मंगलवार, मार्च 30, 2010

माइक्रो पोस्ट !!!

अक्सर मैं शाम को अपनी प्रयोगशाला से निकल कर अपने स्कूल के चारों ओर की परिधि के दो चक्कर दौड़ कर पूरे करता हूँ, उसके बाद स्कूल के व्यायामशाला में स्नान करने के बाद लैब में वापिस आकर कुछ काम अथवा टाइमपास करने के बाद घर रवानगी होती है | आज इस रूटीन से जरा सा भटकने से देखो बुद्धि कैसी खराब हुयी...

दौड़ने के बाद लैब वापिस आये, झोला उठाया और व्यायामशाला की तरफ जाने लगे, उसमे बटुआ रखा और फोन ये सोचकर मेज की दराज में डाल दिया कि जिम मैं कहीं गम हो गया तो...(नया नया महंगा फोन लिया है न :) )|
फिर रास्ते में चलते हुए सोचा कि आज जिम से ही सीधे घर चले जायेंगे और लैब वापिस नहीं आयेंगे, हमारे मन ने इसका पूर्ण समर्थन किया...

उसके बाद जब जिम के दरवाजे पर पंहुचे और माथा पकड़ कर सोचा कि जब नहाने के बाद घर ही जा रहे हैं तो घर जाके क्यों नहीं नहा सकते? बात तो सही है, फिजूल में इतनी दूर आये...लौटे और अपनी चम्पाकली में बैठकर घर की तरफ रवाना हुए, रास्ते में याद आया कि किसी को फोन करना है....फिर माथा पकड़ किया कि फोन तो लैब की मेज की दराज में बंद है....

खैर घर आये, झोला खाली किया तो देखा बटुए के साथ फोन भी पडा मुस्कुरा रहा था....इसे क्या कहेंगे? सब कान्शियश माइंड की उठापटक ?

या फिर, उम्र हो रही है और बुढापे की दस्तक पर बुद्धि काम करना कम कर दे रही है...;)

सोमवार, मार्च 15, 2010

अगर ये पोस्ट अझेल लगे तो दोष दीप्ति को देना !!!

हमने कुछ हफ़्तों पहले लिखा था कि दीप्ति जल्दी ही वैवाहिक बन्धन (कैसा बन्धन?) नहीं नहीं वैवाहिक सम्बन्ध में बंधने वाली हैं। तो दीप्ति की शादी भी हो गयी और उनके पडौस वाली ब्यूटी पार्लर वाली आंटीजी ने उनपर जो अत्याचार किये उसकी भी किस्सा उन्होने यहाँ हिंग्लिश में लिखा है, ;-)

दीप्ति ने कुछ दिन पहले हमें टैग किया था कि हम अपने पसन्दीदा १० फ़िल्मी डायलाग लिखें, तो लीजिये हाजिर हैं बिना किसी वरीयता के क्रम में (स्मृति से):


१) मैं हूँ जुर्म से नफ़रत करने वाला, शरीफ़ों के लिये ज्योति और तुम जैसे गुंडो के लिये ज्वाला। नाम है शंकर और हूँ मैं गुंडा नम्बर वन...प्रभुजी फ़िल्म गुंडा में.



४) आज हमने पहली बार आपको इतने करीब से देखा है, आपको भरपूर पहरेदारी की जरूरत है। फ़िल्म: हासिल

५) You have to get over your first love to be free. (कसम से बडी गहरी बात है) फ़िल्म: हज़ारो ख्वाहिशें ऐसी

६) इस १० मिनट के सीन में अनेको हीरे छुपे हुये हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ में "हे...हे हे...हे" मोहनीश बहल का कहना, "हे प्रेम रिलेक्स, टेक इट ईजी, कूल इट यार"...भारत की Pop जेनरेशन का पहला बीज यहीं से पडा था। उसके बाद मोहनीश भाई एक और बम्पर मारते हैं, "भूखे तो हम भी हैं..." उसके बाद श्री श्री श्री १००८ मोहनीश बहल महाराज एक और ज्ञान देते हैं, "एक लडका और लडकी कभी दोस्त नहीं हो सकते" याद नहीं होस्टल में कितनी बार इस डायलाग को सुना होगा, ;) फ़िल्म: मैने प्यार किया

आज का लौंडा ये कहता हम तो बिस्मिल थक गये, अपनी आजादी तो भैया लौंडिया के तिल में है।
हाथ की खादी बनाने का जमाना लद गया, आज तो चड्डी भी सिलती इंगलिशों की मिल में है।

फ़िल्म: गुलाल

८) तुम्हारा नाम क्या है बसन्ती...

९) हमने आपके पांव देखे हैं, बेहद हसीन हैं; इन्हे जमीन पे न रखियेगा मैले हो जायेंगे । फ़िल्म: पाकीजा

१०) गहने तुडवाओ, गहने बनवाओ और कौडियाँ खेलो (कसम से बहुत दर्द है इस फ़िल्म में)....फ़िल्म: साहिब बीवी और गुलाम...