बुधवार, मई 12, 2010

आईये फ़िर कव्वालीमय हो जायें....!!!

बस, आंख बन्द करें और गुम हो जायें...


सखी बाली उमरिया थी मोरी,
मोरे चिश्ती बलम चोरी चोरी,
लूटी रे मोरे मन की नगरिया....

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन लिया.. आपको धन्यवाद इस गाने को डाउनलोड करने के साथ दिए जा रहे हैं मगर अभी तक आपके स्कूल के 3mbps का चमत्कार देखने को तरस रहे हैं.. :)

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  2. आनन्द आ गया...बहुत बेहतरीन!!


    एक विनम्र अपील:

    कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

    शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

    हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

    -समीर लाल ’समीर’

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  3. लोक रंग की सुन्दर प्रस्तुति..बधाई.

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  4. अहा, सुन्दर । क्या खींचा है ।

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  5. अरे अभिषेक जी, वाह ताज बोलिये ;)
    सुन लिये भाई जी..

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  6. बढ़िया! सुना, आंख बन्द कर ही आनन्द लिया!

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  7. बहुत बेहतरीन..धन्यवाद.

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