शुक्रवार, अप्रैल 06, 2007

प्रभुजी (श्री मिथुन चक्रवर्ती) को समर्पित पोस्ट



इस पोस्ट के माध्यम से मैं अपने और अन्य प्रभुजी भक्तों के श्रॄद्धासुमन प्रभुजी के चरणों में अर्पित करता हूँ ।

भारतीय सिनेमा और विश्व के महानतम अभिनेता श्री मिथुन चक्रवर्ती को उनके चाहने वाले प्रेम से "प्रभुजी" कहते हैं । प्रभुजी उनके चाहने वालों के लिये वन्दनीय हैं, मर्यादा पुरूषोत्तम हैं । मुसीबत की हर घडी में उनके भक्त सच्चे मन से उनको याद करते हैं और प्रभुजी अपने सभी भक्तों की मनोकामनायें पूरी करते हैं । उनके चाहने वालों में भी दो प्रकार के लोग हैं: एक जिन्होनें प्रभुजी की दो महानतम फ़िल्में "लोहा" और "गुण्डा" देखी हैं, और दूसरे जिन्होनें ये फ़िल्में नहीं देखी हैं ।

इंडीब्लाग पुरस्कार विजेता "ग्रेट्बांग" स्वयं प्रभुजी भक्त हैं और उन्होनें प्रभुजी पर एक पोस्ट लिखी थी । ये उसी पोस्ट का कमाल था कि "ग्रेटबांग" लाखों लोगों के दिलों में बस गये । कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि उस पोस्ट को लिखकर उन्होनें बैकुंठधाम में अपनी सीट पक्की कर ली है । ये रही उनके उस लेख की कडी:


मदमत्त मीडिया ने भले ही हमारे प्यारे मिथुनदा को हाशिये पर डालने का असफ़ल प्रयास किया है लेकिन प्रभुजी के लाखों और करोडों भक्तों के दिलों में उनका प्यार हमेशा की तरह बढता ही रहा है और बढता ही रहेगा । शायद कम लोग ही जानते हैं प्रभुजी के घर पर रोज सुबह आज भी निर्माता/निर्देशकों की पंक्ति लगती है । प्रभुजी की कोई भी फ़िल्म निर्माता के लिये कभी घाटे का सौदा नहीं रही । और प्रभुजी के भक्तों के लिये वो फ़िल्में केवल फ़िल्में नहीं हैं, वो "वेदवाक्य" हैं । यूँ तो उनकी हर फ़िल्म मेरे लिये दिलअजीज है लेकिन ये कुछ फ़िल्में हैं जिन्हे मैं बार बार देख चुका हूँ ।

प्यार का मंदिर,
प्यार झुकता नहीं,
सुरक्षा (प्रभुजी एस गन मास्टर जी. नाइन.),
वारदात,
डिस्को डांसर,
चाण्डाल,
अग्निपथ,
ट्रक ड्राइवर सूरज,
चिन्गारी,
ऐलान,
गुरू,
लोहा
और, गुण्डा

लोहा और गुण्डा मेरे लिये रामचरितमानस और श्रीमदभगवदगीता के समान हैं । ये रही लोहा और गुण्डा की गूगल वीडियो की कडियाँ । इन दोनो फ़िल्मों का निर्माण श्री कान्ति शाह ने किया है । लोहा और गुण्डा दोनो ही फ़िल्मों के संवाद "बशीर बाबर" ने लिखे हैं । "लोहा" आम जनता को ध्यान में रखकर बनायी गयी थी तथा उसमें गूढ तत्वज्ञान के साथ साथ अन्य मसाला भी था । "लोहा" ने रातोंरात लोकप्रियता के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिये थे । लोहा में प्रभुजी के उस दॄष्य को कोई कैसे भूल सकता है जिसमें वो खलनायकों को अपना परिचय देतें हैं, वो अपने श्रीमुख से कहते हैं:

दिखने में बेवडा, भागने में घोडा और मारने में हथौडा ।

"बशीर बाबर" ने किरदारों के नामों का चयन अत्यन्त ही सूझबूझ से किया है । बच्चू भगौना, ताण्डया, लुक्का, इंसपेक्टर काले, मुस्तफ़ा और बाटला। बशीर बाबर ने काव्य की लगभग हर विधा का जमकर प्रयोग किया है, उनके संवादों में बशीर बाबर की विद्यता और काव्य प्रेम बरबस ही झलकता है । लोहा के संवादों की कुछ बानगी पेश है ।

धोबी घाट पे, टूटेली खाट पे,
लेटा लेटा के मारूँगा ।

लोहा हो या फ़ौलाद,
या हो पहाडों की औलाद,
जमके फ़टके लगाऊँगा,
यहाँ मेरी हुकूमत है....तेरे छक्के छुडाउँगा ।

जिन्दगी चाहते हो तो हमसे बचकर रहना,
जहाँ नींबू नहीं जाता वहाँ नारियल घुसेड देते हैं ।



हल्की फ़ुलकी छेडछाड का उदाहरण देखिये:

छतरी होती है खोलने के लिये,
चादर होती है ओढने के लिये,
और लडकी होती है छेडने के लिये ।

बशीर बाबर के शब्दों में पुलिस व्यवस्था पर व्यंग देखिये । एक इंसपेक्टर अपने कमिश्नर से इस प्रकार बात करता है ।

इंसपेक्टर काले: अब क्या बतायें सर, दिल्ली में चुनाव हो रहे हैं, ज़ी. टीवी देख कर ये पता चलेगा कि सरकार और पुलिस को कौन सी पार्टी के नेताओं की रखैल बन कर जीना पडेगा ।

कमिश्नर: काले, तुम्हारी ये जुर्रत कि तुम पुलिस और सरकार को नेताओं की रखैल कहो, मै तुम्हारी कम्पलेंट हेम मिनिस्टरी से करूँगा ।

इंसपेक्टर: आप कुछ नहीं कर सकते सर, माना कि आपने कन्धे पर मुझसे ज्यादा सितारे हैं । लेकिन मेरे पीछे इतने सियासी हाथ हैं जितने आपके सिर पर बाल नहीं हैं, अब मैं जाऊ ज़ी टीवी देखने ।

कमिश्नर: गद्दार हो तुम, कानून के

इंसपेक्टर: वफ़ादारी करता कौन है? आप जैसे चन्द पुलिस अफ़सर जिनके पास रहने के लिये घर भी नहीं है । अब भी वक्त है, वफ़ादरी को अपना सबसे बडा दुश्मन समझ कर मार डालिये, नहीं तो आपकी हालत वही होगी जो कमिश्नर वर्मा की हुयी थी । गुस्सा नहीं होना एक शेर सुनाता हूँ:
भीख मांगनी पडती है, कानून के वफ़ादारों को,
तर माल मिलता है, देश के गद्दारों को ।

जिस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास ने जनप्रिय भाषा में रामायण की रचना करके भक्ति आन्दोलन को एक नयी दिशा दी थी उसी प्रकार कान्ति शाह, बशीर बाबर और मिथुनजी ने अपने भक्तों के कष्टों को हरने के लिये "लोहा" का निर्माण किया था । लोहा की अपार सफ़लता के बाद कान्ति शाह प्रभुजी से मिले और कहा कि लोगों के हॄदय में भक्ति आन्दोलन की ज्योति जलाने के बाद हमें "गूढ तत्व" पर भी विचार करना चाहिये अब हमें एक ऐसी फ़िल्म बनानी चाहिये जो अपनी गुणवत्ता में श्रीमदभगवदगीता के समान हो । प्रभुजी ने बशीर बाबर को याद किया और पूछा कि क्या तुम ऐसे संवाद लिख सकते हो जिनकी तुलना आगे आने वाली सदियों में श्रीमदभगवदगीता से की जा सके ? प्रभुजी तो अन्तर्यामी हैं, उन्हे पता था कि इस नयी फ़िल्म की पटकथा लिखना बशीर बाबर के अलावा किसी और के बूते के बात नहीं है । प्रभुजी का आशीर्वाद पाकर बशीर बाबर पटकथा लिखने में जी जान से जुट गये । और इस प्रकार "गुण्डा" नामक फ़िल्म का निर्माण प्रारम्भ हुआ ।

इस विषय में एक और कहानी है, जिसे इस समय कहना बिल्कुल उचित होगा । गुण्डा की पटकथा में प्रभुजी के अभिन्न मित्र का एक किरदार था । शाहरूख खान उस किरदार को निभाने के लिये बहुत लालायित थे । सच भी है, जब गुण्डा के रूप में एक नया इतिहास लिखा जा रहा हो तो कौन उसका भाग नहीं बनना चाहेगा । लेकिन कान्तिशाह ने कहा कि शाहरूख से अच्छी अदाकारी तो एक बन्दर कर सकता है, और उन्होने प्रभुजी के मित्र और वफ़ादार का किरदार एक बन्दर से करवाया । शाहरूख इस सत्य को बर्दाश्त न कर सके, और कई सालों तक गुस्से की आग में जलने के बाद उन्होने "डान" नाम की फ़िल्म बनायी । ध्यान दीजिये कि "डान" का हिन्दी अनुवाद "गुण्डा" होता है । लेकिन शायद शाहरूख ये भूल गये कि श्रीमदभगवदगीता जैसा ग्रन्थ और गुण्डा जैसी फ़िल्म कई युगों में एक बार ही बनती है । जनता ने शाहरूख की "डान" को सिरे से नकार दिया ।


चलिये वापिस आते हैं, गुण्डा पर । सामाजिक व्यवहारिक वेबसाइट "औरकुट" पर एक गुण्डा फ़ैन क्लब है, ये रही उसकी कडी । इस फ़ैन क्लब में लगभग सभी जाने माने वैज्ञानिक संस्थानों (आई. आई. टी., आई. आई. एस. सी., आई. आई. एम., एम. आई. टी., राइस , हावर्ड इत्यादि) के छात्रो ने मिलकर गुण्डा पर शोध किया है । आम जनता के लिये शोधपत्र छपने ही वाला है, लेकिन अभी आप "औरकुट" पर जाकर इस शोध को पढ सकते हैं ।

फ़िल्म गुण्डा के एक दॄश्य ने सभी भक्तों को विचलित कर दिया था । हुआ ये था कि फ़िल्म में एक दुष्ट व्यक्ति प्रभुजी की बहन के साथ छेडछाड कर रहा था, उसकी मंशा उस अबला की इज्जत से खेलना था । अचानक प्रभुजी के आशीर्वाद से एक भला मानुष प्रकट होता है और प्रभुजी की बहन की रक्षा करता है । यहाँ तक तो सब ठीक था, लेकिन अगले ही दॄष्य में प्रभुजी अपनी प्रेमिका के साथ नॄत्य करने लगते हैं । अगर गुण्डा की जगह कोई आम फ़िल्म होती तो जिस कन्या की इज्जत बचायी गयी, वो उस भले मानुष के प्रेम में पडकर उसके साथ नृत्य करती । परन्तु गुण्डा में जो हुआ उसने बडे से बडे प्रभुजी भक्तों को हिला के रख दिया । चर्चा, परिचर्चा का दौर प्रारम्भ हुआ, और एक दिन एक भक्त को स्वप्न में प्रभुजी ने खुद इस बात का सरल सा कारण बताया ।

सोचिये उस भाई से ज्यादा खुश और कौन होगा जिसकी बहन पर पडी इतनी बडी मुसीबत टल गयी । खुशी से वो पागल न हो जायेगा? क्या गलत हुआ यदि उस खुशी की तरंग में प्रभुजी अपने भक्तों को सुखी देखने के लिये नॄत्य करने लगे । सच में गुण्डा का गुणगान इस जन्म में करना संभव नहीं है । इसको जितनी बार देखो उतने ही नये गूढ तत्व सामने आते हैं । मैने खुद गुण्डा की सीडी बनाकर कितने ही प्रभुजी भक्तों को भेजी है । कितने ही लोग अपने दिन की शुरूआत गुण्डा देख कर करते हैं ।

गुण्डा के एक एक सीन में कान्तिशाह और बशीर बाबर ने कलात्मकता के नये आयामों को छुआ है और भविष्य की अनेकों घटनाओं की भविष्यवाणी की है । एक दॄष्य में दिल्ली के नेता को "कफ़नचोर नेता" के रूप में सम्बोधित किया गया है । याद रखें कि गुण्डा सन १९९८ में आयी थी और जार्ज फ़र्नाडीज के कार्यकाल में सन २००० में ताबूत घोटाला हुआ था । कान्तिशाह ने अपनी फ़िल्म के माध्यम से चेतावनी दी थी जिसे कोई समझ नहीं सका । गुण्डा में शक्ति कपूर ने चुटिया नामक किरदार को निभाया है । चुटिया अपने लैंगिक स्वभाव को लेकर संशय में है । शक्ति कपूर ने भावनाओं से टकराव भरी इस भूमिका को अपने जोरदार अभिनय से यादगार बना दिया है ।


सभी किरदार अपना परिचय कविता के रूप में देते हैं । कुछ संवादों की बानगी देखिये ।

मेरा नाम है ईबू हटेला,
माँ मेरी चुडैल की बेटी,
बाप मेरा शैतान का चेला,
खायेगा केला ।

प्रभुजी अपना परिचय इस प्रकार देते हैं ।

मैं हूँ जुर्म से नफ़रत करने वाला,
दोस्तों के लिये ज्योति, दुश्मनों के लिये ज्वाला ।
नाम है मेरा शंकर और हूँ मैं गुण्डा नंबर वन ।


यूँ तो गुण्डा और प्रभुजी के बारे में अनवरत अनन्त काल तक लिखा जा सकता है परन्तु पाठकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुये मैं इस पोस्ट को यहीं विराम देता हूँ ।

इस पोस्ट के अंत में प्रस्तुत है देवपुत्र "मिमो" और स्वयं देव अर्थात प्रभुजी का एक चित्र । प्रभुजी स्वयं कहते हैं कि मिमो उनसे कहीं अच्छा नॄत्य करते हैं । सारे प्रभुजी भक्त देवपुत्र मिमो का फ़िल्म के पर्दे पर आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं ।



11 टिप्‍पणियां:

  1. आप और आपके प्रभुजी के बीच अद्भुत प्रेम सम्बंध का रस हम तक पहुँच गया.. धन्य हैं आपके प्रभुजी.. और धन्यवाद है आपको जो ऐसे रस का रसास्वादन कराया..

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  2. बेनामी2:39 am

    प्रभुजी के बारे में अद्भुत लेख। वाकई प्रभुजी लाखों करोड़ों के प्रभुजी हैं।
    जब अमिताभ अपने चरम पर थे उस समय जो निर्माता अमिताभ को नही ले पाते थे वे मिथुन से काम चलाते थे और य‍कीन मानिए फिल्म अच्छा बिजनेस देती थी। इसीलिए मिथुन गरीब निर्माताओं के अमिताभ कहलाते थे। मैंनें बचपन में अमिताभ की फिल्में ही ‍देखी हैं, परंतु कभी कभी प्रभुजी की फिल्मों का रसास्वादन भी कर लिया करता था। मिथुन के एक्शन सीन और स्टाइल देख कर हैरान रह जाता था और नृत्य देख कर चमत्कृत हो जाता था।
    आज भी इन्दौर की पॉश कालोनियों के सीडी पार्लर में भी मिथुन की लगभग सभी फिल्में होती हैं। धनाड्य वर्ग ये फिल्में नहीं देखता, परंतु इन कालोनियों के आस पास या कुछ दूर आर्थिक रूप से निम्न वर्ग भी रहता है जो मिथुन की फिल्मों को इतना चलाता है कि एक दिन में मिथुन की फिल्मों की जाने वाली सीडी संख्या और अन्य सब हीरो की फिल्मों की मिलकर संख्या बराबर होती है।
    मिथुन को तीन बार अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। फिल्में हैं मृगया, तहादेर कथा और स्वामी वि‍वेकानंद। मैंने मृगया और स्वामी विवेकानंद देखी है। रामकृष्ण परमहंस की भुमिका में मिथुन लाजवाब रहे हैं। जो मिथुन के नाम से नाकभौं सिकोड़ते हैं उन्हें यह फिल्म अवश्य देखना चाहिए।
    वैसे श्रमिक वर्ग को छोड़ कर मिथुन की छवि ऐसी है कि जब मैं कभी लंच के समय मिथुन का नाम ले लूँ तो सहकर्मी महिलाएँ ऐसा मुँह बनाती हैं जैसे मुँह में करेला आ गया हो और कहती हैं ठीक से खाना तो खा लेने दो।
    जैसे अमिताभ का कोई विकल्प नहीं हो सकता वैसे मिथुन भी 'द्वितीयोनास्ति' है।

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  3. प्रभुजी के इतने बड़े उपासक के प्रवचन सुन कर ही हम धन्य हो गये!! :)

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  4. बेनामी9:22 am

    है सालाऽऽऽऽऽ, प्रमुजी का नाम तो किसी उपलब्धि का मोहताज नहीं है।
    माँऽऽ कसमऽऽऽ अपुन ने अभी तक गुण्डा नहीं देखी है, पन अब तो देखनाइच पड़ेगी।
    और नीरज जी सच में मिथुन दा तो देसी हीरो है, और बप्पी दा के साथ बने इनके गाने तो आज भी यारों की महफ़िल की शुरुआत करते हैं। ये प्रभुभक्ति तो छा गई है।

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  5. अर्नब की हिंदी कार्बनकापी भी आनी ही थी! http://greatbong.net

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  6. aap seriously great fan ho mithun da ke!!??????marvellous

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  7. Hum BVP Delhi ke chhatra Prabhuji ke bohot bade fan hain... mere mitra AD, Srivastav, Umang, Puneet Chanchal, Arjit... bhi unka aashirvad roz lete hain, humne unki film GUNDA kai baar dekhi aur roz dekhte hain jaise Ramayan ka paath ho... Jai Prabhuji

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  8. प्रभुजी तो हमारी अंतरात्मा में बसे हुए है , इनके गुडगान सुनकर तो में धन्य हो गया ! आपने सही कहा ऐसी नेक आत्मा युगों युगों में एक बार अवतरित होती है !!

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  9. वाह वाह मैं धन्य हो गया यहाँ आकर!! वास्तव मैं मैंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था की इस तरह के भक्तो से भी मेरा कभी साक्षात्कार हो पायेगा. मैं एक कुवे के मेढक की तरह अपने आप को बहुत बड़ा प्रभु भक्त समझता रहा, लेकिन आज आप सबसे मिलकर मैं स्वयं को बौना देख रहा हूँ. गुंडा और लोहा मैं अनेक बार देख चूका हूँ, क्यों देख चूका हूँ ये बताना मूर्खता होगी. आप लोग खुद ही ग्यानी हैं.
    मेरा प्रिय संवाद भी प्रभु जी की ही फिल्म से है जो इस प्रकार है- अब देखना लाशें ऐसे तप्केंगी जैसे किसी छोटे बच्चे की नुन्नी से पेशाब टपकता है .....टप्प टप्प टप्प ... एकदम अद्भुत !!

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. बेनामी12:58 pm

    sir aapne insult ki hai, tamasha banaya hai,aur ek ache kalakar ki beizzati ki hai,phir bhi aapne itna samay diya.main mithun ka fan nahin hun par mujhe bhi acha nahin laga phir bhi aap likhte rahen shayad aapki aalochna se kuch naya srajan ho jaye.dhanywaad.

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