शनिवार, दिसंबर 05, 2009

तस्वीरें कुछ बोलती हैं।

जैसा कि हमने पिछली पोस्ट में बताया था कि आज हमें एक दस किमी की दौड में भाग लेना था। सुबह उठकर देखा तो कार के सभी शीशों पर बर्फ़ की मोटी परत जमी हुयी थी। जब खुरचने से नहीं उतरी और देर हो रही थी तो उस पर पानी डालने का सोचा। पानी डालने से खतरा था कि शीशा चटक सकता था लेकिन जल्दबाजी में इस खतरे को उठाया और धीरे धीरे बर्फ़ को खुरचकर शीशे को साफ़ किया। इतने में ठंड के मारे हाथ दर्द करने लगे थे...मेरी दर्द में आऊ आऊ करने की आदत है, बचपन में भी चोट लगने पर आंसू नहीं निकलते थे बस हाथों को झटकते हुये आऊ आऊ करता रहता था।

आज जब हाथों में जबरदस्त ठंड लगी तो आऊ आऊ अपने आप मुंह से निकल गया। खैर २० मील दूर जाकर देखा तो इक्का दुक्का लोग ही आये हुये थे। लेकिन आयोजकों ने कहा कि दौड जरूर होगी। थोडी देर में बाकी लोग भी आ गये।

ठीक सुबह ७:३० बजे -४ डिग्री तापमान में दौड शुरू हुयी। हमने एक टीशर्ट के ऊपर ट्रेकिंग जैकेट पहनी हुयी थी। लेकिन अपने दौडने वाली निक्कर पहनने के चलते अब घुटने आऊ आऊ कर रहे थे। प्रारम्भ पंक्ति के पास एक हीटर रखा था, जिससे दौड से पहले सब हाथ-पैर सेंक रहे थे। गोली की आवाज के साथ दौड शुरू हुयी और आधे मिनट में ही हीटर की गर्मी रफ़ूचक्कर हो गयी। आधे मील तक आते आते महसूस हुआ कि पैर के अंगूठे और उंगलियाँ एकदम पत्थर जैसे लग रहे हैं। खैर हम कदम आगे बढाते रहे।

पहला मील: ६:३० मिनट (आशा से थोडा तेज)

ये चूंकि छोटी दौड(~३०० धावक) थी इसलिये पहले मील में ही सबका स्थान तय सा हो गया था। हमने गिना तो हम दसवें नम्बर पर दौड रहे थे। हमने २ धावकों को मार्क किया जिन्हें पछाडने का अगले ५.२ मील मे प्रयास किया जायेगा। उनमें से एक को हमने चौथे और दूसरे को पाँचवे मील पर पीछे छोडा। अब हम आंठवे नम्बर पर थे और हमारे आगे वाला धावक अपने हाथ झटक रहा था और बार बार पीछे देख रहा था। हमने सोचा कि मौका अच्छा है देखते हैं किसमें कितना दम है, हमने थोडी रफ़्तार बढाई और उसके बराबर आ गये। अब सब कुछ उसे करना था। इसे हमारी भाषा में Shaking a runner कहते हैं। थोडी सी रफ़्तार बढाकर दूसरे धावक को उत्तेजित करना होता है। इसमें कभी आप सफ़ल होते हैं और कभी असफ़ल...

नये खिलाडी तुरन्त अपनी रफ़्तार बढाकर आपसे आगे निकल जाने की कोशिश करता है और ऐसे में कभी कभी वो अपने को ज्यादा थका लेता है। जिसका फ़ायदा आपको अगले मील में मिलता है। घाघ टाईप के धावक आपकी तरफ़ मुस्कुराते हैं और अपनी गति पर दौडते रहते हैं। अब चूंकि उसके बराबर आने में आपने अपनी गति बढाई होती है, अगर दूसरा बन्दा आपकी चाल में न फ़ंसे तो आप खुद अपने आप को हांफ़ते हुये पाते हैं और पासा उल्टा पड जाता है।

खैर, वो हमारी चाल में आ गया और छठे मील से थोडा पहले हमने उसे पीछे छोड दिया।

कुल समय: १० किमी ४१ मिनट में
पिछला बेस्ट समय: ४१ मिनट १८ सेकेंड्स
इस लिहाज से १८ सेकेंड्स का सुधार।

Overall: 7th position
Age Group (Male 25-29): 2nd position (मतलब ईनाम मिला)

अब आप फ़ोटो भी बांच लो....


(दौड की समाप्ति के बाद भी बर्फ़ पिघली नहीं थी)



(दौडने के बाद काफ़ी पीते हुये, और ईनाम लेते हुये)



(ईनाम का क्लोजअप)

शुक्रवार, दिसंबर 04, 2009

ह्यूस्टन में बर्फ़बारी के नजारे!!!

हमने अपनी कल की पोस्ट में ह्यूस्टन के जलील मौसम के बारे में बताया था। वैसे तो आज दोपहर में बर्फ़ गिरनी चाहिये थी लेकिन आज सुबह ७ बजे से ही बर्फ़ गिरनी शुरू हो गयी। आज के दिन ह्यूस्टन ने १९४४ का रेकार्ड तोडकर सर्दी के मौसम में सबसे पहले बर्फ़ गिरने की घटना दर्ज की।

हम जब तक स्कूल पंहुचे तो अच्छी खासी बर्फ़ गिर रही थी, लिहाजा हमने कुछ फ़ोटो और वीडियो भी बनाये। जिन्हे आप यहाँ देखिये...



इसके बाद, कुछ काम किया फ़िर बार बार बाहर जाकर बर्फ़बारी का मजा लिया। उसके बाद फ़ैसला लिया कि इस बर्फ़ में ३ मील दौडा जायेगा। लोगों ने वायदा तो किया लेकिन जब दौडने की बारी आयी तो केवल हम और एक कन्या मोनिका ही पंहुची। खैर ५ मिनट इन्तजार के बाद हम दोनो ने ही दौड लगानी शुरू कर दी। लोग अपनी कार से हमे ऐसे देख रहे थे जैसे दो पागल दौडे चले जा रहे हों। एक-दो लोगों ने अपनी कार का शीशा नीचे करके हमको घर जाने की सलाह भी दी तो कुछ लोगों ने थम्स अप भी दिया। दस्तानों के बावजूद -५ डिग्री की चुभती ठंड में दौडने में लुत्फ़ तो आया लेकिन ठंड भी लगी। ये रहे फ़ोटो जिससे सनद रहे।




इसके अलावा हम कल सुबह ७ बजे एक १० किमी की दौड में भी भाग ले रहे हैं, जहाँ तापमान शून्य के नीचे रहने की सम्भावना है। देखते हैं कल कितने शहसवार इस ठंड में दौडने आते हैं। हम तो जा ही रहे हैं। ये रहा आज अभी का और कल सुबह तक के मौसम की भविष्यवाणी।

कल अगर दौड में हमें कोई स्थान प्राप्त हुआ तो ईनाम के साथ अपनी तस्वीर जरूर चस्पा करेंगे। तब तक आप भी प्रकॄति के इस अद्भुत कारनामे का मजा लीजिये।






























गुरुवार, दिसंबर 03, 2009

जैकेट, घर की सफ़ाई, स्वेटर, बर्फ़ और कुछ यादें....

ग्लोबल वार्मिंग: माई फ़ुट...

पिछले तीन दिन से ह्यूस्टन का जलील मौसम अपने चरम पर है। पिछले रविवार को अच्छी खासी गर्मी कि सुबह की दौड में लोग त्राहि त्राहि कर रहे थे। अगले दिन सुबह स्कूल जाने के लिये एक पतली सी टी-शर्ट पहनकर घर से निकले और स्कूल तक आते आते हाथ रगडने कि नौबत आ गयी, इतनी ठंड वो भी इतनी जल्दी। फ़िर मंगलवार और बुधवार को ठंड बरकरार रही।

इसमें हमारे जैसे गरीब विद्यार्थियों (जिनके कपडों में सूती टी-शर्ट के अलावा और कुछ शायद ही मिले) को बडा कष्ट होता है। अब २ हफ़्ते के लिये नये कपडे, नहीं नहीं तौबा...

अरे, जब पहली बार भारत से आये थे तो मम्मी ने एक स्वेटर दिया तो था कि कभी कभी गर्मी में भी सर्दी हो जाती है। लेकिन उसको तो पिछले साल के सालाना घर की सफ़ाई अभियान में फ़ेंक दिया था। और उस नीली जैकेट का क्या हुआ? अरे भूल गये पिछली सर्दी में दोस्तों के साथ जब एक बार (bar) में मित्र के डाक्टर बनने की खुशी मनाने गये थे, तो टल्ली होकर जब सुबह बिस्तर पर नींद खुली थी तो टोपी और जैकेट नदारद थी। शायद बार में ही छूट गयी होगी।

अच्छा पुराना ब्रीफ़केस खोलकर देखो, शायद कुछ पडा हो। अरे ये एक जैकेट जैसी चीज तो है, लेकिन इतनी गन्दी है, इसे पहनोगे क्या? ड्राई क्लीनिंग, नहीं यार बहुत दूर जाना पडेगा और फ़िर वहाँ जाने के लिये क्या पहनोगे?

ह्म्म, कुछ लोग गरीबों को कपडें बाँट रहे हैं, शायद वहाँ से....हे राम, नरक में भी जगह न मिलेगी। घर पे वैसे भी शादी के रिश्ते नहीं आ रहे हैं और किसी ने ब्लाग पर पढ लिया तो फ़िर फ़ुल स्टाप। अरे, मैं तो ऐसे ही ब्रेन स्टार्मिंग कर रहा था। तुमने कैसे सोच लिया कि मैं इतना भी गिर सकता हूँ। ऐसा इसलिये सोचा कि पिछले साल एक बार जब घर में रात को खाने को घर में कुछ नहीं भी नहीं था, तो तुम....अरे, छोडो। ये ही गलत आदत है तुम्हारी, पुरानी बातें याद बहुत रखते हो। और, पडौस वाली आंटी ने कहा था कि कभी भी अच्छा खाना का मन कर तो...। लेकिन शाम को ८:३० बजे बिना बताये?
अच्छा छोडो उसे, वो पुरानी बात है। मैं सुधर गया हूँ।

अंकुर से पूछ के देखो उसके पतले दिनों के टाईम का शायद कोई स्वेटर पडा हो। नहीं नहीं, इससे उसे याद आ जायेगा कि अब वो मोटा हो गया है, वैसे भी उसके लिये भी मोटापे के चलते शादी के रिश्ते नहीं आ रहे हैं। नहीं नहीं, ये बिलो द बेल्ट होगा...

अरे, ये क्या है? सचमुच अद्भुत!!! ये कहाँ से आया? पता नहीं, तुमने कब खरीदा? याद नहीं, नहीं नहीं मैने इसे कभी नहीं खरीदा। कहीं ये उसका तो नहीं? किसका? अरे, उसी का, समझो...अरे नहीं, ये तो लडकों वाला रंग है, कहीं गुलाबी या लाल दिख रहा है तुम्हे? तुम्हे भी बहाना चाहिये पुरानी बातें छेडकर याद मुझे कष्ट देने में। नहीं, नहीं मैं तो ऐसे ही...हे हे हे...खामोश, आगे कुछ भी कहा तो अच्छा नहीं होगा।


लेकिन ये स्वेटर यहाँ आया कहाँ से....ह्म्म....हम्म...अच्छा जरा नजदीक से देखने दो। कुछ तो याद आ रहा है लेकिन कुछ पक्का नहीं है। किसी ने गिफ़्ट तो नहीं दिया? हमें कौन गिफ़्ट देगा? हाँ, वो भी है।

फ़िर देखने में नया भी लग रहा है। अरे याद आया....क्या? कुछ महीनों पहले तुमने घर की सफ़ाई कब की थी। लेकिन तब तो ये यहाँ नहीं था? हाँ, लेकिन सफ़ाई क्यों की थी?
क्योंकि समीरलाल जी सपत्नीक ह्यूस्टन आ रहे थेसमीरलाल जी, लाल शर्ट और ब्लैक फ़ुल पैंट वाले...

अरे, कसम से....भगवान भी बडा कारसाज है। उसने हमारी सर्दी का इन्तजाम अगस्त में ही कर दिया था। हमारे गरीबखाने से विदा होते समय उन्होने हमको उनकी पुस्तक "बिखरे मोती" और एक गर्म स्वेटर भेंट की थी। जय हो...चलो अब सब ठीक ही होगा।

कट जायेगा कल का दिन भी जब ह्यूस्टन में २-४ इंच बर्फ़ गिरने की उम्मीद है और हमारा धावक क्लब इस बर्फ़बारी को यादगार बनाने के लिये इसमें दौडने का कार्यक्रम बना रहे हैं।

बर्फ़ से याद आया कि हमने अपने जीवन में पहली बार बर्फ़ पिछले साल देखी थी जब ह्यूस्टन में ११ दिसम्बर को बर्फ़ गिरी थी। उसके फ़ोटो भी लिये थे जो लगा रहे हैं जिससे सनद रहे। अगर कल बर्फ़ गिरी तो उसके भी लगायेंगे। :-)