रविवार, दिसंबर 02, 2007

मृत्यु-दंड पर मेरे विचार

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मानवाधिकार संगठन सम्पूर्ण विश्व में मृत्यु-दंड के प्रावधान को जड से हटाने की माँग कर रहे हैं । ब्रिटेन, इटली और फ़्रांस जैसे अनेकों यूरोपीय देशों में मृत्यु-दंड को समाप्त कर दिया गया है । भारत में मृत्यु-दंड का प्रावधान अवश्य है लेकिन पिछले कई दशकों में मृत्यु-दंड की सजा बहुत कम सुनायी गयी है । इसके विपरीत अमेरिका में मृत्यु-दंड की सजा के नियम विभिन्न प्रदेशों में अलग अलग हैं । १९०९ से १९७६ तक अमेरिका के कई प्रदेशों में मृत्यु-दंड का प्रावधान आता और जाता रहा । १९७६ में अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने अपने फ़ैसले में राज्यों के मृत्यु-दंड देने के अधिकार को मान्यता दी । इसके पश्चात आज अमेरिका के ३८ राज्यों में मृत्यु-दंड की सजा का प्रावधान है ।

 

Lethal-Injection electricchair १९७६ से २००६ तक अमेरिका में १०९९ मृत्यु-दंड की सजा सुनायी जा चुकी हैं । ३३७० लोग अपनी सजा का इन्तजार कर रहे हैं । इस तथ्य का एक पहलू ये है कि इन १०९९ में से ४०५ लोगों को टेक्सास में मौत की सजा सुनायी गयी जो पूरे अमेरिका में दिये गये मृत्यु-दंड का एक तिहाई से भी ज्यादा है । टेक्सास में लगभग ३९३ अपनी मौत की सजा का इन्तजार कर रहे हैं । अमेरिका में मृत्यु-दंड पहले फ़ाँसी के माध्यम से दी जाती थी, इसके बाद बिजली वाली कुर्सी आयी जिसका आविष्कार थामस एल्वा एडीसन ने किया था । आजकल लगभग सभी जगह जहरीला मौत का इन्जेक्शन देकर मौत की नींद में सुलाया जाता है, ये इन्जेक्शन हृदय की गति को रोक देता है और जल्दी ही व्यक्ति मृत हो जाता है । यद्यपि कुछ प्रदेशों में बिजली वाली कुर्सी और जहरीला इन्जेक्शन दोनो उपलब्ध हैं । पिछले कुछ वर्षों में जहरीले इन्जेक्शन के विरुद्ध काफ़ी प्रदर्शन हुये हैं । विरोध करने वालों का दावा है कि कई बार जहरीले इन्जेक्शन को काम करने में ३० मिनट तक का समय लगा और ये अत्यधिक दर्दनाक है । इस विषय पर मामला उच्चतम न्यायालय के अधीन विचारार्थ है ।

मैं किसी भी जघन्यतम अपराध के लिये, किसी भी स्थिति में, किसी भी व्यक्ति को दिये गये मृत्यु-दंड के विरुद्ध हूँ ।

कई बार कुछ ऐसे मामले भी सामने आये हैं जब भावनाओं के बहाव में मैने सोचा है कि सम्भवत: इस मामले में मृत्यु-दंड उचित है लेकिन फ़िर सोच विचार करने पर मैं पुन: अपनी सोच पर वापस आ जाता हूँ । मेरी इस सोच के मुख्य रूप से चार कारण हैं और मेरे लिये चौथा कारण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ।

१ ) प्रत्येक मानव जीवन अमूल्य है और इस जीवन का अंत करने का अधिकार केवल प्रकृति अथवा उस मनुष्य को खुद है । जघन्य अपराधों के लिये मैं लम्बी कैद का हिमायती हूँ (केवल १४ वर्ष की कैद नहीं), यदि समाज को लगता है कि उसका अपराध अक्षम्य है तो उस व्यक्ति को सम्पूर्ण जीवन के लिये कारागार में डाल दीजिये जिससे वो कभी कारागार के बाहर न आ सके परन्तु समाज को जीवन छीन लेने का मेरी नजर में कोई अधिकार नहीं है ।

२) लोगों में ऐसी धारणा है कि उम्रकैद की सजा देने पर उसके सारे जीवन का खर्चा सरकार को उठाना पडेगा जबकि मृत्यु-दंड देने से उस खर्च से बचा जा सकता है । वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है । मृत्यु-दंड वाले मुकदमों में सरकारी खर्च अन्य मुकदमों के मुकाबले कहीं अधिक होता है । भारत में हुये इस खर्च पर मेरे पास कोई आधिकारिक आँकडे नहीं हैं,परन्तु अमेरिका में जहाँ मृत्यु-दंड की सजा सुनायी जाती है के आँकडे ये कहते हैं:

क) न्यू-जर्सी में १९८३ से अभी तक मृत्यु-दंड के मुकदमों और मुकदमे के फ़ैसले के बाद की अपीलों पर लगभग २५.३ करोड डालर खर्च हो चुके हैं और इन मामलों में अभी तक एक भी व्यक्ति को मृत्यु-दंड नहीं मिल पाया है । ये अलग बात है कि १० व्यक्ति अपने मृत्यु-दंड का इन्तजार कर रहे हैं । विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इतना धन पुलिस विभाग को दिया जाता तो सम्भवत: अपराधों पर अच्छी खासी लगाम लग सकती थी ।

ख) टेक्सास में जहाँ पर मृत्यु-दंड बडी उदारता से दिया जाता है, वहाँ भी मृत्यु-दंड के किसी मुकदमें पर हुआ पूरा खर्चा उस व्यक्ति को ४० वर्ष तक सबसे सुरक्षित जेल में रखने पर होने वाले खर्चे का लगभग ३ गुना है ।

३) कई बार किसी निर्दोष व्यक्ति को मुकदमें में सजा हो जाती है । अमेरिका में पिछले ४-५ वर्षों में ही सैकडों व्यक्तियों को DNA के सबूत के आधार पर मौत की सजा से छुडा ही नहीं वरन बाइज्जत बरी किया जा चुका है । अगर इन व्यक्तियों को तुरत-फ़ुरत मौत की सजा दे दी गयी होती तो सोचिये कि मानवता के प्रति हमारे समाज और अदालतों से कितना बडा अपराध हो गया होता । १५ वर्ष बाद भी मिला न्याय भी कम से कम न्याय तो है ।

४) मेरी समझ में ये सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु है । समाज ने अपराध के बदले सजा का प्रावधान बनाते समय सोचा था कि सजा अन्य व्यक्तियों के लिये एक डर का कार्य करेगी । पिछले लगभग पचास वर्षों के शोधकार्य के बावजूद भी अभी तक इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि मृत्यु-दंड का डर अपराधियों के अपराध करते समय उम्रकैद के डर से अधिक होता है । अभी हाल में छपे शोधपत्रों में इस बात को साबित करने का प्रयास किया गया है परन्तु Academic Circle में उस शोधकार्य की पद्यति और निकाले गये निष्कर्षों पर काफ़ी उंगलियाँ उठी हैं ।

जब मृत्यु-दंड अन्य किसी दंड के मुकाबले अपराध रोकने में अधिक सक्षम नहीं है तो फ़िर मेरी नजर में अन्य पहलुओं का ध्यान में रखते हुये इसका कोई औचित्य नहीं है ।

नीरज रोहिल्ला

०२ दिसम्बर, २००७

 

चलते चलते: वैसे तो मैने पहले ही "जघन्यतम" शब्द का प्रयोग कर दिया है लेकिन स्प्ष्टीकरण के लिये मैं देशद्रोह, आतंकवाद, बलात्कार आदि प्रकार के अथवा किसी भी प्रकार के अपराध के लिये मृत्यु-दंड का हिमायती नहीं हूँ । पूर्णविराम ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. रुचिकर सामग्री नीरज जी। धन्यवाद। ये मेरी दिलचस्पी का विषय भी है।

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  2. बड़ा ही विवादास्पद है यह मसला। और मेरे खुद के विचार थाली कै बैंगन की तरह लुढ़कते रहे हैं। अत: क्या टिप्पणी करे। अभी तो हम अफ़जल की फ़ांसी का इन्तजार और उसकी राजनीति देख रहे हैं।

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  3. बहुत कठिन है कुछ कहना परन्तु मैं भी डी एन ए वाली बात पर एक लेख लिख रही हूँ ।
    घुघूती बासूती

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  4. मृत्यु दंड के बारे में मेरे भी विचार आपसे मिलते हैं. किन्तु आतंकवादीयों के लिये मैं मृत्यु दंड के पक्ष में ही हूँ. आतंकवादीयों की आम जनता से सीधी-सीधी कोई लडाई नहीं होती. ये केवल सरकार से अपनी कोई बात मनवाने के लिये निर्दोश लोगों को मारते हैं. इसके अलग, मुझे किसी भी व्यक्ति की अप्राकर्तिक मौत दुखित करती है.

    pryas.wordpress.com

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  5. but do you agree with investment of lots of money into security of such terrorists, so more Kandhar incident will happens into country. It can not be implemented into all cases but in some cases which will become lesson for society, it must be implemented.

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