ह्यूस्टन मैराथन अब केवल ७ हफ़्ते दूर है । आखिरी के तीन हफ़्ते टेपर ट्रेनिंग (Taper training) के होंगे । टेपर ट्रेनिंग का मतलब है कि आप आखिरी तीन हफ़्तों में अपनी ट्रेनिंग को धीरे धीरे कम करते हैं जिससे आपका शरीर पिछले ५ महीने की ट्रेनिंग के कष्ट (Stress) से उबर कर मैराथन दौड के लिये बिल्कुल तैयार रहे । इसका एक मतलब और ये है कि अब केवल ४ हफ़्तों की कष्ट दायक (हफ़्ते में ६५-७० किमी दौडना) ट्रेनिंग बाकी है ।
आज सुबह १८ मील (~२९ किमी) की लम्बी दौड के दौरान मेरे एक मित्र ने कहा ।
Neeraj, so now India must be really pissed and guess Pakistan is gonna have a real tough situation.
एक अन्य मित्र मे टिप्पणी की ।
Pakistan could be in deep s***.
ह्यूस्टन के प्रमुख अखबारी वेबसाईटों पर भी लोगों की टिप्पणियों से अनुमान लगा कि वे लोग सोच रहे हैं कि अब भारत इसका बदला पाकिस्तान से जरूर लेगा ।
और इधर मैं हूँ जिसे खुद भरोसा नहीं है कि भारत कुछ करेगा भी कि नहीं और यदि कुछ करेगा तो क्या ?
खैर....
आज दौड के दौरान इत्तेफ़ाक से एक भी महिला हमारे साथ नहीं दौड रही थी और इसका नतीजा हुआ कि बातों का सिलसिला Slippery Slope पर फ़िसलता चला गया, ऐसा नहीं है कि जब महिलायें साथ में होती हैं तो बडी सलीकेदार बाते होती हैं :-) बस समझ लीजिये कि दौडने के दर्द को कम करने के लिये बातों का ही तो सहारा होता है :-) सबने मजेदार चुटकुले/किस्से सुनाये, उम्र में सब मुझसे बडे थे लेकिन लगभग सभी से व्यक्तिगत जान पहचान बन गयी है तो कोई असुविधा नहीं थी । इसी सिलसिले में बात फ़िटनेस, भोजन पर आयी और पैट्रिक ने सटीक टिप्पणी की ।
We should treat our bodies as a temple for us but rather we treat it as amusement park.
मैने चुटकी ली,
And runners treat it as a free pass to amusement park, :-)
अन्यथा कौन बेवकूफ़ रविवार के दिन सुबह पाँच बजे उठकर छ: बजे पार्क में आकर २.५-३ घंटे दौडेगा ।
क्लेटन ने कहा:
At least we will not die of heart attack sitting on a couch.
इस पर स्टीव बोले,
But, we may die of a failed liver due to all that beer we drink after the run.
पैट्रिक:
By the way, Simon is buying beer this Wednesday to celebrate his engagement.
इस पर सब हंसे और एक मत से स्वीकार किया गया कि खराब लीवर से मिली मौत दिल के रूकने वाली मौत से श्रेष्ठ है और सभी बुधवार की दौड के बाद मिलने वाली मुफ़्त बीयर के सपनों में खो गये :-)
रविवार, नवंबर 30, 2008
शुक्रवार, नवंबर 28, 2008
कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नजर नहीं आती
डिस्क्लेमर: आप भले ही विश्वास न करें लेकिन नीचे लिखी घटना अक्षरश: सत्य है । और सम्भवत: ये एक लम्बी पोस्ट भी हो और बिल्कुल बेमतलब जिसका यथार्थ से कोई वास्ता न हो ।
बात सन ९२ के आस पास की है । जम्मू और कश्मीर में उस समय लगभग रोज ही बम विस्फ़ोट होते थे । दूरदर्शन पर सुनना कि "स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियन्त्रण में है" आम बात होती थी । उस समय हम शाहजहाँपुर में रहते थे । हम कक्षा ६-७ में पढा करते थे और घर से स्कूल का लगभग ५-६ किमी का सफ़र रिक्शे पर तय किया करते थे । रास्ते में खन्नौत नदी पडती थी जिस पर दो पुल बने हुये थे । एक दिन रिक्शे पर बैठे बैठे विचार आया कि आतंकवादी जम्मूकश्मीर में बम फ़ोडते हैं जहाँ इतनी पुलिस है, एक बम से खन्नौत का पुल उडा दें तो कम से कम २ महीने के लिये स्कूल की छुट्टी । और खन्नौत का पुल उडाना भी आसान है क्योंकि दूर दूर तक कोई पुलिस वाला नहीं रहता है । रिक्शे पर बाकी बच्चों ने भी इस चर्चा में भाग लिया और कुछ ने कहा कि शायद ३-४ महीने की छुट्टी हो जाये तो कुछ ने कहा कि पापा दूसरे स्कूल में नाम लिखा देंगे ।
उसी दिन शाम को स्कूल से घर लौट कर पिताजी का इन्तजार करते रहे । पिताजी घर आये तो उनसे भी यही सवाल पूछा कि वो ऐसी जगह बम क्यों नहीं रखते जहाँ कोई न पकडे और उनका काम भी हो जाये । पिताजी ने कहा कि शाहजहाँपुर में बम फ़टेगा कि कोई खास ध्यान नहीं देगा लेकिन जम्मू-कश्मीर का बडा नाम है इसीलिये ऐसा करते हैं । तभी टी.वी. पर एक कार्यक्रम आने लगा और सारी बातचीत खत्म ...
याद दिला दें कि ये वही शाहजहाँपुर है जहाँ काफ़ी बडी मुस्लिम आबादी होने के बाद भी ९२ के बाद हिन्दू और मुस्लिमों में एक भी मुढभेड नहीं हुयी थी और न ही एक भी दिन के लिये कर्फ़्य़ू लगा था ।
लेकिन आज मुझे खन्नौत के पुल की सच में बहुत चिन्ता हो रही है । ब्रेकिंग न्यूज, टेली कम्यूनिकेशन की क्रान्ति के बाद कोई भी जगह ५ मिनट में आम से खास हो सकती है । क्या आतंकी भी इसी योजना के सहारे चल रहे हैं ?
विस्फ़ोट की जिम्मेवारी लेने सरीखा काम भी केवल सनसनी फ़ैलाने वाला है । जब ब्रेकिंग न्यूज से सनसनी फ़ैल ही रही है तो अपना नाम भी क्यों बतायें । आज डेक्कन मुजाहिदीन तो कल शाहजहाँपुर मुजाहिदीन तो परसों औरैया मुजाहिदीन । कर लो जो करना है, हम नहीं बतायेंगे कि हमने किया है । आतंक सबसे भयावह होता है जब वो आपकी आंखो में हो, आप दिल में हो कि कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है । क्या करेंगे ऐसे में आप ?
आप अपने शहर का उदाहरण उठा कर देख लीजिये जहाँ भी आप रहते हों, क्या आप सुरक्षित हैं ? आपके आस पडौस कि रिक्शे/टैम्पों में चार आतंकवादी बैठ कर जा रहें हो तो क्या आप उन्हें पहचान लेंगे ? उनके सिर पर सींग तो नहीं होते ? पिछले कुछ सालों से देखें तो ऐसी ऐसी जगह आतंकी हमले हुये हैं जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, छोटे छोटे शहर, एकदम आम ... और इसके बाद ये दिल दहला देने वाली मुम्बई की घटना । हर आँख में आतंक का साया और देश की खूफ़िया एजेंसियाँ पूरी तरह से बेखबर ।
इसका हल क्या है ? कुछ ने कहा कि पीओके पर हमला बोल दो । उससे क्या होगा ? पोटा के बारे में दिनेशजी पहले ही एक पोस्ट लिख चुके हैं । हम हताशा में बस अगले दिन उठकर काम पर ही चल सकते हैं कि देख लो नहीं डरा मुम्बई, मुम्बई के जज्बे को सलाम और फ़िर इन्तजार में कटते दिन और रात ।
केवल एजेन्सियाँ बना देने से काम नहीं होगा । जो हवलदार ५०० रूपये लेकर ट्रक को बिना चैक कर जाने दे रहा है कि कागज पर सेब लिखा है लेकिन असल में टैक्स बचाने के लिये मसाले भरे हैं, उससे आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि अगली बार वो गोलियों से भरा ट्रक रोक लेगा । २०० रूपये लेकर ड्राइविंग लाईसेंस और राशन कार्ड बनाने वाला अनजाने में एक आतंकवादी को भारत का नागरिक नहीं बना देगा इसकी क्या गारण्टी है ? जब तक जनता ईमानदार नहीं होगी अगर फ़रिश्ते भी हमारी सेवा में लग जायें तो सुरक्षा की कोई गारण्टी नहीं दे सकता ।
आज मैं अपने पाठक गणों को गृहमंत्री बना रहा हूँ, अपनी प्रतिक्रिया दीजिये कि आप क्या करेंगे ? केवल भावनाओं में बहकर नहीं ठंडे दिमाग से सोचकर जवाब दीजिये क्योंकि मेरे पास केवल सवाल हैं ।
बात सन ९२ के आस पास की है । जम्मू और कश्मीर में उस समय लगभग रोज ही बम विस्फ़ोट होते थे । दूरदर्शन पर सुनना कि "स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियन्त्रण में है" आम बात होती थी । उस समय हम शाहजहाँपुर में रहते थे । हम कक्षा ६-७ में पढा करते थे और घर से स्कूल का लगभग ५-६ किमी का सफ़र रिक्शे पर तय किया करते थे । रास्ते में खन्नौत नदी पडती थी जिस पर दो पुल बने हुये थे । एक दिन रिक्शे पर बैठे बैठे विचार आया कि आतंकवादी जम्मूकश्मीर में बम फ़ोडते हैं जहाँ इतनी पुलिस है, एक बम से खन्नौत का पुल उडा दें तो कम से कम २ महीने के लिये स्कूल की छुट्टी । और खन्नौत का पुल उडाना भी आसान है क्योंकि दूर दूर तक कोई पुलिस वाला नहीं रहता है । रिक्शे पर बाकी बच्चों ने भी इस चर्चा में भाग लिया और कुछ ने कहा कि शायद ३-४ महीने की छुट्टी हो जाये तो कुछ ने कहा कि पापा दूसरे स्कूल में नाम लिखा देंगे ।
उसी दिन शाम को स्कूल से घर लौट कर पिताजी का इन्तजार करते रहे । पिताजी घर आये तो उनसे भी यही सवाल पूछा कि वो ऐसी जगह बम क्यों नहीं रखते जहाँ कोई न पकडे और उनका काम भी हो जाये । पिताजी ने कहा कि शाहजहाँपुर में बम फ़टेगा कि कोई खास ध्यान नहीं देगा लेकिन जम्मू-कश्मीर का बडा नाम है इसीलिये ऐसा करते हैं । तभी टी.वी. पर एक कार्यक्रम आने लगा और सारी बातचीत खत्म ...
याद दिला दें कि ये वही शाहजहाँपुर है जहाँ काफ़ी बडी मुस्लिम आबादी होने के बाद भी ९२ के बाद हिन्दू और मुस्लिमों में एक भी मुढभेड नहीं हुयी थी और न ही एक भी दिन के लिये कर्फ़्य़ू लगा था ।
लेकिन आज मुझे खन्नौत के पुल की सच में बहुत चिन्ता हो रही है । ब्रेकिंग न्यूज, टेली कम्यूनिकेशन की क्रान्ति के बाद कोई भी जगह ५ मिनट में आम से खास हो सकती है । क्या आतंकी भी इसी योजना के सहारे चल रहे हैं ?
विस्फ़ोट की जिम्मेवारी लेने सरीखा काम भी केवल सनसनी फ़ैलाने वाला है । जब ब्रेकिंग न्यूज से सनसनी फ़ैल ही रही है तो अपना नाम भी क्यों बतायें । आज डेक्कन मुजाहिदीन तो कल शाहजहाँपुर मुजाहिदीन तो परसों औरैया मुजाहिदीन । कर लो जो करना है, हम नहीं बतायेंगे कि हमने किया है । आतंक सबसे भयावह होता है जब वो आपकी आंखो में हो, आप दिल में हो कि कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है । क्या करेंगे ऐसे में आप ?
आप अपने शहर का उदाहरण उठा कर देख लीजिये जहाँ भी आप रहते हों, क्या आप सुरक्षित हैं ? आपके आस पडौस कि रिक्शे/टैम्पों में चार आतंकवादी बैठ कर जा रहें हो तो क्या आप उन्हें पहचान लेंगे ? उनके सिर पर सींग तो नहीं होते ? पिछले कुछ सालों से देखें तो ऐसी ऐसी जगह आतंकी हमले हुये हैं जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, छोटे छोटे शहर, एकदम आम ... और इसके बाद ये दिल दहला देने वाली मुम्बई की घटना । हर आँख में आतंक का साया और देश की खूफ़िया एजेंसियाँ पूरी तरह से बेखबर ।
इसका हल क्या है ? कुछ ने कहा कि पीओके पर हमला बोल दो । उससे क्या होगा ? पोटा के बारे में दिनेशजी पहले ही एक पोस्ट लिख चुके हैं । हम हताशा में बस अगले दिन उठकर काम पर ही चल सकते हैं कि देख लो नहीं डरा मुम्बई, मुम्बई के जज्बे को सलाम और फ़िर इन्तजार में कटते दिन और रात ।
केवल एजेन्सियाँ बना देने से काम नहीं होगा । जो हवलदार ५०० रूपये लेकर ट्रक को बिना चैक कर जाने दे रहा है कि कागज पर सेब लिखा है लेकिन असल में टैक्स बचाने के लिये मसाले भरे हैं, उससे आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि अगली बार वो गोलियों से भरा ट्रक रोक लेगा । २०० रूपये लेकर ड्राइविंग लाईसेंस और राशन कार्ड बनाने वाला अनजाने में एक आतंकवादी को भारत का नागरिक नहीं बना देगा इसकी क्या गारण्टी है ? जब तक जनता ईमानदार नहीं होगी अगर फ़रिश्ते भी हमारी सेवा में लग जायें तो सुरक्षा की कोई गारण्टी नहीं दे सकता ।
आज मैं अपने पाठक गणों को गृहमंत्री बना रहा हूँ, अपनी प्रतिक्रिया दीजिये कि आप क्या करेंगे ? केवल भावनाओं में बहकर नहीं ठंडे दिमाग से सोचकर जवाब दीजिये क्योंकि मेरे पास केवल सवाल हैं ।
तुम आज कुछ भी न पूछो कि दिल उदास बहुत है !!!
अक्सर मैं भावनाओं के प्रवाह में कुछ भी लिखने से बहुत गुरेज करता हूँ लेकिन,
तुम आज कुछ भी न पूछो कि दिल उदास बहुत है :-( :-( :-(
तुम आज कुछ भी न पूछो कि दिल उदास बहुत है :-( :-( :-(
बुधवार, नवंबर 19, 2008
एक नैनो पोस्ट !!!!
आज का सबक:
ईमेल/ब्लाग पोस्ट/महत्वपूर्ण पत्र लिखने के बाद प्रूफ़रीड अवश्य करें । आज एक ईमेल का जवाब देते समय उठकर कहीं जाना हुआ और वापस लौटते ही जल्दबाजी में भेजने के चक्कर में ऐसा कुछ लिख गये कि पढने वाले ने भी सोचा होगा कि क्या दारू पीकर लिखा है :-)
लिखना चाहते थे,
Few folks in my dept. have complained that CHBE is not listed in
the department lists. Is it possible to add it to the list?
जल्दबाजी में लिखा,
Few folks in my dept. complained that there is CHBE is not listed in
the department. Is it possible to add it to the list?
अब बहाना बनाना पडेगा कि हिन्दी ब्लाग पढ पढ के अंग्रेजी कमजोर हो गयी :-)
नीरज,
P.S: कम से कम २५ पोस्ट लिखने का इन्तजार कर रही हैं, जल्दी ही लिखना शुरू करना पडेगा । सागरभाईजी, जल्द ही महफ़िल पर आपका हाथ बंटाने हाजिर होऊँगा, आप आजकल जो नायाब हीरे सुनवा रहे हैं उसके लिये बधाई और महफ़िल का नया लुक भी बडा शानदार लग रहा है ।
ईमेल/ब्लाग पोस्ट/महत्वपूर्ण पत्र लिखने के बाद प्रूफ़रीड अवश्य करें । आज एक ईमेल का जवाब देते समय उठकर कहीं जाना हुआ और वापस लौटते ही जल्दबाजी में भेजने के चक्कर में ऐसा कुछ लिख गये कि पढने वाले ने भी सोचा होगा कि क्या दारू पीकर लिखा है :-)
लिखना चाहते थे,
Few folks in my dept. have complained that CHBE is not listed in
the department lists. Is it possible to add it to the list?
जल्दबाजी में लिखा,
Few folks in my dept. complained that there is CHBE is not listed in
the department. Is it possible to add it to the list?
अब बहाना बनाना पडेगा कि हिन्दी ब्लाग पढ पढ के अंग्रेजी कमजोर हो गयी :-)
नीरज,
P.S: कम से कम २५ पोस्ट लिखने का इन्तजार कर रही हैं, जल्दी ही लिखना शुरू करना पडेगा । सागरभाईजी, जल्द ही महफ़िल पर आपका हाथ बंटाने हाजिर होऊँगा, आप आजकल जो नायाब हीरे सुनवा रहे हैं उसके लिये बधाई और महफ़िल का नया लुक भी बडा शानदार लग रहा है ।
रविवार, नवंबर 09, 2008
२५ किमी: २ घंटा १ मिनट और ४४ सेकेंड्स !!!
अब ह्यूस्टन मैराथन लगभग २ महीना और १ हफ़्ता दूर है । तैयारियाँ जोर पकड रही हैं, ट्रेनिंग रन लम्बे और ज्यादा लम्बे होते जा रहे हैं । हफ़्ते का कोटा ४८ किमी से बढकर ५५-६० किमी तक पंहुच रहा है । इसी सिलसिले में आज मैने एक २५ किमी की दौड दौडी । इस दौड में ८.३३३ किमी के रास्ते के तीन चक्कर लगाने थे । ये मेरी अब तक की सबसे लम्बी बिना रूके दौड थी और अब ये सिलसिला बढते बढते ४२.२ किमी तक जाकर रूकेगा ।
सबसे पहले कुछ तैयारियाँ और सबक जो मैने इस दौड के लिये तैयार किये । मैने अक्सर महसूस किया है कि मैं शुरूआत में काफ़ी तेजी से दौडना शुरू करता हूँ जिसके कारण कभी कभी बीच में मुझे अपनी रफ़्तार धीमी करनी पडती है । मैने फ़ैसला किया था कि आज पहला ८.३३३ किमी मैं धीमे दौडूँगा और उसके बाद रफ़्तार पकडी जायेगी । इसके अलावा मुझे बहुत ज्यादा खाने का शौक नहीं है जिसके चलते लम्बी दौडों में अक्सर अन्त में ऐसा लगता है कि अपने पेट/खून के टैक में पेट्रोल (ग्लाईकोजन -> ग्लूकोज) खत्म सा हो रहा है । इसके लिये पिछले पूरा हफ़्ता मैने जमकर खाना खाया । कल दोपहर में भारतीय रेस्तराँ में मन और पेट को दबा दबा कर भरा फ़िर रात में एक बडा सा सैंडविच खाया ।
आज सुबह सुबह मैं ६:३० पर नियत स्थान पर पंहुच गया था । हमेशा की तरह आज भी John Phillips और साथियों अपने धावक क्लब का तम्बू खडा कर रखा था । हम सब अपना बाकी सामान टैंट में छोडकर ६:४५ पर आरम्भ पंक्ति पर आ गये । अमेरिका के राष्ट्रगान के पश्चात अफ़गानिस्तान और ईराक में लड रहे उनके सैनिकों को याद करके ठीक सात बजे बन्दूक की आवाज पर दौड प्रारम्भ हो गयी ।
( हमारे धावक क्लब का तम्बू )
पहले दो किमी पलक झपकते ही पूरे हो गये, अब दौडने वाली मांशपेशियाँ धीरे धीरे अपने सुर/ताल में आ रही थीं । पाँच किमी पूरे हुये और मुझे अपने आप को धीरे दौडने के लिये याद दिलाना पड रहा है क्योंकि जब लोग दौड में आपसे आगे निकलते हैं तो बहुत अच्छा नहीं लगता वो भी तब जब आप चाहें तो तेज दौडकर उनको पीछे छोड सकते हैं । कुछ हफ़्ते पहले मेरे एक धावक मित्र ने मुझे एक मंत्र दिया था । उन्होने कहा था कि २५ किमी की दौड में तुम पहले १० किमी में २ मिनट बचाकर बाकी १५ किमी में ५ मिनट गंवाना पसन्द करोगे कि पहले १० किमी में ३ मिनट गंवाकर बाकी १५ किमी में ६ मिनट बचाना । इसी को मन में याद रखते हुये मैं धीरे धीरे दौडता रहा । पहला लूप समाप्त हुया और ८.३३३ किमी दौडने में ठीक ४३ मिनट का समय लगा ।
दूसरे लूप में मैने अपनी रफ़्तार थोडी तेज की लेकिन अभी भी डर लग रहा था कि बहुत तेज नहीं दौडना है । दूसरे लूप को दौडने में सबसे अधिक आनन्द आया । जो लोग पहले लूप में तेजी से दौड रहे थे वो अब रफ़्तार कम कर रहे थे और इसले उलट मैं धीरे धीरे रफ़्तार बढा रहा था । दूसरे लूप को पूरा करने में ४० मिनट और १८ सेकेंड्स लगे ।
अब एक आखिरी लूप बाकी था । मैने निश्चय किया कि आखिरी लूप को पूरी जी जान लगाकर दौडना है । इसी लूप में एक महत्वपूर्ण मार्क हाफ़ मैराथन यानि २१.१ किमी का था । पिछले साल हाफ़ मैराथन दौडने मैं मुझे १ घंटा ५३ मिनट लगे थे । आज की दौड में हाफ़ मैराथन तक आने में मुझे १ घंटा और ४३ मिनट लगे । इसका मतलब १ साल में इतना दौडने से कुछ तो रफ़्तार बढी है । आखिर के पाँच किमी में मैं काफ़ी तेज दौड रहा था और लगभग हर १५ सेकेंड्स में एक धावक से आगे निकल रहा था । मैने घडी पर नजर डाली तो ठीक दो घंटा और समाप्ति की रेखा दिखायी दे रही है । आखिरी ०.४ किमी मैं पूरी तेजी से दौडा और इस लूप को ३८ मिनट और २६ सेकेंड्स में पूरा कर लिया ।
पहले लूप (८.३३३ किमी) में १ किमी दौडने का औसत समय: ५ मिनट ९.६ सेकेंड्स
दूसरे लूप (८.३३३ किमी) में १ किमी दौडने का औसत समय: ४ मिनट ५०.२ सेकेंड्स
तीसरे लूप (८.३३३ किमी) में १ किमी दौडने का औसत समय: ४ मिनट ३६.७ सेकेंड्स
पूरी २५ किमी की दौड का समय : २ घंटा १ मिनट ४४ सेकेंड्स
पूरी २५ किमी की दौड में १ किमी दौडने का औसत समय: ४ मिनट ५२ सेकेंड्स
(दौड पूरी होने के बाद अपने मित्रों के साथ एक फ़ोटो हो जाये )
दौड के बाद एक जर्मन थीम पार्टी भी थी जहाँ पर हमने भी हरी टोपी में एक फ़ोटो खिंचवाया :-)
(अरे, साला मैं तो साहब बन गया :-) )
सबसे पहले कुछ तैयारियाँ और सबक जो मैने इस दौड के लिये तैयार किये । मैने अक्सर महसूस किया है कि मैं शुरूआत में काफ़ी तेजी से दौडना शुरू करता हूँ जिसके कारण कभी कभी बीच में मुझे अपनी रफ़्तार धीमी करनी पडती है । मैने फ़ैसला किया था कि आज पहला ८.३३३ किमी मैं धीमे दौडूँगा और उसके बाद रफ़्तार पकडी जायेगी । इसके अलावा मुझे बहुत ज्यादा खाने का शौक नहीं है जिसके चलते लम्बी दौडों में अक्सर अन्त में ऐसा लगता है कि अपने पेट/खून के टैक में पेट्रोल (ग्लाईकोजन -> ग्लूकोज) खत्म सा हो रहा है । इसके लिये पिछले पूरा हफ़्ता मैने जमकर खाना खाया । कल दोपहर में भारतीय रेस्तराँ में मन और पेट को दबा दबा कर भरा फ़िर रात में एक बडा सा सैंडविच खाया ।
आज सुबह सुबह मैं ६:३० पर नियत स्थान पर पंहुच गया था । हमेशा की तरह आज भी John Phillips और साथियों अपने धावक क्लब का तम्बू खडा कर रखा था । हम सब अपना बाकी सामान टैंट में छोडकर ६:४५ पर आरम्भ पंक्ति पर आ गये । अमेरिका के राष्ट्रगान के पश्चात अफ़गानिस्तान और ईराक में लड रहे उनके सैनिकों को याद करके ठीक सात बजे बन्दूक की आवाज पर दौड प्रारम्भ हो गयी ।
( हमारे धावक क्लब का तम्बू )
पहले दो किमी पलक झपकते ही पूरे हो गये, अब दौडने वाली मांशपेशियाँ धीरे धीरे अपने सुर/ताल में आ रही थीं । पाँच किमी पूरे हुये और मुझे अपने आप को धीरे दौडने के लिये याद दिलाना पड रहा है क्योंकि जब लोग दौड में आपसे आगे निकलते हैं तो बहुत अच्छा नहीं लगता वो भी तब जब आप चाहें तो तेज दौडकर उनको पीछे छोड सकते हैं । कुछ हफ़्ते पहले मेरे एक धावक मित्र ने मुझे एक मंत्र दिया था । उन्होने कहा था कि २५ किमी की दौड में तुम पहले १० किमी में २ मिनट बचाकर बाकी १५ किमी में ५ मिनट गंवाना पसन्द करोगे कि पहले १० किमी में ३ मिनट गंवाकर बाकी १५ किमी में ६ मिनट बचाना । इसी को मन में याद रखते हुये मैं धीरे धीरे दौडता रहा । पहला लूप समाप्त हुया और ८.३३३ किमी दौडने में ठीक ४३ मिनट का समय लगा ।
दूसरे लूप में मैने अपनी रफ़्तार थोडी तेज की लेकिन अभी भी डर लग रहा था कि बहुत तेज नहीं दौडना है । दूसरे लूप को दौडने में सबसे अधिक आनन्द आया । जो लोग पहले लूप में तेजी से दौड रहे थे वो अब रफ़्तार कम कर रहे थे और इसले उलट मैं धीरे धीरे रफ़्तार बढा रहा था । दूसरे लूप को पूरा करने में ४० मिनट और १८ सेकेंड्स लगे ।
अब एक आखिरी लूप बाकी था । मैने निश्चय किया कि आखिरी लूप को पूरी जी जान लगाकर दौडना है । इसी लूप में एक महत्वपूर्ण मार्क हाफ़ मैराथन यानि २१.१ किमी का था । पिछले साल हाफ़ मैराथन दौडने मैं मुझे १ घंटा ५३ मिनट लगे थे । आज की दौड में हाफ़ मैराथन तक आने में मुझे १ घंटा और ४३ मिनट लगे । इसका मतलब १ साल में इतना दौडने से कुछ तो रफ़्तार बढी है । आखिर के पाँच किमी में मैं काफ़ी तेज दौड रहा था और लगभग हर १५ सेकेंड्स में एक धावक से आगे निकल रहा था । मैने घडी पर नजर डाली तो ठीक दो घंटा और समाप्ति की रेखा दिखायी दे रही है । आखिरी ०.४ किमी मैं पूरी तेजी से दौडा और इस लूप को ३८ मिनट और २६ सेकेंड्स में पूरा कर लिया ।
पहले लूप (८.३३३ किमी) में १ किमी दौडने का औसत समय: ५ मिनट ९.६ सेकेंड्स
दूसरे लूप (८.३३३ किमी) में १ किमी दौडने का औसत समय: ४ मिनट ५०.२ सेकेंड्स
तीसरे लूप (८.३३३ किमी) में १ किमी दौडने का औसत समय: ४ मिनट ३६.७ सेकेंड्स
पूरी २५ किमी की दौड का समय : २ घंटा १ मिनट ४४ सेकेंड्स
पूरी २५ किमी की दौड में १ किमी दौडने का औसत समय: ४ मिनट ५२ सेकेंड्स
(दौड पूरी होने के बाद अपने मित्रों के साथ एक फ़ोटो हो जाये )
दौड के बाद एक जर्मन थीम पार्टी भी थी जहाँ पर हमने भी हरी टोपी में एक फ़ोटो खिंचवाया :-)
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