनट में चलते हैं।
दो कुर्सियों पर हम दोनो बैठ गये।
१५ मिनट के बाद: अरे, पानी/चाय पियोगे तुम लोग।
नहीं, अच्छा पानी ठीक है। पानी भी पी लिया। इतने में १५ मिनट और बीत गये।
इतने में पापा के सहयोगी बाजू से गुजरे, अरे बेटा आप लोग। क्या हाल चाल हैं? पढाई कैसी चल रही है। सब बढिया,
अच्छा ठंडा पियोगे? नहीं, बस अभी पाँच मिनट में निकलना है।
ये सुनकर पिताजी को कुछ याद आया, अरे मैं भूल गया। बस अभी निकलते हैं।
१५ मिनट और बीते, अब मैं बहन को और वो हमें देख रही है।
अच्छा तुम लोग उस दुकान पर जाओ, हम यहीं से फ़ोन कर देते हैं।
फ़िर हम दोनों अपने हिसाब से अपना सामान खरीदकर घर चले गये, पिताजी फ़ोन करना भी भूल गये :-)
घर पर माताजी ने हमें देखते ही पूछा, बडी देर लगा दी। पापा गये थे साथ में? बस हम और मेरी बहन मुस्कुरा दिये।
देखा, मैने पहले ही कहा था कि कोई फ़ायदा नहीं है।
कुछ आदतें कभी नहीं सुधरती। उन्हे कभी दफ़्तर के लिये लेट और समय से पहले घर आते नहीं देखा। अक्सर लेट ही घर आते देखा है। एक दिन बता रहे थे, बहुत से लोगों ने VRS (Voluntary Retirement Scheme) ले लिया है और इसके बदले भर्ती बिल्कुल नहीं हुयी हैं। इस पर भी जो लोग काम करते थे, उन्होने ही VRS लिया है और बाकी कम काम पर ऐश करने वाले अभी भी लगे हुये हैं, इससे सन्तुलन बिगड गया है।
काम के लिये समय की पाबन्दी शायद पिताजी से ही सीखी है।
सोमवार, जून 15, 2009
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rochak sansmaran hai badhaai
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है सब लोग (पिता ) ऎसे ही होते है, या फ़िर बच्चे तुन्हारे जेसे, लेकिन मजा आ गया,
जवाब देंहटाएंलगा कि मेरा लड़का मेरे बारे में लिख रहा है. :)
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़कर मुझे अपने बचपन के दिन याद आ गये । आपके पिताजी का चित्रण मेरे मामाजी से बहुत मिलता है ।
जवाब देंहटाएंमेरे मामा जी के तीन गुण हैं ।
१. सबसे प्यार से बात करते हैं और कभी किसी चीज को मना नहीं करते हैं
२. बहुत मेहनती हैं और अपने कार्यों को धार्मिक अनुष्ठानों की निष्ठा से करते हैं
३. निर्विकार भाव से सबकी सुनते हैं पर अपने मन की ही करते हैं
मेरा एक काम करवाने के लिये मुझे एक बार साथ में ले गये । उन्हे अपने कुछ काम याद आते गये । पहले श्रीवास्तव जी के घर, फिर शर्मा जी के घर, फिर गुप्ता जी के घर और फिर लगभग ४ और स्थानों पर जाने के बाद जब निपटे तो मेरी सुध ली । सात घरों में चाय पीने में, सोफे का डिजाइन देखने में, रोशनदान की ऊँचाई मनन करने में, अपना परिचय देने में और बड़ों की बातें ध्यानपूर्वक सुनने में मैं अपना काम भूल चुका था । खैर हम घर वापस आ गये बिना ’मेरा’ काम किये हुये ।
पर मुझे कभी भी उनके साथ घूमने में अपना समय व्यर्थ होता नहीं लगा । मैं अब सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि उन्हे काम करते हुये देखने से ही मैने जीवन में बहुत कुछ सीख लिया । मेरे काम तो आज नहीं तो कल हो ही जायेंगे ।
ये ऑफिस पहुचते हुए तो मैं भी कॉल करता हूँ :) ऑफिस कॉम्प्लेक्स में घुसते ही फ़ोन करता हूँ किसी को. बाकी पोस्ट तो बढ़िया है ही. अपनी कहानी.
जवाब देंहटाएंinteresting !!
जवाब देंहटाएंभाटिया जी की बात मे दम लगता है।अच्छा लिखा,बचपन की याद ताज़ा कर दी।
जवाब देंहटाएंयह पढ़ हम अपने गिरबान में झांकने लगते हैं। अब क्या बतायें!
जवाब देंहटाएंछोटी लेकिन सुन्दर पोस्ट! ऐसी पोस्टें रोज-रोज नहीं लिखीं जाती। सुन्दर! बधाई!
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi aur rochak post
जवाब देंहटाएंGaurav Srivastava
Allahabad
atyant rochak post..maza aa ya padh ke..humare pitaji itne samay ke paaband to kabhi na the..aksar unhe subah 9:30 ke around hadbadi machate hi paaya hai (aur hum poornatayah unpe gaye hain)..:)..lekin han office pahunch ke sab kuch bhool jana shayad pitaji logon ki aadat hi hoti hai...:)
जवाब देंहटाएंउस ज़माने के लोग अलग मिटटी के बने होते थे ...अनुशासन ओर प्यार का बेलेंस बनाने कि चिंता में रहते थे ...पर आज आपको पढ़कर अच्छा लगा .
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