गुरुवार, दिसंबर 03, 2009

जैकेट, घर की सफ़ाई, स्वेटर, बर्फ़ और कुछ यादें....

ग्लोबल वार्मिंग: माई फ़ुट...

पिछले तीन दिन से ह्यूस्टन का जलील मौसम अपने चरम पर है। पिछले रविवार को अच्छी खासी गर्मी कि सुबह की दौड में लोग त्राहि त्राहि कर रहे थे। अगले दिन सुबह स्कूल जाने के लिये एक पतली सी टी-शर्ट पहनकर घर से निकले और स्कूल तक आते आते हाथ रगडने कि नौबत आ गयी, इतनी ठंड वो भी इतनी जल्दी। फ़िर मंगलवार और बुधवार को ठंड बरकरार रही।

इसमें हमारे जैसे गरीब विद्यार्थियों (जिनके कपडों में सूती टी-शर्ट के अलावा और कुछ शायद ही मिले) को बडा कष्ट होता है। अब २ हफ़्ते के लिये नये कपडे, नहीं नहीं तौबा...

अरे, जब पहली बार भारत से आये थे तो मम्मी ने एक स्वेटर दिया तो था कि कभी कभी गर्मी में भी सर्दी हो जाती है। लेकिन उसको तो पिछले साल के सालाना घर की सफ़ाई अभियान में फ़ेंक दिया था। और उस नीली जैकेट का क्या हुआ? अरे भूल गये पिछली सर्दी में दोस्तों के साथ जब एक बार (bar) में मित्र के डाक्टर बनने की खुशी मनाने गये थे, तो टल्ली होकर जब सुबह बिस्तर पर नींद खुली थी तो टोपी और जैकेट नदारद थी। शायद बार में ही छूट गयी होगी।

अच्छा पुराना ब्रीफ़केस खोलकर देखो, शायद कुछ पडा हो। अरे ये एक जैकेट जैसी चीज तो है, लेकिन इतनी गन्दी है, इसे पहनोगे क्या? ड्राई क्लीनिंग, नहीं यार बहुत दूर जाना पडेगा और फ़िर वहाँ जाने के लिये क्या पहनोगे?

ह्म्म, कुछ लोग गरीबों को कपडें बाँट रहे हैं, शायद वहाँ से....हे राम, नरक में भी जगह न मिलेगी। घर पे वैसे भी शादी के रिश्ते नहीं आ रहे हैं और किसी ने ब्लाग पर पढ लिया तो फ़िर फ़ुल स्टाप। अरे, मैं तो ऐसे ही ब्रेन स्टार्मिंग कर रहा था। तुमने कैसे सोच लिया कि मैं इतना भी गिर सकता हूँ। ऐसा इसलिये सोचा कि पिछले साल एक बार जब घर में रात को खाने को घर में कुछ नहीं भी नहीं था, तो तुम....अरे, छोडो। ये ही गलत आदत है तुम्हारी, पुरानी बातें याद बहुत रखते हो। और, पडौस वाली आंटी ने कहा था कि कभी भी अच्छा खाना का मन कर तो...। लेकिन शाम को ८:३० बजे बिना बताये?
अच्छा छोडो उसे, वो पुरानी बात है। मैं सुधर गया हूँ।

अंकुर से पूछ के देखो उसके पतले दिनों के टाईम का शायद कोई स्वेटर पडा हो। नहीं नहीं, इससे उसे याद आ जायेगा कि अब वो मोटा हो गया है, वैसे भी उसके लिये भी मोटापे के चलते शादी के रिश्ते नहीं आ रहे हैं। नहीं नहीं, ये बिलो द बेल्ट होगा...

अरे, ये क्या है? सचमुच अद्भुत!!! ये कहाँ से आया? पता नहीं, तुमने कब खरीदा? याद नहीं, नहीं नहीं मैने इसे कभी नहीं खरीदा। कहीं ये उसका तो नहीं? किसका? अरे, उसी का, समझो...अरे नहीं, ये तो लडकों वाला रंग है, कहीं गुलाबी या लाल दिख रहा है तुम्हे? तुम्हे भी बहाना चाहिये पुरानी बातें छेडकर याद मुझे कष्ट देने में। नहीं, नहीं मैं तो ऐसे ही...हे हे हे...खामोश, आगे कुछ भी कहा तो अच्छा नहीं होगा।


लेकिन ये स्वेटर यहाँ आया कहाँ से....ह्म्म....हम्म...अच्छा जरा नजदीक से देखने दो। कुछ तो याद आ रहा है लेकिन कुछ पक्का नहीं है। किसी ने गिफ़्ट तो नहीं दिया? हमें कौन गिफ़्ट देगा? हाँ, वो भी है।

फ़िर देखने में नया भी लग रहा है। अरे याद आया....क्या? कुछ महीनों पहले तुमने घर की सफ़ाई कब की थी। लेकिन तब तो ये यहाँ नहीं था? हाँ, लेकिन सफ़ाई क्यों की थी?
क्योंकि समीरलाल जी सपत्नीक ह्यूस्टन आ रहे थेसमीरलाल जी, लाल शर्ट और ब्लैक फ़ुल पैंट वाले...

अरे, कसम से....भगवान भी बडा कारसाज है। उसने हमारी सर्दी का इन्तजाम अगस्त में ही कर दिया था। हमारे गरीबखाने से विदा होते समय उन्होने हमको उनकी पुस्तक "बिखरे मोती" और एक गर्म स्वेटर भेंट की थी। जय हो...चलो अब सब ठीक ही होगा।

कट जायेगा कल का दिन भी जब ह्यूस्टन में २-४ इंच बर्फ़ गिरने की उम्मीद है और हमारा धावक क्लब इस बर्फ़बारी को यादगार बनाने के लिये इसमें दौडने का कार्यक्रम बना रहे हैं।

बर्फ़ से याद आया कि हमने अपने जीवन में पहली बार बर्फ़ पिछले साल देखी थी जब ह्यूस्टन में ११ दिसम्बर को बर्फ़ गिरी थी। उसके फ़ोटो भी लिये थे जो लगा रहे हैं जिससे सनद रहे। अगर कल बर्फ़ गिरी तो उसके भी लगायेंगे। :-)



4 टिप्‍पणियां:

  1. मजेदार पोस्ट है। अंकुर कभी पतला भी होता था ? वाह। वैसे बांटे जाने वाले कपड़े लेने में भी क्या एतराज? कह सकते हो कि इसमें कैसा अनुभव हो रहा था ये जानना था।

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  2. लगे रहो गोरिल्ला भाई...बढ़िया है...

    जय हिंद...

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  3. नीरज भाई, बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट देखकर अच्छा लगा। वैसे लिखा भी आपने मन से है, बधाई स्वीकारें।
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    सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
    अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?

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  4. स्वेटर/जैकेट तो बढ़िया है। लेकिन "बिखरे मोती" के साथ एक स्वेटर फ्री था? तब तो हमारे साथ नाइंसाफी हुई है! :)

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