शनिवार, नवंबर 10, 2007

शादी का गोरखधन्धा (मेरी नहीं)- भाग १

मेरे एक अभिन्न मित्र पिछले एक साल से शादी करने की कोशिश कर रहे हैं । इस बार उनसे मिलना हुआ और उन्होंने अपने दुखी दिल का हाल सुनाया । उनका हाल-ए-दिल सुनकर हम भी सहम से गये और उनसे मौज लेने का विचार छोड दिया । उन्होंने हमसे इस मुद्दे पर एक पोस्ट लिखने का वायदा लिया जिससे दुनिया को आजकल के लडकों का दर्द पता चल सके ।

सबसे पहले आपको लडके के बारे में बता दें । लडका कम्प्यूटर साइंस में अच्छे कालेज से बी.टेक है । पिछले साढे पाँच वर्षों से अच्छी अच्छी कम्पनियों में काम कर रहा है । तन्ख्वाह भी मोटी है, सिगरेट/शराब/कबाब की कोई लत नहीं, नोएडा में किस्तों पर घर का मकान खरीद लिया है । गाडी पहले नहीं खरीदी थी पर जब लडकी वालों ने कहना शुरू किया कि अब तक गाडी नहीं खरीदी क्या वाकई में इतनी अच्छी तन्ख्वाह मिलती है, तो गाडी भी खरीद ली । लडके और उसके परिवार को मैं पिछले १० वर्षों से जानता हूँ तो उसके चरित्र और चालचलन की भी मैं गारंटी ले सकता हूँ । लडके और उसके परिवार वालों की दहेज की भी रत्ती भर माँग नहीं है । लडका देखने, बातचीत में एकदम स्मार्ट, चाँद का टुकडा है (ध्यान दें कि ईस्माइली का प्रयोग नहीं किया गया है )

इस सब के बाद लडका पिछले १ साल से शादी करने की असफ़ल कोशिश कर रहा है । आईये आपको उसके और कुछ लडकियों के बीच हुये दिलचस्प संवाद सुनाते हैं ।

१) लडकी (फ़रीदाबाद) : जब तक एक फ़ार्महाउस न हो, जिंदगी का मजा ही क्या है ।

२) लडकी (फ़रीदाबाद) : ५०-६० हजार रूपये महीने में कुछ होता है क्या?

३) लडकी (जगह याद नहीं) : मैं शादी तो कर लूँगी लेकिन मथुरा कभी नहीं जाऊगीं

४) लडकी (आगरा) : मैं मथुरा में एडजस्ट नहीं कर पाऊगीं ।

५) लडकी (दिल्ली) : तुम हर १५वें दिन नोएडा से मथुरा क्यों जाते हो?

लडके ने हारकर मैरिज ब्यूरो तक में पंजीकरण करा लिया है । जब मैरिज ब्यूरो वालों से मिलने मैं उसके साथ आगरा गया और ब्यूरो चलाने वाली आण्टी को पता चला कि हम किराये की नहीं बल्कि अपनी खुद की गाडी से आये हैं तो उन्होने गुस्से में कहा कि आपने फ़ोन पर पहले क्यों नहीं बताया कि आपके पास कार भी है । इस चक्कर मे ही कई रिश्ते हाथ से निकल गये हैं और ऐसा कहकर उन्होने फ़ार्म पर गाडी का मेक और माडल लिख दिया । उन्होंने रूह कंपा देने वाले कुछ किस्से और सुनाये और साथ ही कुछ अंक गणित भी सिखाया ।

मेरे एक दूसरे मित्र ने नौकरी करने वाली लडकी की क्वालिटेटिव एनालिसिस की थी । उसके हिसाब से आजकल संयुक्त परिवार तो न के बराबर हैं । घरों में पहले ने मुकाबले काफ़ी कम काम हैं (न गेंहूँ साफ़ करना, न पोंछा झाडू करना, न कपडे हाथ से धोना और न ही बडे परिवार का खाना पकाना आदि) । इस कारण अगर लडकी नौकरी नहीं करती है तो उसके पास काफ़ी खाली समय रहेगा । पहला तो खाली दिमाग शैतान का घर और दूसरा अगर खाली समय रहेगा तो वो एकता कपूर के धारावाहिक देखेगी या फ़िर और फ़ालतू के शगूफ़े खोजेगी । बडी कम्पनियों में लडकों की नौकरियाँ भी १० से ५ वाली नहीं हैं इसीलिये घर देर से ही आना हो पाता है । इसीलिये आजकल के परिवेश में नौकरी करने वाली लडकियाँ ही अच्छी हैं । उसके हिसाब से इसके दो फ़ायदे हैं । पहला कि वो खुद व्यस्त रहेगी और बोर नहीं होगी और न ही घर पर टी.वी. देखकर मोटी होगी :-) दूसरा ये कि उसे पता होगा कि पैसा कितनी मेहनत से कमाया जाता है और इस कारण वो लडके के मेहनत से कमाये हुये पैसे की कद्र करेगी ।

 

लेकिन बाद में नौकरी करने वाली लडकी की क्वांटिटेटिव एनालिसिस इस प्रकार सामने आयी । अगर लडकी ८-१० हजार महीना कमाती है तो कम से कम पाँच हजार तो उसके खुद के खर्चे में निकल जायेगें और इफ़िक्टिवली वो केवल ३-५ हजार का सहयोग करेगी । अगर ये ३-५ हजार लडके की कमाई के २५ प्रतिशत के आस-पास है तब तो ठीक परन्तु अगर ये लडके की कमाई के २५ प्रतिशत से कम है तो इससे न कमाने वाली ही बेहतर है । उनके हिसाब से वो पाँच हजार कमाकर पच्चीस हजार का रुआब दिखायेगी :-) और जब रूआब दिखाये तो कम से कम रूआब के बराबर पैसे कमाकर घर में सहयोग तो दे :-)

 

इस मुद्दे पर और किस्से भी हैं जिन्हें अगली कडी में पेश करूँगा और साथ ही लडकों की इस समस्या के मूल कारण की तह में जाने का भी प्रयास करूँगा । अगर आपके भी कुछ दिलचस्प किस्से हों तो आप टिप्पणी अवश्य करें ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. किस्‍से तो नहीं नीरज भैया परंतु एक लड़की अवश्‍य है जो आगरा से ही ताल्‍लुक रखती है. चूंकि लड़की के पिता अंतर्जातीय विवाह को गलत मानते हैं इसलिए लड़के का ब्राह्मण होना अनिवार्य है.....यदि आपके मित्र इच्‍छुक हों तो आगे बात की जाए.

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  2. 1. लिख लें इस बारे में पोस्टों की शृंखला - अपने खुद के लिये सन्दर्भ ग्रंथ का काम करेगी!
    2. मुझे तो भुवनेश की टिप्पणी पोस्ट से ज्यादा पसन्द आई। कार वाले लड़के का रिश्ता तय करना टिप्पणी में और कुछ लिखने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

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  3. बढ़िया लिखे हो बन्धु... लड़कियाँ मथुरा नहीं जाना चाहतीं, चलो माना। लेकिन आप आगरा क्यों नहीं आना चाहते। बिना आगरा आए ही आप ग़ायब हो लिए... वेरी बेड एंड वेरी सेड।

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  4. बेनामी1:51 am

    ज्ञान जी को चाहे पोस्ट से टिप्पणी ज्यादा पसंद आई हो, हम तो पोस्ट पढ कर हिल गये।

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  5. पोस्ट बढ़िया है और लड़के वालों की तानाशाही खत्म होती जा रही है, यह बतला रही है । नितिन जी हिल गए, हमें बहुत खुशी हुई । अब पासा पलट रहा है और पुरुषों के हिलने के दिन आ हए हैं ।
    घुघूती बासूती

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