शनिवार, जुलाई 21, 2007

विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एक गोलीय घोडे की परिकल्पना !!!

एक व्यक्ति का घोडा घुडदौड की प्रतियोगिताओं में लगातार हार रहा था । उसने सोचा कि क्यों न किसी वैज्ञानिक की सहायता ली जाये । सबसे पहले वो एक शोध संस्थान के सबसे पुराने सिविल अभियांत्रिकी विभाग में गया । वहाँ एक वैज्ञानिक ने सुझाया कि मैं एक ऐसा ट्रैक बनाऊँगा जहाँ केवल तुम्हारा घोडा ही प्रथम आयेगा । लेकिन प्रतियोगिता वाले ट्रैक पर कुछ भी सुधार संभव न था । फ़िर वो सबसे नये जैव प्रोद्योगिकी विभाग में गया तो एक महिला वैज्ञानिक ने कहा कि चिन्ता की कोई बात नहीं है, मैं तुम्हारे लिये घोडे की ऐसी नस्ल विकसित करूँगी जो दौडने में अव्वल आयेगा लेकिन इस काम में १५ वर्ष लगेंगे । अन्त में निराश होकर वापस लौटने से पहले उसने सोचा कि क्यों न भौतिकी विभाग में भी किसी से कोई राय ले ली जाये । एक बडी दाढी वाले वैज्ञानिक ने बहुत देर तक उसकी बातों को सुना, तमाम सवाल पूछे और एक कागज निकालकर कहा कि सबसे पहले इस समस्या के लिये पूर्वधारणायें (Assumptions) नोट कर लेते हैं । उसने लिखा:

१) एक गोलीय घोडे की परिकल्पना करते हैं (Let us assume a SPHERICAL horse) !!!

बताने की आवश्यकता नहीं कि बेचारा घोडा वाला अपने बाल नोंचता हुआ भाग गया ।

मैं पिछले लगभग चार वर्षों से (पहले भारतीय विज्ञान संस्थान और अभी राइस विश्वविद्यालय) शोधकार्य में संलग्न हूँ । मैने वास्तव में गोलीय घोडों जैसी अवधारणायें मानकर महत्वपूर्ण विषयों पर शोधकार्य होते देखा है । कई बार ऐसी हास्यास्पद परिकल्पनायें वास्तविक जीवन की समस्याओं (Real World Problems) को सुलझाने में सक्षम होती हैं । Pure Science के क्षेत्र में भले ही आपको ऐसी अवधारणाओं की आवश्यकता न पडे लेकिन व्यवहारिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Applied Science and Technology) के क्षेत्र में लगभग रोज ही ऐसी अवधारणाओं पर शोधकार्य किया जा रहा है ।

इसके दो कारण हैं । पहला तो शोधकार्य करने के लिये समय और संसाधनों का दवाब जिसके चलते आपको जल्दी जल्दी शोधपत्र लिखने पडते हैं । बजाय इसके कि आप अपनी परिकल्पना की हर पहलू से जाँच परख कर सकें, आप हर छोटे मोटे परिणामों को छापते रहते हैं । दूसरा कारण है कि गोलीय घोडे की अवधारणा के बावजूद अगर आपका विचार मौलिक है तो इसे छापना बहुत महत्वपूर्ण है । आपके शोधपत्र के छपते ही देश/विदेश में बैठे अन्य वैज्ञानिक आपकी अवधारणा में अन्य जरूरी तत्वों का समाधान करके नयी परिकल्पना प्रस्तुत करेंगे । इससे समस्या का समाधान अपने आप ही निखरता रहता है ।

अभी कुछ दिन पहले ज्ञानदत्तजी ने विष्णुकांत शास्त्रीजी के बारे में लिखते हुये कहा था कि शास्त्रीजी के अनुसार,

१) “मैं जितना लिख सकता था. उतना लिख नहीं पाया.... इसका बाहरी कारण मेरा बहुधन्धीपन रहा....इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि अल्प महत्व के तात्कालिक प्रयोजन वाले कार्य ही अधिकांश समय चाट जाते रहे और स्थायी महत्व के दीर्घकालिक प्रकल्प टलते रहे. लेखन भी इन्ही प्रकल्पों के अंतर्गत आता है.

२) “इससे भी अधिक गुरुतर कारण मेरा भीतरी प्रतिरोध रहा है. मेरी पूर्णता ग्रंथि ने मुझे बहुत सताया है. गंभीर विवेचनात्मक लेख लिखते समय मेरा अंतर्मन मुझे कुरेद-कुरेद कर कहता रहा है कि इस विषय पर लिखने के पहले तुम्हे जितना जानना चाहिये, उतना तुम नहीं जानते, थोड़ा और पढ़ लो, इस विषय के विशेषज्ञों से थोड़ा विचार विमर्श कर लो, तब लिखो......


एक वैज्ञानिक की मानसिक स्थिति को इससे बेहतर तरीके से व्यक्त करना असम्भव है । अपने लिये जहाँ एक तरफ़ उसे एक दीर्घकालीन शोधकार्य की दिशा निर्धारित करनी पडती है । वहीं दूसरी ओर अल्पावधि में महत्वपूर्ण शोध समस्याओं पर भी ध्यान केंद्रित करना पडता है । इसके अतिरिक्त यदि आप किसी विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं तो प्रशासनिक (administrative) जिम्मेदारियों के साथ साथ अपने विद्यार्थी शोधार्थियों की सहायता के लिये समय अलग से निकालना पडता है ।

किसी भी विषय पर शोधकार्य करने के लिये उस विषय पर पहले से किये गये शोधकार्य की जाँच पडताल करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । अब तो लगभग हर शोध प्रकाशन आनलाईन उपलब्ध है, लेकिन पहले ये कार्य अत्यधिक मेहनत वाला होता था । मेरी व्यक्तिगत राय है कि आज प्रोद्योगिकी के युग में बहुत से लोग Literature Survey को उतना समय नहीं देते जितना उसे देना चाहिये । केवल आनलाईन खोज करके आप अपने Literature Survey की इतिश्री नहीं मान सकते क्योंकि इसके लिये आपको शोधपत्रों का बारीकी से अध्ययन करके Cross Referencing करनी पडती है ।

इसमें भी एक समस्या है । जिस गति से शोधपत्र छप रहे हैं उसके लिहाज से आप कभी भी विषय पर पूरी जानकारी प्राप्त नहीं कर सकते । आपको कहीं न कहीं रेखा खींचनी पडेगी और अपना मौलिक कार्य प्रारम्भ करना पडेगा । एक अच्छे वैज्ञानिक को क्या करना चाहिये इसके बारे में वैज्ञानिकों में आपस में भी मतभेद हैं । कोई कहता है बिना समय व्यर्थ किये गोलीय घोडे की अवधारणा लेकर कार्य प्रारम्भ करना चाहिये और बीच बीच में अपनी अवधारणा को परिष्कॄत करना चाहिये । दूसरे लोग कहते हैं कि प्रारम्भ में पढने और Literature Survey में पर्याप्त समय लगाकर आप अपने लिये अच्छे दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं ।

ये लेख जरूरत से लम्बा न हो जाये इसके लिये मैं एक वैज्ञानिक लुडविग बोल्ट्ज्मैन (Ludwig Boltmann) का उदाहरण देता हूँ । Boltzmann जब अपने "गैसों के गति सम्बन्धी सिद्धान्त (Kinetic Theory of Gases)" पर कार्य कर रहे थे तो उस समय के वैज्ञानिकों ने उनके कार्य को गम्भीरता से नहीं लिया । Boltzmann ने एक जगह लिखा था :

I am now convinced that these attacks are based completely on misconceptions and that the role of the kinetic theory in science is far from being played out ... In my opinion it would be a loss to science if the kinetic theory were to fall into temporary oblivion because of the present, dominantly hostile mood, as, for example, the wave theory did because of NEWTON'S authority.

I am conscious of how powerless the individual is against the currents of the times. But in order to contribute whatever is within my powers so that when the kinetic theory is taken up once again, not too much will have to be rediscovered.

सच में किसी भी मूलभूत खोज के लिये ऐसे ही दॄढ निश्चय और विज्ञान के प्रति जुनून की हद तक समर्पण की आवश्यकता होती है । ये विडम्बना ही थी कि ऐसे जुझारू Boltzmann नें १९०६ में अवसाद की स्थिति में आत्महत्या कर ली थी ।



नीरज रोहिल्ला
२१ जुलाई, २००७

5 टिप्‍पणियां:

  1. शाम को पढ़ेंगे, बस यही बताना था. :)

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  2. बहुत अच्छा लेख, विज्ञान से नाता छूटे कई साल हो गए, लेकिन अब भी आसानी से समझ में आने वाले हल्के-फुल्के विषयों पर पढ़ना अच्छा लगता है।

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  3. क्या लेख लिखा है भाई…
    बहुत सुंदर लगा विज्ञान के संदर्भ में और जानकर…।

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  4. You ought to have a small yet synchronizing group of people who can support your thought, supplement and complement. Nothing to do with science or research. Even in day to day living if the living is to be meaningful.
    Such small group - may be 3-4-5 people, if not there, one may get depressed easily by the hopeless situations or massive bombardment of information!

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  5. मैंने आज इसे पूरा पढ़ा। बहुत अच्छा लगा। ज्ञानदत्त जी की बात सही है।इस लेख के लिये शुक्रिया। ऐसे ही लिखते रहें। बोल्ट्जमैन की तरह शायद आपकोभी देर से प्रतिक्रियायें मिलें लेकिन मिलेंगी। :)

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