रविवार, फ़रवरी 03, 2008

ज्ञानजी की पुरानी पोस्ट के सन्दर्भ में विभीषण गीता!!!

ज्ञानदत्त पाण्डेयजी ने एक बार अपनी एक पोस्ट "जीवन मूल्य कहाँ खोजें" में कहा था: रामचरित मनस के उस प्रसंग को कौन खोज रहा है जिसमें राम कहते हैं कि वह रथ कोई और है जिसपर आरूढ़ होकर विजय मिलती है -

सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।। सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।

आइये; अतीत की पुनर्कल्पना करें। वर्तमान स्थिति में राम-रावण संग्राम हो तो राम हार जायेंगे क्या? दुर्योधन भीम की छाती फाड़ कर रक्त पियेगा? द्रौपदी वैश्या बनने को मजबूर होगी? अर्जुन कृष्ण की बजाय शल्य को अपना सारथी और शकुनि को सलाहकार बनाना पसन्द करेगा? मां सीता मन्दोदरी की सखी बन जायेंगी? पाण्डव नारायणी सेना को ले कर महाभारत मे‍ जायेंगे - कृष्ण का साथ नहीं मागेंगे? गीता को पोर्नोग्राफी की तरह बैन कर दिया जायेगा या फ़िर संविधान संशोधन से "यत्र योगेश्वर: कृष्णौ" को उसमें से निकाल दिया जायेगा?

यूँ तो ज्ञानदत्तजी अपने कई लेखों में रामचरितमानस के बारे में लिख चुके हैं लेकिन इस प्रसंग को पहले भी पढ/सुन चुका था इसलिये इसने लम्बा असर किया । इतना लम्बा कि इतने महीनों के बाद भी मुझे याद रहा और मौका मिलते ही मैं इसके बारे में लिख रहा हूँ । ज्ञानदत्तजी के इस मूल्यवान प्रश्न का अपने सन्दर्भ से उत्तर मैं थोडा रूककर दूँगा लेकिन आपको पं छ्न्नूलाल मिश्राजी की आवाज में विभीषण गीता सुनवानें का लोभ मैं रोक नहीं सका ।

ये थोडी लम्बी अवधि का गीत (~२० मिनट) का आडियो है लेकिन पण्डितजी की आवाज और श्रीरामचरितमानस दोनों बाँधकर रखते हैं । नीचे हिन्दी विकीपीडिया के सौजन्य से इस प्रसंग को श्रीरामचरितमानस से उद्धरित भी कर दिया है ।

रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।। नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।। सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।। सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।। बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।। ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना।। दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा।। अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।। कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा।। सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।। दो0-महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर। इसके अलावा पण्डितजी की आवाज में केवट संवाद भी है जो मुझे बेहद प्रिय है । समस्या केवल यही है कि उसका आडियो भी लगभग २४ मिनट का है । यदि आप सभी को इतना लम्बा आडियो सुनने में कोई समस्या नहीं है तो मैं उसको भी पोस्ट करना चाहूँगा । फ़िलहाल आप विभीषण गीता सुनें और अपने मन वचन और कर्म को इसकी कसौटी पर कस कर देखें । नीरज रोहिल्ला, ३ फ़रवरी २००८

5 टिप्‍पणियां:

  1. दूसरा वाला भी पोस्ट करें.

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  2. अरे वाह! आजका जीवन बना दिया! यहां लिंक धीमा है, सो शाम को घर पर सुनेंगे और अपना माइक सामने रख रिकार्ड भी कर लेंगे!

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  3. बाकी का दूसरा भाग पोस्ट करो. अति उत्तम.

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  4. बेहतरीन पोस्ट . सुन कर आनन्दित हुआ . पंडित छन्नूलाल जी का जवाब नहीं है .

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