अभी कुछ महीनो पहले एक मंदिर की वीडियो लाईब्रेरी में कुछ डीवीडी देखते देखते बासु भट्टाचार्य की १९७५ की फ़िल्म "तुम्हारा कल्लू" पर नजर पडी। ऐसे ही बिना सोचे खरीद ली और देखी तो अच्छी फ़िल्म लगी। सबसे खास लगी इस फ़िल्म की एक कव्वाली जिसे आज आपकी खिदमत में पेश कर रहे हैं।
कव्वाल शंकर शंभू हैं जो पहले दिल्ली में रहते थे, अब भी शायद दिल्ली में ही हों। फ़िलहाल आप इस कव्वाली का आनन्द लें:
आप ही ने बनायी ये हालत मेरी,
आप ही पूछते हैं ये क्या हो गया।
आप से तुम हुये तुम से फ़िर तू हुये,
देखते देखते क्या से क्या हो गया।
कुछ परेंशा परेंशा सा है कारवां,
क्या कोई राहजन रहनुमा हो गया।
उड रही हैं फ़जाओं में चिन्गारियाँ,
क्या चमन में कोई हादसा हो गया।
एक सजदे की मोहलत अजल से मिली,
मुंह दिखाने का कुछ सिलसिला हो गया।
दिल पे ऐ दिल नजर उनकी ऐसी पडी,
एक ही वार में फ़ैसला हो गया।
सोमवार, मई 25, 2009
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नो डाउट सुन्दर कव्वाली है ! लेने ओ मस्त है बाकी शाम को सुनता हूँ.
जवाब देंहटाएं*लाईने
जवाब देंहटाएंदिल पे ऐ दिल नजर उनकी ऐसी पडी,
जवाब देंहटाएंएक ही वार में फ़ैसला हो गया। ---------
यह तो चुनाव परिणाम पर भाजपा की कव्वाली लगती है!
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंkallu kawwal dekhni paregi....apna cassette wala purani film rakhta to nahi hai phir bhi dhoondhte hain
जवाब देंहटाएंTarun