मंगलवार, फ़रवरी 24, 2009

इन्फ़ार्मेशन ओवरलोड और फ़िल्टरिंग !!!

ये वीडियो अंग्रेजी में है लेकिन मुझे बडा प्रभावी लगा इसलिये पोस्ट कर रहा हूँ । उनके प्रेजेन्टेशन से कोट किया जाये तो,
We’ve had information overload in some form or another since the 1500’s. What’s changing now is the filters used for most of that 500 year period are breaking. And designing new filters doesn’t mean simply updating the old filters. They’re broken for structural reasons, not surface reasons.

When you feel yourself getting too much information, I think the discipline is not to say to yourself “What’s happened to the information?” but rather “What was I relying on before that stopped functioning?”

शुक्रवार, फ़रवरी 20, 2009

घूँघट चक वो सजना (फ़िर से बुल्ले शाह) वडाली बन्धुओं की आवाज में !!!

कल की पोस्ट से बुल्लेशाह का जो खुमार चढा है वो अभी तक उतरा नहीं है। इसी सिलसिले को जारी रखते हुये आज सुनिये अपने वडाली बन्धुओं की आवाज में "घूँघट चक वो सजना"। आशा है आपको पसन्द आयेगा, :-)

गुरुवार, फ़रवरी 19, 2009

उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान की आवाज में पंजाबी कव्वाली (बुल्ले शाह का कलाम) !!!

इस बार पेश-ए-खिदमत है उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान और साथियों की आवाज में एक पंजाबी कव्वाली। मुझे बेहद अफ़सोस है कि कभी पंजाबी नहीं सीखी, मेरा ननिहाल रोहतक में था(है?)। मेरी माताजी पंजाबी बोल/समझ लेती हैं लेकिन कभी उनसे पंजाबी नहीं सीखी इसका बडा रंज है। फ़िलहाल इस कव्वाली का हिन्दी अनुवाद मेरे एक मित्र की सहेली ने किया है। ये बुल्लेशाह का कलाम है और ये एक बडा हृदयवेदी विरहगीत है। इस कव्वाली का लब्बोलुआब(Approximate) कुछ इस प्रकार है :-)



गफ़लत न कर तू, छोड जंगली बसेरा ।
पंछी वापिस घर आ गये, तेरा मन क्यों नहीं करता,
मैं तेरी तू मेरा,
यार जिन्दगी करे कुरबानी जे यार आये एक बार,
इश्क का चर्खा दुखों का पूरिया (पहाड)

मेरी जिन्दगी चरखा सूत काट कर कटी जा रही है।
हर चर्खे के चक्कर के साथ मैं तुझे याद करती हूँ।

तेरे पास जो दिल है वो महरूम है, तेरा जो
मेरे लहू में मेरी नस नस में तेरी याद है।
अब तो सजना सब छोड कर आ जा, मेरी निगाह तेरा पता हर आते जाते राही से पूछ्ती है।
हर चर्खे के चक्कर के साथ मैं तुझे याद करती हूँ।

चरखा मेरा रंग रंगीला है, तेरी याद मेरे मन में बसी है।
मेरे दुखडे कौन समेटे, मैं तुझे याद करती हूं।
मैं तो जलती रहती हूं, मुझे पता ही नहीं बस जलती रहती हूं।
लोग कहते हैं कि इश्क भूल जा लेकिन इश्क छूटता नहीं,
हर चर्खे के चक्कर के साथ मैं तुझे याद करती हूँ।

शुक्रवार, फ़रवरी 06, 2009

हिन्दी, सामाजिक विमर्श, दो बिन्दु से निष्कर्ष: सभी सही हैं !!!

मेरा हिन्दी साहित्य, हिन्दी विमर्श अथवा सामाजिक विमर्श से कभी सीधा वास्ता तो नहीं पडा लेकिन मित्रों के साथ चर्चा में इसको अनुभव किया है।  हिन्दी ब्लागजगत पर लेखक/पत्रकारों और अन्य भी विमर्शिंयों की टोलियाँ भरी पडी हैं।  ब्लागजगत के बारे में सबसे बडी समस्या इसका सरलीकरण है, ऐसे सरलीकरण में व्यक्तिगत राय को तर्क का जामा पहनाना बहुत आसान है (शायद मैं भी यही कह रहा हूँ)।

कुछ दिन पहले किन्ही सचिनजी के चिट्ठे पर पढा कि उन्होने आई.आई.एम. अहमदाबाद में देखा कि सभी युवा केवल पैकेज के बारे में बात कर रहे हैं।

निष्कर्ष: आज के युवाओं को केवल पैकेज की चिन्ता है, बाकी किसी चीज की फ़िक्र नहीं।

किसी और चिट्ठे पर पढने को मिलेगा कि उनके साथ ऐसा हादसा हुआ, निष्कर्ष: जो उनके साथ हुआ वही सत्य है और ऐसा ही सबके साथ होता होगा।

बहुत बचपन में (कक्षा ६ में), मेरी बहन ने भी निष्कर्ष निकाला था कि हमारे मामाजी दिल्ली में रहते हैं और उनकी क्लास की तीन सहेलियों के मामाजी भी दिल्ली में रहते हैं, इसका मतलब देश में अधिकतर बच्चों के मामाजी दिल्ली में रहते हैं।  अच्छे से याद है कि उस समय पिताजी ने पहली बार डेटा एनालिसिस की पहली क्लास ली थी। 

मैं विज्ञान का विद्यार्थी हूँ लेकिन अन्य सभी विषयों/विधाओं का सम्मान करता हूँ लेकिन ब्लागजगत पर होने वाले अधिकतर वैचारिक विमर्श के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय को एक ग्राफ़ के माध्यम से व्यक्त कर रहा हूँ। 


ऊपर दिये ग्राफ़ में अगर आपके पास केवल दो बिन्दु हैं (बडे लाल वाले) तो आप किसी भी थ्योरी को सही साबित कर सकते हैं, लेकिन असल मुद्दा काले वाले बिन्दु है, जिनको किसी भी एक निष्कर्ष से समझाना असम्भव है।


विज्ञान में किसी भी निष्कर्ष को निकालने के लिये काफ़ी बिन्दुओं का प्रयोग होता है। किन्ही किन्ही स्थितियों में जब Sufficient Data उपलब्ध नहीं होता है तो भी कुछ निश्कर्ष निकाले जाते हैं और कहा जाता है कि Take it with a pinch of salt, if not bucket full, :-) लेकिन ऐसे अधिकतर किस्सों में बाल्टी भर नहीं बल्कि ट्रक भर नमक और सावधानी की आवश्यकता होती है।

ऐसे में लगता है कि सभी विमर्शियों को Data Analysis और Statistics पढाना अनिवार्य कर देना चाहिये जिससे दो बिन्दुओं से निश्कर्ष निकालने की प्रवत्ति पर कुछ रोक लगे। वैसे भी जब मुद्दे बडे उलझे होते हैं तो दो तो क्या दस बिन्दु भी उपलब्ध हों तब भी निश्कर्ष निकालना मुश्किल होता है, लेकिन शायद......