सोमवार, फ़रवरी 04, 2008
केवट संवाद:पं छन्नूलाल मिश्राजी की आवाज में
रविवार, फ़रवरी 03, 2008
ज्ञानजी की पुरानी पोस्ट के सन्दर्भ में विभीषण गीता!!!
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।। सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।
आइये; अतीत की पुनर्कल्पना करें। वर्तमान स्थिति में राम-रावण संग्राम हो तो राम हार जायेंगे क्या? दुर्योधन भीम की छाती फाड़ कर रक्त पियेगा? द्रौपदी वैश्या बनने को मजबूर होगी? अर्जुन कृष्ण की बजाय शल्य को अपना सारथी और शकुनि को सलाहकार बनाना पसन्द करेगा? मां सीता मन्दोदरी की सखी बन जायेंगी? पाण्डव नारायणी सेना को ले कर महाभारत मे जायेंगे - कृष्ण का साथ नहीं मागेंगे? गीता को पोर्नोग्राफी की तरह बैन कर दिया जायेगा या फ़िर संविधान संशोधन से "यत्र योगेश्वर: कृष्णौ" को उसमें से निकाल दिया जायेगा?
यूँ तो ज्ञानदत्तजी अपने कई लेखों में रामचरितमानस के बारे में लिख चुके हैं लेकिन इस प्रसंग को पहले भी पढ/सुन चुका था इसलिये इसने लम्बा असर किया । इतना लम्बा कि इतने महीनों के बाद भी मुझे याद रहा और मौका मिलते ही मैं इसके बारे में लिख रहा हूँ । ज्ञानदत्तजी के इस मूल्यवान प्रश्न का अपने सन्दर्भ से उत्तर मैं थोडा रूककर दूँगा लेकिन आपको पं छ्न्नूलाल मिश्राजी की आवाज में विभीषण गीता सुनवानें का लोभ मैं रोक नहीं सका ।
ये थोडी लम्बी अवधि का गीत (~२० मिनट) का आडियो है लेकिन पण्डितजी की आवाज और श्रीरामचरितमानस दोनों बाँधकर रखते हैं । नीचे हिन्दी विकीपीडिया के सौजन्य से इस प्रसंग को श्रीरामचरितमानस से उद्धरित भी कर दिया है ।