शुक्रवार, सितंबर 21, 2007

नीरज मोहे चिटठा बिसरत नाहीं !!!

पिछले कई दिनों से शोध और जीवन दोनों में ही मिड-लाइफ क्राइसिस चल रही थी | कुछ भी लिखने का मन नहीं कर रहा था, चिट्ठे पढ तो रहा था लेकिन टिप्पणी लिखने का कार्य नहीं हो पा रहा था | लिखें तो क्या लिखें...

ऐसी परिस्थितियों में मुझे संगीत अक्सर शांति देता है, इसीलिये फिर से संगीत पर ही एक प्रविष्टी लिख रहा हूँ | यूनुस भाई ने कुछ दिन पहले "मन कुंटो मौला" और "काहे को ब्याही बिदेश" पर प्रविष्टियाँ लिखी थी | मन कुंटो मौला को उन्होने अलग अलग कव्वालों की आवाज में सुनवाया था, अगर आपने उस पोस्ट को नहीं देखा है तो इस लिंक पर जाकर तुरन्त देखें | उन्होंने साबरी बंधुओं की आवाज में मन कुंटो मौला सुनवाया तो था लेकिन कव्वाली आधी से भी कम थी | इसीलिये आज हम आपको साबरी बंधुओं की आवाज में "मन कुंटो मौला" और "काहे को ब्याही बिदेश" दोनों सुनवायेंगे |

चटखा लगाइये "काहे को ब्याही बिदेश" सुनने के लिए:
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काहे को ब्याही बिदेश के बोल जल्दी ही यहाँ पर लिख भी दूंगा, तब तक ज़रा सा इन्तजार कीजिये |

चटखा लगाइये "मन कुंटो मौला" सुनने के लिए:
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इस पोस्ट को इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि संगीत पर लिखने के लिए ज्यादा सोचना नहीं पड़ता और आजकल 'तसस्वुर में कंगाली का दौर चल रहा है' :-) लेकिन आशा है धमाके के साथ जल्दी ही लौटेंगे |

साभार,
नीरज रोहिल्ला

7 टिप्‍पणियां:

  1. काश, तस्सवुर की कंगाली चलती रहे अगर उसकी परिणीति ऐसी पोस्ट है. क्या गीत लाये हो भाई.

    काहे को ब्याहे बिदेश-मेरी पत्नी भी गाती हैं-इस जोहर में आज सुना.आनन्द आ गया. बहुत आभार.

    गजब पोस्ट रही.

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  2. भैया, मिडलाइफ क्राइसिस अपनी बता रहे हैं और ये दोनो गीत जो प्रेस्क्राइब कर रहे हैं - वे हमारी को टेकल कराने के लिये उपयुक्त हैं. वास्तव में किसी अन-कोरिलेटेड फील्ड में बहुत नायाब कृति से अपनी क्राइसिस से दिमाग बखूबी हटता है. आप भी जम के संगीत सुनें! गुनगुनायें. शुभकामनायें.

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  3. हम तो सोच रहे थे कि नीरज ने सन्‍यास ले लिया । सूफी बन गये ।
    इश्‍क़े हक़ीक़ी में डूब गये । पोस्‍ट पढ़के लगा कि हम सही सोच रहे थे ।
    सूफि़यों के ही जीवन में क्राइसिस होती हैं । ताकि वो उनसे निपट सकें ।

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  4. नीरज भाई फिर से हमने सुना. इसके पहले यूनुस जी सुनवा चुके थे पर आपकी पोस्ट के साथ इसे फिर से सुनना एक अलग ही मज़ा दे गया. सबके साथ ऐसा होता है कोई नई बात नही है.

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  5. @समीरजी
    आपको गीत अच्छा लगा, हमारी मेहनत सफल हुयी.

    @ज्ञानदत्तजी,
    आपकी सलाह का खूब फायदा उठाया जायेगा, इसीलिये कल एक ८ मील की दौड में भागने जा रहे हैं | दौड कैसी रही इस पर भी लिखने का सोचेंगे |

    @युनुस भाईजी
    एक बार जो यहां आया उसे संयास कैसा, हम सूफी तो न बन पाये लूफी जरूर बन गये (लस्टफुल फेल्ड सूफी) :-)
    सूफियों के जीवन की कहानियां बहुत प्रभावित करती हैं, देखें जीवन में कितना उतार पाते हैं |

    @विमलजी
    आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत धन्यवाद | आगे भी ऐसे ही हौसला बढाते रहें |

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  6. बेनामी11:54 am

    नीरज भाई मोह आपका े चिटठा बिसरत नाहीं !! क्या धाशु है ,,,और क्या मस्त गीत ,,अच्छा लगा आपको पढना/सुन ना ...जारी रखे ...और हां ,हमारे चिट्ठे पे एक पहेली है ,बूझो तो जाने !!!!!!

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  7. एक लंबी सी आह ......और फ़िर
    बैठे रहे तसव्वुरे जानां किए हुए....

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