कभी ट्रेन के डिब्बे में अंग्रेजी किताब पढ़ने वाला इसलिए असहज कि लोग सोच रहे होंगे कि ये टशन मारने के लिए अंग्रेजी की किताब पढ़ रहा है जबकि मैं तो रोज ही अंग्रेजी की किताब पढता हूँ। कभी वो ये सोचकर असहज कि ये आम लोग कभी समझ नहीं पायेंगे कि इस अंग्रेजी की किताब में ऐसा क्या है जो में इसे पढ़ रहा हूँ। ट्रेन में हिन्दी कि किताब पढ़ने वाला इसलिए असहज कि कहीं लोग ये न सोच रहे हो कि मैं गंवार हूँ जबकि मेरी अंग्रेजी उतनी ही अच्छी है जितनी हिन्दी । कभी वो ये सोचकर असहज कि आजकल मेरे जैसे लोग हैं ही कहाँ जो हिन्दी कि किताबे पढ़ते हैं, सब मैकाले की औलादें हैं। मेरा बस चले तो सबकी अंग्रेजियत एक बार में निकाल दूं ।
कभी इस बात का दंभ कि मैं तो हिन्दी पढ़ रह हूँ डंके की चोट पर, जिसे गंवार कहना हो कह ले मुझे परवाह नहीं।
कहाँ मेरे स्कूल में चीनी विद्यार्थी की कमजोर अंग्रेजी के कारण एक साधारण सी बात को जरा तकलीफ़ से समझाने के बाद उसके चेहरे पर आयी सहज मुस्कान और कहाँ किसी अंग्रेजीदां नौजवान की दिल्ली के कैफ़े काफ़ी डे में अमेरिकन एक्सेंट में बातचीत के दौरान असहजता से "डैम इट" और "होली शिट" ।
कहाँ है इसके बीच में मेरा नायक जो सहजता से अपनी अंगरेजी कि किताब बंद करके स्टेशन पर उतरकर वेद प्रकाश शर्मा का उपन्यास खरीदकर उतनी ही सहजता से पढता है । न तो वो बात बात में काले फिरंगियों को गरियाता है और न ही उन्ही की भाषा में बात करता है ? आपने मेरे नायक को कहीं देखा है ?
मंगलवार, अगस्त 19, 2008
मंगलवार, अगस्त 12, 2008
मेरे वालिद कहा करते थे कि बेटा इश्क करो !!!
आज "बज्म-ए-मीर" अल्बम से रूप कुमार राठौड की आवाज में एक नाजुक सी गजल पेश करता हूँ । गजल से पहले मीर की आत्मकथा "जिक्र-ए-मीर" के कुछ अंश सलीम आरिफ़ की आवाज में हैं जो मुझे बेहद पसन्द हैं ।
मेरे वालिद रोजो शब खुदा की याद में रहते थे,
कभी मौज में आते तो फ़रमाते थे कि बेटा इश्क करो,
इश्क ही इस कारखाने में मुतस्सर्रिफ़ है,
अगर इश्क न होता तो नज्म-ए-गुल कायम नहीं रह सकता था ।
बेइश्क जिंदगी बवाल है,
इश्क में जी की बाजी लगा देना कमाल है,
इश्क बनाता है इश्क ही कुंदन कर देता है
दुनिया में जो कुछ है इश्क का जरूर है,
आग इश्क की सोजिश है पानी इश्क की रफ़्तार है,
खाक इश्क का करार है हवा उसका इस्तेरार है,
मौत इश्क की मस्ती और जिन्दगी उसकी हुश्यारी है,
रात इश्क का ख्वाब और दिन इश्क की बेदारी है,
नेकी इश्क का कुर्ब है गुनाह इश्क की दूरी है,
जन्नत इश्क का शौक है दोजख इश्क का जौक है ।
कौन मकसद को इश्क बिन पँहुचा,
आरजू इश्क, मुद्दआ है इश्क, सारे आलम में भर रहा है इश्क ।
- मीर तकी मीर
मेरे वालिद रोजो शब खुदा की याद में रहते थे,
कभी मौज में आते तो फ़रमाते थे कि बेटा इश्क करो,
इश्क ही इस कारखाने में मुतस्सर्रिफ़ है,
अगर इश्क न होता तो नज्म-ए-गुल कायम नहीं रह सकता था ।
बेइश्क जिंदगी बवाल है,
इश्क में जी की बाजी लगा देना कमाल है,
इश्क बनाता है इश्क ही कुंदन कर देता है
दुनिया में जो कुछ है इश्क का जरूर है,
आग इश्क की सोजिश है पानी इश्क की रफ़्तार है,
खाक इश्क का करार है हवा उसका इस्तेरार है,
मौत इश्क की मस्ती और जिन्दगी उसकी हुश्यारी है,
रात इश्क का ख्वाब और दिन इश्क की बेदारी है,
नेकी इश्क का कुर्ब है गुनाह इश्क की दूरी है,
जन्नत इश्क का शौक है दोजख इश्क का जौक है ।
कौन मकसद को इश्क बिन पँहुचा,
आरजू इश्क, मुद्दआ है इश्क, सारे आलम में भर रहा है इश्क ।
- मीर तकी मीर
शुक्रवार, अगस्त 08, 2008
यूट्यूबीय विशुद्ध मौज वाली पोस्ट !!!!
ये वीडियो कुछ दिन पहले देखा लेकिन परम मस्त लगा ।
स्लो इंटरनेट कनेक्शन वालों से क्षमायाचना सहित, केवल आडियो लगाने से मजा नहीं आयेगा :-)
स्लो इंटरनेट कनेक्शन वालों से क्षमायाचना सहित, केवल आडियो लगाने से मजा नहीं आयेगा :-)
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