बस, आंख बन्द करें और गुम हो जायें...
सखी बाली उमरिया थी मोरी,
मोरे चिश्ती बलम चोरी चोरी,
लूटी रे मोरे मन की नगरिया....
बुधवार, मई 12, 2010
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मन के अंतर में हर क्षण अनेकों भाव उमडते रहतें हैं । इन्ही भावों को हिन्दी भाषा के माध्यम से अंतर्जाल पर लिखने का प्रयास किया है ।