बुधवार, जनवरी 27, 2010

ह्यूस्टन मैराथन की लम्बी रिपोर्टिंग...

Disclaimer: लम्बी और भावनात्मक पोस्ट


१७ जनवरी २०१० को ह्यूस्टन में एक मैराथन दौड़ का आयोजन हुआ| हम इस दौड़ की पिछले ६ महीनो से तैयारी कर रहे थे | २००९ में इस दौड़ को हमने ३ घंटा और ३८ मिनट में पूरा किया था और इस साल हमारी नजर ३ घंटा और २० मिनट के समय पर थी |

शुक्रवार और शनिवार को हमने जम कर आराम किया और छक कर खाया, शनिवार की रात को दस बजे सोने चले गए लेकिन उत्साह के मारे सुबह २ बजे तक नींद नहीं आयी | हमने अपने आपको समाप्ति पंक्ति पर फर्राटे मारते हुए दौड़ समाप्त करते देखने के सपने देखे और सुबह ४:५० के अलार्म ने हमारी नींद खोल दी | हमारे दोस्त/रूममेट  अंकुर अपने जीवन की पहली हाफ मैराथन दौड़ने की तैयारी में थे | घर से स्नान आदि करने के बाद हमने बाहर निकलकर मौसम का जायजा लिया और कसम से इससे अच्छा मौसम मैराथन के लिए नहीं हो सकता था |  ८-१० डिग्री तापमान और हल्की हल्की हवा...

खैर, अंकुर को रास्ता नहीं पता था तो वो अपनी कार में हमारी कार का पीछा कर रहे थे| हाइवे पर तो हम दोनों लगभग १०० किमी/घंटा पर गाडी चला रहे थे लेकिन जब गंतव्य नजदीक आया तो हमने अपने कार की गति धीमी की और बाकी लोगों की तरह धीमे होकर रुक कर सिग्नल के हरे होने का इन्तजार करने लगे | अचानक हमें जोर का धक्का लगा और हमारी कार का सारा सामन हवा में उछल गया, हमारी छाती स्टेयरिंग व्हील से टकराई और घुटने व्हील के नीचे जोर से भिड गए | २ सेकेंड्स के बाद होश वजा हुए तो पता चला कि अंकुर ने सोचा की गाडी रोकना स्वैच्छिक है और उन्होंने अपनी गति पर विराम नहीं लगाया और हमारी गाडी पर मेहरबानी कर दी| उनके धक्के से हमारी गाडी आगे खडी गाडी से टकराई और आगे वाली कार को भी थोड़ी खरोंच आ गयी | अंकुर की गाडी का अगला हिस्सा और हमारी का पिछला पूरी तरह ध्वस्त हो गया | लेकिन ईश्वर का शुक्र कि किसी को कोई भी चोट नहीं आयी, सिवाय हमारे घुटने में थोड़े दर्द के |

अंकुर की कार का अगला हिस्सा ये रहा:



पुलिस को बुलाकर खबर दी गयी, चूँकि हम तीनो के पास गाडी का बीमा था और अंकुर ने अच्छे इंसान की तरह गलती क़ुबूल कर ली थी, पुलिस आयी और बोली कि आप लोग जा सकते हैं| अब मैराथन शुरू होने में ३५ मिनट शेष थे, अंकुर की गाडी चलने लायक नहीं थी और हमारी रेंगकर चलने लायक थी | अंकुर की गाडी को जब खींचकर ले जाने वाला ट्रक आ गया तो अंकुर ने हमसे कहा कि तुम जाओ और अपनी दौड़ दौड़ो क्योंकि ६ महीने की कठिन ट्रेनिंग बेकार करने का कोई फायदा नहीं है| हम अपनी रेंगती गाडी से धीरे धीरे नियत स्थान पर गए और दौड़ से पहले ही दौड़ते हुए शुरूआती पंक्ति तक दौड़ शुरू होने के ५ मिनट पहले पंहुच पाए |


दौड़ के शुरू होने पर भी हमारा दिमाग ठिकाने पर नहीं था लेकिन हमने सोचा कि अब जो भी होगा दौड़ के बाद ही देखा जाएगा, घुटने का जायजा लिया तो यदा कदा किसी कदम के साथ थोडा सा दर्द था लेकिन कुछ ख़ास नहीं| बार बार अलग अलग ख्याल आ रहे थे और दौड़ पर ध्यान नहीं था| लेकिन शुरुआती ६ मील पलक झपकते ही कट गये | हर साल की तरह इस साल भी ह्यूस्टन निवासी धावकों का हौसला बढ़ने के लिए सड़क के दोनों ओर खड़े थे| मील ५ पर मार्क (Mark) और सेरा (Sarah) ने हमारा नाम लेकर पुकारा और उसके बाद मील ९ पर हमारे दोस्त रामदास हमारा इन्तजार कर रहे थे| अब तक हम भी अपना ध्यान मैराथन पर फोकस करने की कोशिश कर रहे थे, भले ही मानसिक तौर पर हम थका हुआ महसूस कर रहे थे, रफ़्तार के ख्याल से हम अपने गोल पर थे|
आधा रास्ता = १३.१ मील = २१.१ किमी = १ घंटा ३९ मिनट ४० सेकेंड्स = मतलब अपने गोल से २० सेकेंड्स तेज

लेकिन चौदहवाँ मील पूरा होते ही हमारे बांये पैर ने एक झटका दिया, पिछले साल ऐसा ही झटका हमें १८ वें मील पर हमारे बांये पैर ने दिया था लेकिन इस बार चौदहवें पर ही | १६ वें मील तक आते आते तय हो चुका था कि ३:२० हाथ से निकल चुका है और अब दौड़ को समाप्त करना भी मुश्किल दिख रहा था |
मील १ से १४ तक प्रति मील समय: ७:३० +/- १० सेकेंड्स
15 वां मील: ७:५३
१६ वां मील: ७:५२
इस समय तीन धावक जिन्हें मैंने पिछली कई दौड़ों में पीछे छोड़ा था, मुझसे आगे बढ़ जाते हैं|
१७ वां मील: ७:५५
१८ वां मील: ८:०४
१९ वां मील: ८:४८
अब स्थिति बहुत कठिन हो रही है, हमारे मन में २० वें मील पर दौड़ को छोड़कर मेडिकल टेंट में जाकर रुकने का मन कर रहा है| थकावट नहीं है लेकिन पैरों की मासपेशियों में बहुत तनाव है और Cramps हैं,
२० वां मील: ९:०९ (सबसे धीमा मील)
अब हमने अपने आप से कहा कि ३२.२ किमी पूरे हो चुके हैं और केवल आख़िरी दस किमी बचे हैं| थिंक पाजिटिव...When going gets tough, tough gets going.
इस समय हमने सड़क पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश सीनियर को धावकों का उत्साह बढ़ाते देखा, जार्ज बुश सीनियर हर साल यहाँ मौजूद रहते हैं| अब लोग नाम ले ले कर धावकों को उत्साहित कर रहे हैं,
एक व्यक्ति हमें देखता है और कहता है: Man! you are not dead yet. Keep going. Keep going...
अब हमने अगले २-३ मील में दौड़ छोड़ने का निश्चय कर लिया है लेकिन अगले २-३ मील दर्द के बावजूद दौड़ने का मन है...
२१ वां मील: ८:४२
२२ वां मील: ७:५२
अब दर्द अपने चरम पर है और हमने इस आख़िरी मील में जी जान लगाने का निश्चय किया है,
२३ वां मील: ७:०५ (दौड़ का सबसे दर्दीला और सबसे तेज मील): इस २३ वें मील में कुछ ऐसा हुआ कि जिसका मुझे एहसास नहीं था |   


Almost every senior runner talks about that hidden source of energy which is there but inaccessible. They say you have to really dig deep to tap into it. I can say that I felt that hidden source during my 23rd mile. 23rd mile in Houston Marathon is the hardest mile. First, because it is 23rd mile and you are tired; second because it has 3 little hills (overpasses) which slow you down. I ran 23rd mile really well and I was taking down runners ahead of me one by one. At one point, I was running so fast that people on both sides of road simply started shouting and clapping. I will never forget that feeling. 23rd mile was the high point of my marathon and I refused to acknowledge any pain during that mile. And, now I knew that I will definitely finish this race even if I have to crawl on my knees to the finish line.


अब बाकी लोग धीमा हो रहे हैं और मैं एक एक करके धावकों से आगे निकल रहा हूँ| वो तीन धावक जिन्होंने मुझे पीछे छोड़ा था अब केवल २५ मीटर आगे हैं और हर कदम पर में उनके करीब होता जा रहा हूँ...
२४ वां मील: ७:५९
२४.५ मील के आस पास मैं उन तीनो को पीछे छोड़ देता हूँ और अब दौड़ का अंत नजदीक है|
२५ वां मील: ८:२०
अब केवल १.२ मील बाकी है, लोगों की भीड़ चिल्ला रही है और मैं एक एक करके और भी धावकों को पीछे छोड़ रहा हूँ...
२६ वां मील: ८:२०
०.२ मील: १ मिनट २५ सेकेंड्स : अब समाप्ति पंक्ति सामने है, लोग चिल्ला रहे हैं....इस समय मैं अपनी मुट्ठियाँ भींचता हूँ और सब कुछ भूलकर सिर्फ अपने लिए दौड़ता हूँ....इस ३२० मीटर में मैं ५ लोगों को पीछे छोड़ता हूँ और समाप्ति पंक्ति मेरे सामने है....

२६.२ मील: ३:२६:२३....पिछले समय (२००९) से १२ मिनट का सुधार 


मैराथन वेबसाईट के हवाले से: आख़िरी ७.५ मील में मैंने ७४ धावकों को पीछे छोड़ा और २५ धावक मुझसे आगे निकले...


मैराथन की कहानी चित्रों की ज़ुबानी:

























                     
























          (जी हाँ, मर्द को भी दर्द होता है और बहुत होता है. Really bad cramps in both legs)
























   ( जब तक है जान, जाने जहां मैं दौडूंगा... ;-))
















































      (अब किसमे दम है जो हमसे आगे निकले)



लगे हाथों वीडियो भी देख लो, देखें इसमें हमें कितने लोग खोज पाते हैं....(बाईं तरफ हाफ मैराथन वाले है, हम दांयी तरफ बड़ी तेजी से आते हुए दिखेंगे :-) )



9 टिप्‍पणियां:

  1. ओह नीरज, और क्या कहें - I am very very proud of you!
    यह जज्बा मुझमें अपना जीवन जीने में होता, काश!

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  2. बधाई हो,साबित कर दिया कि When going gets tough, tough gets Going!

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  3. जियो रजा! बहुत खूब! अंकुर भाग न ले सका यह अफ़सोस की बात है लेकिन तुम दौड़े और रेस पूरी की। शानदार! बधाई!

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  4. शाबाश नीरज ! आनंद आ गया तुम्हे पढ़कर ! अच्छे भविष्य की शुभकामनायें !

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  5. ज्ञानजी के साईडबार से इस पोस्ट का लिंक मिला और यहां चला आया ।

    दौडने का जज्बा और जीवन का फलसफा क्या है यह आपकी इस पोस्ट से बखुबी समझा जा सकता है।

    Superb .......Superb post.

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  6. सर जी, नमस्ते, और नववर्ष की शुहकामनायें!!

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  7. you have to dig deep to tap into it..

    कितनी बड़ी बात.. बिना मरे तो स्वर्ग नहीं मिलता!!

    गहन आशावाद की परिचायक है ये पोस्ट!! बुकमार्क कर रहा हूँ.. जब कभी स्वयं को पराजित/किंकर्तव्यविमूढ़ महसूस करूँगा, इसे पढ़ूँगा...

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  8. झुझारु पोस्ट, बहुत बढ़िया पूरी ऊर्जा लगा दी आपने, और हमें भी इस पोस्ट से बहुत ऊर्जा मिली, धन्यवाद।

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