भारतीय परिवारों में रसोई महिलाओं का अधिकार क्षेत्र माना जाता रहा है । और महिलाओं ने भी अपने इस अधिकार क्षेत्र की सुरक्षा के लिये कोई कसर नहीं उठा रखी है । खाना बनाने को एक बडी ही कठिन कला समझा जाता रहा है और महिलाओं ने भी इस गलतफ़हमी को दूर करने की कभी कोई चेष्टा नहीं की । और करें भी क्यों जब कोई हमसे कहता है कि पी.एच.डी. करना बडा कठिन है तो हम भी बस मुस्कुरा देते हैं और प्रार्थना करते हैं कि कहीं पोल न खुल जाये । बहुत सारे सरकारी अफ़सरों की अफ़सरी इसी में चलती है कि बस लोगों तो लगता रहे बडा तनावपूर्ण काम है और अगर कार्य थोडा धीमी गति से हो रहे हैं तो इसका कारण है कि उन मुद्दों पर व्यापक सोच विचार चल रहा है ।
जब तक हम भारत में रहे हमारा रसोई में प्रवेश निषिद्ध रहा । हमारा रसोई में घुसते ही माताजी का कहना कि "अरे फ़िर चप्पल पहनकर आ गये !" और कुछ छूने से पहले हाथ धोने का आग्रह हमें रसोई से दूर करता गया । विद्यालयों में पढाई के दौरान "छात्रावास मैस" के भोजन के अनुभवों ने ये मानने पर बाध्य कर दिया कि शायद खाना पकाना बडा ही दुष्कर कार्य है और संभवत: पुरूष ये काम नहीं कर सकते ।
अपने घर और देश से दूर जाते समय हमारी माताजी ने भी कहा था, "हाय राम! इस लडके को तो पानी उबालना भी नहीं आता, इसका क्या होगा ।" पिताजी ने सान्त्वना दी कि बहुत लडके घर से बाहर रहते हैं, कुछ न कुछ सीख ही जायेगा । उस बात को कई साल बीत गये हैं और आज रसोई पर मेरे विचार कुछ भिन्न हैं ।
इससे पहले कि हम रसोई पुराण के कच्चे चिट्ठे खोलें और आपके रसोई सम्बन्धी कुछ भ्रम दूर करें, एक नजर डालते हैं कुछ चित्रों पर; मैने कल १२ लोगों के लिये भोजन पकाया था और ये सभी भोजन ३ घंटे के रेकार्ड समय में तैयार किया गया था । इस भोजन में किसी भी शार्ट कट का प्रयोग नहीं किया गया था और आलू/प्याज/टमाटर/सब्जी सब अपने इन्ही दोनों हाथों से काटी/छाँटी गयी थी ।
(मटर पनीर)
(राजमा)
(आलू टमाटर मटर)
(वैजी बिरयानी, सादा चावल)
(और किसी शक/शुबहे की गुंजाइश न बचे, इसलिये सारे व्यंजन एक साथ )
मेहरबान, कदरदान, साहेबान दिल थाम कर बैठिये क्योंकि आज हम रसोई पर किये अपने शोध के परिणाम आपके सामने रख रहे हैं । इस शोधपत्र द्वारा हम जनसामान्य के मानसपटल पर अंकित कुछ भ्राँतियों को दूर करने का प्रयास भी करेंगे ।
महिलाओं का किसी भी व्यंजन की रैसिपी को छुपा कर रखना, ये न बताना कि धनिया/मिर्च/जीरा/हल्दी आदि कितनी मात्रा में पडता है बल्कि ये कहना कि ये तो अंदाज से डाला जाता है और ये अंदाज वर्षों की मेहनत/परीक्षण का फ़ल है ।
ये कथन पूर्णतया असत्य है । चाहे तो २४ के फ़ान्ट में बोल्ड करके रसोई में चिपका लें । भारतीय मसालेदार भोजन में पडने वाले मसालों की एरर एनालिसिस (Error Analysis) के परिणाम और हर मसाले की एररबार (Errorbar) इस प्रकार हैं ।
अ) धनिया : इसकी मात्रा कुछ खास फ़र्क नहीं डालती है, १ चम्मच की जगह अगर तीन भी डाल दें तो फ़िनिश्ड प्रोडक्ट पर इसका असर बताना नामुमकिन है ।
ब) हल्दी : इसकी मात्रा में ५० प्रतिशत तक फ़ेरबदल किया जा सकता है । कम हल्दी डालेंगे तो रंग अच्छा नहीं आयेगा और ज्यादा डाल दी तो उसको थोडा पक जाने दें । फ़िनिश्ड प्रोडक्ट पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा ।
स ) मिर्च : इसमें थोडा संयम की जरूरत है लेकिन जिस प्रकार कैमिस्ट्री के टाइट्रेशन वाले प्रयोग में पिपेट से धोरे धीरे रसायन छोडा जाता है, यहाँ पर भी उसी विधि का प्रयोग करें ।
द) गरम-मसाला: २० से ३० प्रतिशत तक घोटाला यहाँ भी आराम से चल सकता है ।
न) नमक : इसके बारे में तो आप स्वयं जानते हैं, स्वाद-अनुसार
च ) जीरा : १०० प्रतिशत तक फ़ेरबदल कर सकते हैं, जरा ध्यान दें कि जीरा जलकर कडवा न हो जाये ।
छ ) अमचूर/खटाई : नमक की मात्रा में फ़ेरबदल करके इसमें भी ५० प्रतिशत तक का घोटाला किसी को पता नहीं चलेगा ।
लगभग हर सब्जी/दाल/राजमा की सार्वत्रिक "नीरज विधि":
१) तेल गरम करके उसमें जीरा डाल दें ।
२) बारीक कटी हुयी प्याज धीमी आंच पर तलें ।
३) अगर सब्जी में शिमला मिर्च/गोभी/बैंगन आदि हैं तो इस समय डाल सकते हैं । (दाल/राजमा) बनाने के लिये इस चरण को स्किप करें ।
नोट : आलू बहुत जल्दी पक जाते हैं इसलिये थोडी देर से डालें ।
३) सभी मसाले अपने स्वाद अनुसार डालकर थोडी देर पक जाने दें ।
४) बारीक कटे हुये टमाटर डाल कर थोडी देर पकने दें ।
नोट: टमाटर को धीमी आंच पर पकने दें और इनका पकना महत्वपूर्ण है । अगर टमाटर कच्चे रह गये तो फ़िनिश्ड प्रोडक्ट में वो मजा नहीं आयेगा ।
५) दाल/राजमा बनाने के लिये इस समय पहले से उबली हुयी दाल राजमा (पानी समेत) इस मिश्रण में डाल दें ।
६) आंच को बिल्कुल ही धीमा कर दें और थोडी ही देर में आपके व्यंजन तैयार हैं ।
नोट: इस पूरी विधि को परफ़ेक्ट करने के लिये केवल दो-तीन बार के अनुभव की आवश्यकता है ।
आपदाकालीन टिप्स/ट्रिक्स:
१) अगर नमक ज्यादा पड गया है तो चिन्ता की जरूरत नहीं है । आहिस्ता से सब्जी का मसालेदार पानी निकालकर गर्म सादा पानी मिला दें, मसालों के नुकसान की पूर्ति के लिये एक अलग पात्र में गर्म तेल में मसाले पकाकर पुरानी सब्जी में मिला दें ।
२) सब्जी बनाते समय पात्र के मुंह को खोलकर रखें और जैसे जैसे पानी कम होता रहे पानी मिलाते रहें । इस विधि में समय थोडा अधिक लगता है लेकिन सब्जी खराब होने की प्रायिकता लगभग समाप्त हो जाती है ।
३) भिंडी बनाते समय प्याज बारीक न काटकर लम्बी काटें; सब्जी अधिक प्रभावी दिखेगी ।
चलिये, हमें जितना कहना था हम कह चुके । इस पोस्ट पर आपकी टिप्पणियों की सबसे ज्यादा जरूरत है और आप ही नहीं आपकी श्रीमती जी (जो श्री विवाहित हैं :-) ) की इस पोस्ट पर क्या राय है हम ये भी जाननें के इच्छुक रहेंगे ।
इस पोस्ट के लिखने में महिलाओं के अधिकार क्षेत्र में अगर गलती से थोडा ज्यादा अतिक्रमण कर दिया हो तो इसके लिये क्षमाप्रार्थी हूँ ।
साभार,
नीरज रोहिल्ला
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वाह नीरज जी; आपके खाने देखकर मुंह में पानी भर आया.
जवाब देंहटाएंहम तो घर में महिलाओं के होते हुये भी खाना बताते हैं. खाना बनाना बहुत आनंददायक काम है.
और हां
पुरुषों के हाथ का बना खाना स्त्रियों के हाथ से बने खाने से ज्यादा स्वादिष्ट होता है.
मैथिली जी ने लिखा "पुरुषों के हाथ का बना खाना स्त्रियों के हाथ से बने खाने से ज्यादा स्वादिष्ट होता है." शायद इसी लिये दुनिंयां के सारे छोटे बडे होटलों में पुरुष ही खाना बनाते हैं
जवाब देंहटाएंअच्छा बहुत अच्छा...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।
अब अभयजी की मिट्टी की सौंधी महक पुराण की तो आपने ऐसी तैसी कर डाली-
हम आपसे सहमत हैं- रसोई महिमा समाज के तय ढांचों को बनाए रखने केलिए है- वरना वह भी बस एक और काम है।
मैथिली जी की बात से मैं कुछ कुछ सहमत हूँ। पुरुष अक्सर अच्छा खाना ही बनाते हैं। लेकिन मेरी अम्मा और नानी दोनो दुनिया का सबसे अच्छा खाना बनाती हैं। लेकिन फिर भी मैं कहता हूँ कि पुरुष अच्छा खाना बनाते हैं तो इसलिये क्योंकि नानी और अम्मा के हाथ का बना खाना सालों मे नसीब होता है। रोज़ तो उन्ही के हाथ का बना खाना खाना पड़ता है भई। लेकिन आपकी मटर पनीर और आलू मटर तो जुल्म ढा रही है। इत्ता शानदार कहॉ से सीख लिए।
जवाब देंहटाएंभाई नीरज, देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि हमारे सिवाय भी कोई है जो इतना बेहतरीन खाना बना सकता है (पूरुषों में). हमें तो बनाते बनाते इतना समय हो गया है कि बड़े आराम से बिना नापे अनुभव के आधार पर मसाले निर्धारित करते हैं. पत्नी को यह आलेख नहीं पढ़वा पायेंगे, क्षमा चाहते हैं, वरना वो समझेंगी कि हम इतने सरल काम में इतना भभका जमाते हैं. :)
जवाब देंहटाएंइतना अच्छा खाना बनाने और उतना ही अच्छा लेख लिखने के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंरसोई का शोध भी अच्छा चल रहा है।आगे भी जारी रखे।
शत प्रतिशत सही । पहली दफे जब घर छोड़ा था तो अपन को भी कुछ नहीं आता था सिवाय कुकर चढ़ाने के । पर आपकी ही तरह ट्राई एंड इरर से यही सीखा कि महिलाओं के सब्ज़ीयां पकाने के टोटके ज्यादातर आधारहीन हैं । इस बात को लेकर हम अकसर पत्नी समेत तमाम रसोई-विशेषज्ञों से बहसबाज़ी करने लगते हैं । पर आप तो जानते हैं कि इस आधी आबादी से जीतना दूभर है । अच्छा हुआ आपने लिखा, हमने अपनी पत्नी को पढ़वा दिया है । आपका मज़ाक़ उड़ने और आपकी बात खारिज होने में कुछ ही सेकेन्ड लगेंगे । पर हम शत प्रतिशत सहमत हैं ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब मज़ा आगया । खाना देख कर भी और पोस्ट पढ कर भी । मै तो कितनी पोस्टे लगा चुकी यह समझाने मे । खैर । मै चाहती हूं कि आपसे अन्य स्त्री-पुरुषों को थोडी समझ ले लेनी चाहिये ।हमने अपनी एक पोस्ट मे लिखा था --"-रसोई को अपनी सत्ता मानना स्त्री का बुडबकपना ही है ।"और इस रसोई महिमा के समर्थक पुरुष भी कामचोर है ,मुफ्त की खाने की आदत वाले है । :) बढिया पोस्ट ।साधुवाद !
जवाब देंहटाएं12:21 पूर्वाह्न
नीरज उवाच > ... बहुत सारे सरकारी अफ़सरों की अफ़सरी इसी में चलती है कि बस लोगों तो लगता रहे बडा तनावपूर्ण काम है...
जवाब देंहटाएंदो बातें:
1. इतनी बढ़िया टिप्पणियां पाने पर इतराइये मत. हमें भी बड़ी अच्छी खिचड़ी बनानी आती है. यही है कि उसपर लिखें तो क्या लिखें :)
2. बहुत पहले मेरे एक सरकारी अफसर दोस्त की शादी हुई. वह दफ्तर में 2 घण्टे अधिक बैठने लगा. पूछने पर शर्माते हुये बताया कि जल्दी घर जाने पर बीवी पर रोब ही नहीं पड़ेगा कि मैं बहुत काम करता हूं! :)
बहुत बढ़िया । हमें तो बना बनाया खाने से मतलब है कोई बनाने को कठिन कहे या सरल ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबढ़िया शोधपरक, मसालेदार पोस्ट है. शोध आगे भी जारी रखें और उसके सार-संक्षेप बताते रहें.
जवाब देंहटाएंबाप रे! पाककला में ही Ph. D. कर डाली है आपने नीरज जी! दाल रोटी चावल की सदस्यता लेकर लिखना शुरू करें! मैंने कल आधा दर्जन नान पकाये थे, पिछली बार से अच्छे बने हैं! मात्र एक महीने में रोटी से नान पर आ गया हूँ!
जवाब देंहटाएंबहुत ही लजीज. रसोई पर वैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टि का बढि़या समन्वय.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. पत्नी जी की टांग टूटी पड़ी है और वह खाट पर है. खाना तो हम ही बना रहे थे. सब्जी बनानी नहीं आती थी सो आपकी मेहरबानी से वह भी कर ही लेंगे. इस शोध प्रबंध के लिए बधाई. आभार भी.
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