मेरा हिन्दी साहित्य, हिन्दी विमर्श अथवा सामाजिक विमर्श से कभी सीधा वास्ता तो नहीं पडा लेकिन मित्रों के साथ चर्चा में इसको अनुभव किया है। हिन्दी ब्लागजगत पर लेखक/पत्रकारों और अन्य भी विमर्शिंयों की टोलियाँ भरी पडी हैं। ब्लागजगत के बारे में सबसे बडी समस्या इसका सरलीकरण है, ऐसे सरलीकरण में व्यक्तिगत राय को तर्क का जामा पहनाना बहुत आसान है (शायद मैं भी यही कह रहा हूँ)।
कुछ दिन पहले किन्ही सचिनजी के चिट्ठे पर पढा कि उन्होने आई.आई.एम. अहमदाबाद में देखा कि सभी युवा केवल पैकेज के बारे में बात कर रहे हैं।
निष्कर्ष: आज के युवाओं को केवल पैकेज की चिन्ता है, बाकी किसी चीज की फ़िक्र नहीं।
किसी और चिट्ठे पर पढने को मिलेगा कि उनके साथ ऐसा हादसा हुआ, निष्कर्ष: जो उनके साथ हुआ वही सत्य है और ऐसा ही सबके साथ होता होगा।
बहुत बचपन में (कक्षा ६ में), मेरी बहन ने भी निष्कर्ष निकाला था कि हमारे मामाजी दिल्ली में रहते हैं और उनकी क्लास की तीन सहेलियों के मामाजी भी दिल्ली में रहते हैं, इसका मतलब देश में अधिकतर बच्चों के मामाजी दिल्ली में रहते हैं। अच्छे से याद है कि उस समय पिताजी ने पहली बार डेटा एनालिसिस की पहली क्लास ली थी।
मैं विज्ञान का विद्यार्थी हूँ लेकिन अन्य सभी विषयों/विधाओं का सम्मान करता हूँ लेकिन ब्लागजगत पर होने वाले अधिकतर वैचारिक विमर्श के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय को एक ग्राफ़ के माध्यम से व्यक्त कर रहा हूँ।
ऊपर दिये ग्राफ़ में अगर आपके पास केवल दो बिन्दु हैं (बडे लाल वाले) तो आप किसी भी थ्योरी को सही साबित कर सकते हैं, लेकिन असल मुद्दा काले वाले बिन्दु है, जिनको किसी भी एक निष्कर्ष से समझाना असम्भव है।
विज्ञान में किसी भी निष्कर्ष को निकालने के लिये काफ़ी बिन्दुओं का प्रयोग होता है। किन्ही किन्ही स्थितियों में जब Sufficient Data उपलब्ध नहीं होता है तो भी कुछ निश्कर्ष निकाले जाते हैं और कहा जाता है कि Take it with a pinch of salt, if not bucket full, :-) लेकिन ऐसे अधिकतर किस्सों में बाल्टी भर नहीं बल्कि ट्रक भर नमक और सावधानी की आवश्यकता होती है।
ऐसे में लगता है कि सभी विमर्शियों को Data Analysis और Statistics पढाना अनिवार्य कर देना चाहिये जिससे दो बिन्दुओं से निश्कर्ष निकालने की प्रवत्ति पर कुछ रोक लगे। वैसे भी जब मुद्दे बडे उलझे होते हैं तो दो तो क्या दस बिन्दु भी उपलब्ध हों तब भी निश्कर्ष निकालना मुश्किल होता है, लेकिन शायद......
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यहाँ तो १०-५ क्या, हजार बिन्दु भी एक सीधी लाइन में धर दो, तो निष्कर्ष न निकले.
जवाब देंहटाएंData Analysis और Statistics जिस दिन विमर्श के लिए अनिवार्य हो जायेगी, उस दिन कई इस्तिफे आपके दफ्तर में आ जायेंगे जनाब!!
सिलॉजिज्म (syllogism) का जबरदस्त मिसयूज लोग अपनी इल्लॉजिकल सोच को सही ठहराने में करते हैं।
जवाब देंहटाएंऔर डाटा का क्या - लोग सोचते पहले हैं, डाटा उसके हिसाब से बना लेते हैं। हिन्दी ब्लॉगजगत की लॉजिकलियत की घणी उम्मीद नहीं करनी चाहिये।
Data Analysis और Statistics ये क्या होते हैं जी?:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
Data Analysis और Statistics फिलहाल तो अपनी समझ से परे है ।
जवाब देंहटाएंहमारे डिपार्टमेंट में एक सोसिओलोजी के एक प्रोफेसर आए और एक प्रोफेसर से बोले 'सर ये डाटा है, ये निष्कर्ष. कोई मॉडल सूझा दीजिये... गणितीय जामा भी पहना देंगे पेपर में :-)'
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंLekhak sahab - aapke saare black points jo hai, woh ek decaying sinusoidal curve ko follow karate hai, of course around y=x line. Lekhak se nivedan hai ki ab revised plot ko pesh kiya jaaye! Enjoy madi, Pradeep
जवाब देंहटाएंवाह, मजा आ गया आपकी बात को पढ़कर ! अभी अभी एक मित्र को यही कह रही थी कि हम सब वही देखते हैं जो देखना चाहते हैं। सबके मामा दिल्ली में रहते हैं तो बढ़िया निष्कर्ष था। वैसे हममें से यदि कोई भी कहे कि बिना रंगीन चश्मे के संसार को देखता है तो वह लैब से अभी अभी ही निर्मित होकर आया होगा। वैसे यदि हम सब आपकी बात को ध्यान रखकर सोचें तो पाएँगे कि संसार को बेहतर समझ पाएँगे।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
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