हम तो मारे शर्म के गडे जा रहे हैं। अनामी भाई/बहन की टिप्पणियों पर हिन्दी ब्लाग जगत में आतंक मचा हुआ है। जो भी उसकी पैरवी करे, उसे तुरन्त काजमी साहब की तर्ज पर ब्गागद्रोही साबित कर दिया जाता है। और एक हमारा चिट्ठा है जो हमने खुल्ला छोड रखा है जिसके चलते भी कभी अनामी साहब नहीं फ़टकते। बहुत पहले जब लिखना शुरू किया तो बस ऐसा इन्तजाम किया कि टिप्पणी पोस्ट होते ही ईमेल से खबर मिल जाये जिससे कि अगर कभी कुछ सेंसर करना पडे तो तुरन्त कर सकें, वरना तुरन्त टिप्पणी छप जाये। लगभग तीन वर्षों में एक बार भी स्थिति नहीं आयी की मामला सेंसर करना पडा हो। एक-आध बार लगा की हटा दें लेकिन टिप्पणी पडी रहने दी और अगली पोस्ट तक याद भी नहीं रहा।
और भी गम हैं जमाने में अनामी के सिवा,
राहतें और भी हैं १५ मील की दौड के सिवा।
खैर, अनामी टिप्पणी हमारे ब्लाग पर जारी रहेगी क्योंकि हम चर्चा में इसके स्थान का महत्व मानते हैं। ये वैसा ही है, जब हम और आप अपनी कहानी सुनाते समय कहते हैं कि "एक बार मेरे दोस्त के साथ ऐसा हुआ"। इससे आगे अगर कोई गाली लिखे तो एक बटन से टिप्पणी डिलीट हो जाती है। उसका लिखा एक पैराग्राफ़ और आपका सिर्फ़ एक क्लिक, हम तो ये खेल रोज खेलने को तैयार हैं लेकिन हमें कोई भाव ही नहीं देता।
क्यों एक टिप्पणी से ही हमारा आपा खो जाता है और फ़िर हम जवाबी टिप्पणी लिखकर उसे द्वन्द युद्ध के लिये आमंत्रित कर लेते हैं। चिट्ठे से इतना मोह ठीक नहीं, साईबर जगत में टहल रहे इलेक्ट्रानों से इतनी नजदीकी का भ्रम पालें तो अपनी रिस्क पर :-) खैर, जो इसको अपनी प्रतिष्ठा का सामान बनाकर आईटी के औजार तरकशों में सजाये बैठे हैं, उनको इस एक तरफ़ी लडाई में जीत के लिये पहले से बधाई।
एक और प्रश्न है जो काफ़ी समय से सोचने पर मजबूर कर रहा है। कई चिट्ठाकार हैं जो नियमित लिख रहे हैं और बहुत अच्छा लिख रहे हैं। अचानक किसी एक विषय पर विचार न मिलने पर इतना हंगामा? कहाँ गयी सहिष्णुता कि हम असहमति पर सहमत हैं? क्या हर बहस का अन्त किसी एक की जीत से होना चाहिये। निर्मल आनन्द पर कभी पढा था कि विचार व्यक्ति/व्यक्तित्व का एक बहुत छोटा सा हिस्सा होता है जो अमूर्त है और बदलता रहता है, लेकिन यहाँ पर केवल वैचारिक असहमति पर इतना प्रलाप? इसे प्रतिष्ठा का चिन्ह बना लेना कहाँ तक ठीक है।
चलते चलते, हमारे मित्र अंकुर भारत से वापिस लौटकर आये हैं और बहुत सारी नयी खबरे, मिठाई, घर की बनी पूरियाँ, मठरी, और मुकेश की आवाज में हमारे लिये पाँच सीडी का "रामचरित मानस" का सेट लाये हैं और हम सुने जा रहे हैं, मुग्ध होकर, अहा आनन्दम आनन्दम!!!
रविवार, जून 28, 2009
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"क्यों एक टिप्पणी से ही हमारा आपा खो जाता है और फ़िर हम जवाबी टिप्पणी लिखकर उसे द्वन्द युद्ध के लिये आमंत्रित कर लेते हैं। "
जवाब देंहटाएंये ही अनामी का हव्वा किये है!!
"... मिठाई, घर की बनी पूरियाँ, मठरी, और मुकेश की आवाज ..."
जवाब देंहटाएंइन सबके सामने नामी-अनामी टिप्पणियों की क्या बिसात्त?
"मिठाई, घर की बनी पूरियाँ, मठरी, और मुकेश की आवाज" ये पढ़ कर तो अनामी जी भी नाम बता दें।
जवाब देंहटाएंअहा आनन्दम आनन्दम!!!
जवाब देंहटाएं-यह तो कॉपी राईटेड मटेरियल है..यूज करने के पहले पूछा था क्या किसी से??
-दंगा मचाना मकसद है!!
हाँ सच कहा आपने क्यों इतने असहिष्णु हो गए हैं लोग
जवाब देंहटाएं'हमारे मित्र अंकुर भारत से वापिस लौटकर आये हैं और ... मिठाई, घर की बनी पूरियाँ, मठरी, ... लाये हैं'
जवाब देंहटाएंक्या यह संभव है। जहां तक मुझे मालुम है कि खाने की चीज अमरीका नहीं ले जायी जा सकती है।
भाई आपा नही खोते, लेकिन गली के गुंडे को पकडना जरुरी है, वरना कल नेता बन कर हमारा खुन पीयेगा,
जवाब देंहटाएंतो राज खुल ही गया
जवाब देंहटाएंकि नेताई की पहली सीढ़ी
अनामी/बेनामी ही है
न कि सुनामी।
lo ek anami tippani kar hi dete hain, vaise mera naam Arun hai ji.
जवाब देंहटाएं:)
"... मिठाई, घर की बनी पूरियाँ, मठरी, और मुकेश की आवाज ..."
जवाब देंहटाएंइन सबके सामने नामी-अनामी टिप्पणियों की क्या बिसात्त?
meri tippani bhi yahii haen
अहा आनन्दम आनन्दम!!!
जवाब देंहटाएंइतना ही बहुत है....अनामी की टिप्पणी को गुमनामी मॆ डाल दो।....यानी डिलीट का बटन दबाएं.....
नहीं देते टिप्पणी, क्या कल्लोगे?!
जवाब देंहटाएं--- बेनामपरसाद।
फालतू की नौटंकी है
जवाब देंहटाएंआप सभी से विनती है लेख लिख कर हाईलाईट करना बंद करिए चीखने वाले, हल्ला करने वाले, और फालतू प्रलाप करने वाले लोग खुद शांत हो जायेगे
मेरा इससे कोई लेना देना नहीं है मगर अब अच्छा नहीं लग रहा ये सब बस करो भई...
क्या हर कोई एक दुसरे के पीछे हाँथ धो कर पड़ा हुआ है
लोग इतना कुछ कह रहे हैं अगर आमना सामना हो जाये तो गले मिल कर मिलेंगे हाल चाल पूछेंगे और पीछे गाली गुत्ता और भी पता नहीं क्या क्या
क्या ये दोहरापण जरूरी है
वीनस केसरी
हम बेनामीपरसाद नहीं हैं!
जवाब देंहटाएंबेनामी टिप्पणी उन अनाथ विचारों की तरह है जिन्हें उनके पैदा करने वालों ने अपना नाम देना उचित नहीं समझा । दया और दुआ दोनों के पात्र हैं ऐसे लोग और ऐसे विचार ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है सर आपने , मै भी बेनामी ही हूँ :-) ,
जवाब देंहटाएंवैसे यह तो बता दीजिये जो उन्मुक्त जी ने पूंछा है , मै भी जानना चाहता हूँ , अमेरिका में तो खाने की चीज नहीं ले जायी जा सकती है ???
गौरव श्रीवास्तव
अलाहाबाद