मैने सबसे पहले १९९९ के आस पास इंटरनेट का प्रयोग प्रारम्भ किया था । उसके कुछ महीनों बाद ही मेरे किसी मित्र ने मुझे एक पुस्तक की पी.डी.एफ़. फ़ाईल दी थी जो एक तरीके से इंटरनेट की आचारसंहिता थी । उस पुस्तक को पढने में मुझे मुश्किल से १ घंटा लगा था लेकिन उसके दिशानिर्देशों को मैं आज भी उपयोग में लाता हूँ ।
इंटरनेट पर आपका आचरण काफ़ी हद तक आपके व्यक्तित्व और सोच को दर्शाता है । कारपोरेट जगत में तो ये और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इंटरनेट पर की गयी एक जरा सी गलती कभी कभी आपके पूरे कैरियर को चौपट कर सकती है । अमेरिका में न्याय-विभाग अभी तक ईमेल सम्बन्धी प्रकरण से उबरा नहीं है जहाँ उन्होने गलती से अथवा जानबूझ कर कुछ महत्वपूर्ण ईमेल डिलीट कर दी थीं ।
ईमेल फ़ारवर्ड करना आमतौर पर सभी लोग बुरा मानते हैं (कुछ अपवादों को छोडकर) लेकिन इसमें भी कई प्रकार के वर्गीकरण हैं ।
१) कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मौका लगते ही आपको कुछ भी फ़ारवर्ड कर देंगे; फ़ूलों का गुलदस्ता, यूरोप के फ़ोटो, प्यार जताने के १०० तरीके, दुनिया के १० अजूबे और बाकी सभी कु्छ ।
२) आपको कुछ लोग ऐसे मिल जायेंगे जो फ़ूलों का गुलदस्ता तो फ़ारवर्ड नहीं करेंगे लेकिन "सिद्धिविनायक मन्दिर का फ़ोटो"/"साईं बाबा का दुर्लभ फ़ोटो"/"तुम और हम दोनों आई. पाड जीते"/"मुफ़्त में पैसा कमायें" तुरन्त फ़ारवर्ड कर देंगे ।
३) इसके अगले पायदान पर जो लोग होते हैं जो बाकी कुछ तो नहीं पर कुछ विशेष चीजें जरूर फ़ारवर्ड करते हैं । उनको लगता है ये चीजें वास्तव में महत्वपूर्ण हैं और इनको फ़ारवर्ड करना कुछ गलत नहीं है । उदाहरण के लिये, "फ़ैक्ट्स टू मेक यू प्राउड अबाउट इंडिया"/ "किसी कारगिल/अक्षरधाम आपरेशन में शहीद हुये वीर के बारे में जानकारी"/ "सीमेन्स बैंगलौर में काम करने वाली किसी काल्पनिक महिला के बच्चे के लिये अस्थिमज्जा दान करने की अपील"/ " बिल गेट्स इस शेयरिंग हिज वैल्थ" आदि आदि ।
४) ये पायदान सबसे अलग होता है, और इस पायदान के लोग केवल "आनलाईन पिटीशन"/"हस्ताक्षर अभियान"/"ताजमहल को वोट दें" फ़ारवर्ड करते हैं ।
५) (इस पायदान में मैं भी आता हूँ) कुछ लोग किसी अन्य विषय से सम्बन्धित जानकारी (संगीत/इतिहास/कला/विज्ञान आदि) से सम्बन्धित "सत्य/रोचक" जानकारी अपने कुछ ऐसे मित्रों को फ़ारवर्ड करते हैं जो उनके हिसाब से इस जानकारी को रोचक/ज्ञानपद्र समझेंगे । चूँकि इस श्रेणी में मैं भी आता हूँ, इस श्रेणी के कुछ अलिखित नियमों (मेरे हिसाब से) की बात करते हैं ।
क) ऐसी ईमेल केवल उन्ही को भेजे जिनको आप व्यक्तिगत तौर पर जानते हों । अंगूठे का नियम हो सकता है कि आपने सम्बन्धित विषय पर उनसे पिछले दो महीने में कम से कम एक बार बात की हो । आपके पास उनका पता और फ़ोन नंबर हो ।
ख) दो-तीन बार ईमेल भेजने के बाद कभी बात होने पर उस ईमेल का जिक्र करें । अगर आपको दो या उससे अधिक बार ये सुनने को मिलता है कि "यार, मेल दिखी थी लेकिन इतना व्यस्त था कि पढ नहीं सका", तो इसे आप सभ्य भाषा में ये समझें कि उनको आपकी भेजी हुयी जानकारी में कोई रूचि नहीं है । आपको उन्हे दोबारा ऐसी ईमेल नहीं करनी चाहिये ।
ग) ऐसी ईमेल एक सप्ताह में दो बार से अधिक न करें ।
घ) अगर आपकी भेजी गयी जानकारी आपकी ईमेल के पाठकों को रोचक लगी होगी तो उनमें से कुछ निश्चित ही वापस ईमेल करके आपको धन्यवाद देंगे ।
ड) कभी भी धन्यवाद करते समय सभी लोगों को ईमेल न भेंजे, केवल सम्बन्धित व्यक्ति को ही प्रेषित करें ।
आप इन पाँचो पायदानों में से किस पायदान पर खडे हैं ? चाहे तो अपनी टिप्पणी के माध्यम से मुझे बता सकते हैं ।
मैने जब आचारसंहिता वाली पुस्तक पढी थी तो उसमें ब्लाग से सम्बन्धित कोई जानकारी नहीं थी । मैं अपने विचार से ब्लाग सम्बन्धी कुछ "अंगूठे के नियम" बता रहा हूँ । मेरी राय में इन्हे अपनाकर फ़ालतू के विवाद से आसानी से बचा जा सकता है ।
१) आपके ब्लाग पर टिप्प्णी भले ही दिखाई सबको दे, लेकिन एक प्रकार से वो आपके साथ व्यक्तिगत संवाद है । आप टिप्पणी के जवाब ईमेल से दे सकते हैं, लेकिन आम तौर पर टिप्पणी का जवाब आपके खुद के ब्लाग पर आपकी टिप्पणी से दिया जा सकता है । आप पर हुयी किसी व्यक्तिगत टिप्पणी/आक्षेप की जवाबदेही सिर्फ़ आपकी है । आपके मित्र अपनी टिप्पणी के माध्यम से उसका जवाब दे सकते हैं लेकिन इससे सदैव बचने का प्रयास करना चाहिये, वरना आपके मित्रों पर भी आक्षेप लगने की सम्भावना रहती है और फ़िर वो एक संवाद न रहकर व्यक्तिगत झगडा बन जाता है । आप पर लगाये गये किसी आक्षेप पर अपने किसी मित्र/अन्य पाठक द्वारा किसी जवाब की आकांक्षा नैतिक तौर पर गलत है । इस पचडे में पडना या न पडना उनका व्यक्तिगत मामला और आप इसे अपने सम्बन्धों की कसौटी न ही बनायें तो अच्छा है ।
२) किसी भी ब्लाग पर की गयी टिप्पणी को ब्लाग पर स्थान देने का फ़ैसला ब्लाग के मालिक के अधिकारक्षेत्र में आता है । हिन्दी ब्लागजगत में जहाँ टिप्पणियों का काफ़ी मोल है मेरी समझ से कोई भी ऐसा नहीं करेगा लेकिन अगर ऐसा हो तो आपकी नाराजगी नितांत अनुचित है । निश्चित रूप से पुन: टिप्पणी न करने अथवा उस ब्लाग को न पढने के लिये आप स्व्तन्त्र हैं, लेकिन इस मुद्दे का जवाब एक पोस्ट के माध्यम से सबको सुनाकर देना मेरी समझ से अनुचित व्यवहार होगा ।
३) ठीक इसी प्रकार, किसी टिप्पणीकर्ता की टिप्पणी के जवाब में लिखी गयी पोस्ट में टिप्पणीकर्ता का नाम बार बार लेना और अत्यधिक भावुक होना भी गलत है । ऐसे संवाद/जवाब के लिये व्यक्तिगत ईमेल कहीं बेहतर है । संवाद की समाप्ति के बाद आप एक पोस्ट में अपने वार्तालाप के मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में लिख सकते हैं (दूसरे संवादी से उस संवाद को छापने की अनुमति के बाद) ।
४) जैसा कि रवि रतलामीजी ने बताया था कि इंटरनेट पर आपका लिखा हुआ कुछ भी लम्बे समय तक बना रह सकता है इसलिये अपने गुस्से को सदैव काबू में रखें । एक आदर्श नियम हो सकता है कि आप लिखते समय संयम रखे और पढते समय दिल को एकदम खुला रखें और अपने विवेक का प्रयोग करत हुये यथासंभव छोटी बातों को नजरअन्दाज करें ।
ये कुछ ऐसे विचारबिन्दु हैं जो मैं पिछले काफ़ी समय से आप सबके सम्मुख रखना चाह रहा था । आप अपनी प्रतिक्रिया टिप्पणी के माध्यम से दे सकते हैं ।
साभार,
नीरज रोहिल्ला
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नीरज
जवाब देंहटाएंबहुत ही संतुलित नियम बताए आपने। आप की आज्ञा हो तो इसे अक्षरग्राम सर्वज्ञ पर डाल सकते हैं।
पंकज
बिल्कुल उचित नियम बताये हैं. पंकज भाई से सहमत हूँ कि इसे अक्षरग्राम सर्वज्ञ पर होना चाहिये.
जवाब देंहटाएंपंकजजी एवं समीरजी,
जवाब देंहटाएंआप इन नियमों में और नियम जोड/घटा/परिवर्तित करके अक्षरग्राम सर्वर पर डाल सकते हैं, मुझे बडी खुशी होगी ।
स्व अनुशासन ही एक मात्र उपाय है.. आचारसंहिता व्यवाहरिक है..
जवाब देंहटाएंये अच्छी-अच्छी बातें बताने के शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंबहुत काम की बातें-शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअनूपजी का संशोधन ठीक है- आचार संहिता के स्थान पर बातें या सलाहें जैसे शब्द नियामक न होने के कारण अधिक प्रभावित करते हैं इसलिए उनके माने जाने की संभावना अधिक हो जाती है।
The different levels of communication do reflects our maturity, and as said, everyone does go through these stages gradually to a higher level, i.e. from sheer inquisitiveness and aggressiveness to a higher degree of professionalism.
जवाब देंहटाएंAs hindi blog becomes more easy, when more adoption by general people will be there, we will see a higher percentage of people in "just try out or who cares" mindset rather than being responsible for their comment. Anyhow, any guidance is always helpful.
सही सलाह!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!!
काफी अच्छी बातें बताई है और बताने का तरीका बहुत अच्छा है ।
जवाब देंहटाएंअच्छे नियम बताए हैं आपने। ब्लॉगजगत के हिसाब से किए गए बदलाव काम में लाने लायक़ हैं।
जवाब देंहटाएंइसमें मैं एक बात और जोड़ना चाहूंगा। मेरी सनझ में यदि कोई टिप्पणी करता है और आप उसे प्रकाशित करते हैं तो उसका दायित्व न केवल उस व्यक्ति का है जो टिप्पणी करता है पर आपका भी है क्योंकि आपने उसे प्रकाशित करने दिया है। उदाहरणार्थ यदि मैं किसी की निन्दा टिप्पणी कर आपके चिट्ठे पर करूं और आप उसे प्रकाशित कर देते हैं तो उस निन्दा के लिये न केवल मैं पर आपका भी दायित्व होगा। इसलिये हर तरह की ईमेल प्रकाशित नहीं करनी चाहिये। हांलाकि यह बात सब नहीं मानते।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सामायिक और उचित मार्गदर्शन दिया है.
जवाब देंहटाएंअच्छा मार्गदर्शन.शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंइतने काम की बातें, इतने पहले बता देने का शुक्रिया! हिन्दी ब्लॉगिंग में तब से अब तक मॉडरेशन के लाभ, हानि और मान्यता पर भी काफ़ी बहस हुई है। उसके बारे में सभी सम्भावित पक्ष और जानकारी के बारे में कुछ लिखा है क्या?
जवाब देंहटाएंकाम की बातें हैं सभी|
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